जब गरीब बच्चे की खुद्दारी दिल को छू गयी – Self Respect Story in Hindi

कभी कभी हमारे आसपास ऐसी छोटी छोटी घटनाएं देखने को मिल जाती हैं जो हमे सोचने पर मजबूर कर देती हैं। जिस तरह एक बंद कमरे में छोटे छोटे छिद्र बाहर रोशनी अथवा अंधकार का संकेत देते हैं, ठीक उसी प्रकार हमारी छोटी छोटी आदतें हमारे अच्छे एवं बुरे चरित्र का संकेत देती हैं। ऐसी ही एक Self Respect Story in Hindi हम आपके लिए लेकर आये है जो आपके दिल को छू जायेगी.

Self Respect Story in Hindi

शनिवार की शाम मैं और मेरा भाई अपने कमरे में बैठे हुए पढ़ाई कर रहे थे। चूंकि यह वीकेंड था इसलिए हमने बाहर जाने की योजना बनाई। अपने कुछ दोस्तों को योजना में शामिल होने के लिए कहा, लेकिन व्यस्तता के कारण उन्होंने मना कर दिया । खैर, हम दोनों भाई बाहर गए। कम बजट के कारण हम सस्ते स्थानों पर जाते थे, कभी चौक मंडी या कभी पंजाबी गली। जब हम हॉस्टल से बाहर निकलते थे तो घर की बहुत याद आती थी।

हमारे इलाक़े के दही बड़े बहुत प्रसिद्ध थे। घर की याद ताज़ा करने के लिए भाई ने इंडियन फूड स्ट्रीट के लिए बाइक मोड़ ली और हम एक फूड स्टॉल पे आ कर बैठ गए। हमने बैठते ही दो प्लेट दही बड़े और कोल्ड ड्रिंक ऑर्डर किए। हम ने दही बड़े खाते खाते एक बच्चे को देखा जो खिलौने बेच रहा था। वो लगभग बारह तेरह वर्ष का होगा और वह खिलौने बेचने हमारे पास आया और बोला “भाई, खिलौना ले लो”.

बच्चा बहुत मासूम था। मैंने उसकी मदद करने के लिए उसे तीस रुपये दिए लेकिन बच्चे ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और कहा “भाई मैं मांगने वाला नहीं हूं, जबतक आप मेरे से खिलौने नहीं लेते मैं आप से पैसे नहीं लूंगा”।

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इस बच्चे के शब्दों ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। मैं बच्चे के साथ बैठ गया और उसे एक कोल्ड ड्रिंक पिलाई और उससे पूछा, कि उसने पैसा क्यों नहीं लिया। उसने जो जवाब दिया वह दिल को छूने वाला था। उसने कहा, “अगर मैं आज यह पैसे यूंही ले लेता तो बड़े होकर मुझे मांगने की आदत पड़ जाएगी”।

उन शब्दों को सुनने के बाद मेरे भाई ने मुझे विस्मय भरी नज़रों से देखा। भाई ने उस बच्चे से खिलौना लेकर उसे पैसे दिए। जब उसने पैसे लिए तो उसके चेहरे पर जो खुशी थी वह अकल्पनीय है।

जब हम लौट कर हॉस्टल के कमरे में वापस आए, तो हमारे हाथ में दोस्तों ने खिलौने को देखा और हंसते हुए कहा, “यार! तुम अब बच्चे नहीं हो जो इन खिलौनों से खेलोगे।” इस बात के जवाब में मेरे भाई ने कहा “कभी कभी कुछ चीज़ें बेवजह भी खरीदी जाती हैं।”

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वह खिलौना आज भी हमारे कमरे में पड़ा है। जब भी मैं इसे देखता हूं, मुझे पूरी घटना याद आती है और चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आती है और मेरे दिल में एक अजीब सी अनुभूति होती है और मुझे लगता है कि यही वह एहसास है जिसे लोग स्वायत्तता (खुद्दारी) कहते हैं। आप की ज़िन्दगी में भी ऐसी कोई घटना घटित हुई होंगी जिसने आपको सोचने पर मजबूर किया होगा। यदि हां तो हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

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