विक्रम और बेताल की प्रारंभिक कहानी – Vikram Betal ki Kahaani

विक्रम और बेताल

Vikram Betal ki Kahaani

यह बहुत पुरानी बात है। उज्जयनी नाम के राज्य में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो बहुत चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। लेकिन वह अत्याचारी भी था, इस कारण उसके छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। राजा विक्रामादित्य की न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठता और दानशीलता के चर्चे पूरे देश में मशहूर थे। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा।

एक दिन की बात है। राजदरबार लगा हुआ था। तभी एक योगी विक्रमादित्य के दरबार में आता है और राजा को एक फल देकर चला जाता है। राजा उस फल को राज्य कोषाध्यक्ष को दे देता है। उस दिन के बाद से हर रोज वह योगी राजा के दरबार में आता और एक फल देता और चुपचाप चला जाता। राजा भी प्रत्येक दिन योगी द्वारा दिया गया फल कोषाध्यक्ष को थमा देता। ऐसे करते-करते करीब 10 साल बीत गए।

हर बार की तरह एक दिन जब योगी फिर राजा के दरबार में आकर फल देता है, तो इस बार राजा फल कोषाध्यक्ष को न देकर वहां मौजूद एक पालतू बंदर के बच्चे को खाने के लिए दे देते हैं। यह बंदर किसी सुरक्षाकर्मी का था, जो छूट कर अचानक राजा के पास आ जाता है।

बंदर जब उस फल को खाने के लिए मुँह से तोड़ता है, तो उस फल के बीच से एक लाल रंग का बहुमूल्य रत्न निकलता है। उस रत्न की चमक को देख राज दरबार में मौजूद सभी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। राजा भी यह नजारा देख आश्चर्य में पड़ जाता है। राजा कोषाध्यक्ष को इससे पूर्व योगी द्वारा दिए गए सभी फलों के बारे में पूछता है।

राजा के पूछने पर कोषाध्यक्ष बताता है कि महाराज मैंने उन सभी फलों को राज कोष घर में सुरक्षित रखवा दिया है। आप कहे तो मैं उन सभी फलों को अभी लेकर आता हूं। राजा के आदेश पर वह उसे लाने चला जाता हैं ,कुछ देर बाद कोषाध्यक्ष राजा को आकर बताता है कि सभी फल सड़-गल गए हैं। लेकिन उनके स्थान पर बहुमूल्य रत्न बचे हुए हैं। यह सुनकर राजा बहुत खुश होता है और कोषाध्यक्ष को सारे रत्न सौंप देता है।

अगली बार जब योगी फल लेकर दोबारा विक्रमादित्य के दरबार पहुंचता है, तो राजा कहते हैं, “योगी मैं आपका फल तब तक ग्रहण नहीं करूंगा, जब तक आप यह नहीं बताते कि हर दिन आप मुझे इतनी बहुमूल्य भेंट मुझे क्यों अर्पित करते हैं?

राजा की यह बात सुन योगी उन्हें एकांत स्थान पर चलने को कहता है। एकांत में ले जाकर योगी राजा को बताता है कि मुझे एक मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत है। चूंकि, मुझे आपसे वीर दूसरा कोई नहीं मिल सकता, इसलिए यह बहुमूल्य उपहार तुम्हें दे जाता हूं।

योगी की बात सुन राजा विक्रमादित्य उसकी सहायता करने का वचन देते हैं और पूछते हैं की मुझे क्या करना होगा? तब योगी राजा को बताता है कि अगली अमावस्या की रात को उसे पास के श्मशान आना होगा, जहां वह मंत्र साधना की तैयारी करेगा। इतना कहकर योगी वहां से चला जाता है।

अमावस्या का दिन आते ही राजा को योगी की बात याद आती है और वह वचन के अनुसार उस श्मशान पर पहुंच जाते हैं। राजा को देख योगी बहुत प्रसन्न होता है। योगी कहता है, “हे राजन, तुम यहां आए मैं बहुत खुश हुआ कि तुम्हें तुम्हारा वचन याद रहा। अब यहां से पूर्व की दिशा में दो कोस जाओ। वहां एक महाश्मशान मिलेगा। उस महाश्मशान में एक शीशम का एक विशाल वृक्ष है। उस वृक्ष पर एक मुर्दा लटका हुआ है। उस मुर्दे को तुम्हें मेरे पास लेकर आना है। योगी की बात सुनकर राजा सीधे उस मुर्दे को लाने चल देता है।

बड़ी भयंकर रात थी। चारों ओर अँधेरा फैला था। पानी बरस रहा था। भूत-प्रेत शोर मचा रहे थे। साँप आ-आकर पैरों में लिपटते थे। लेकिन राजा हिम्मत से आगे बढ़ता गया। महाश्मशान में पहुंचने के बाद राजा को एक विशाल शीशम के पेड़ पर एक मुर्दा लटका हुआ दिखाई देता है। राजा अपनी तलवार खींचता है और पेड़ से बंधी डोर को काट देता है। डोर कटते ही मुर्दा जमीन पर आ गिरता है और जोर से चीखने की आवाज आती है।

राजा ने नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?”

राजा का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिकर हँस पड़ा। राजा को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। राजा फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काट, मुर्दे का बगल में दबा, नीचे आया। बोला, “बता, तू कौन है?”

मुर्दा चुप रहा।

तब राजा ने उसे एक चादर में बाँधा और योगी के पास ले चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?”

राजा ने कहा, “मेरा नाम विक्रम है। मैं उज्जयनी का राजा हूँ। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूँ।”

इस पर बेताल विक्रम से कहता है, “विक्रम मैं तेरे साहस को मान गया। तू बड़ा ही पराक्रमी है। मैं तेरे साथ चलता हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है कि पूरे रास्ते में तू कुछ भी नहीं बोलेगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर पेड़ पर जा लटकूँगा।” विक्रम सिर हिलाकर हां में बेताल की बात मान लेता है।

राजा ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “ पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में। अच्छा होगा कि हमारी राह भली बातों की चर्चा में बीत जाये। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। ले, सुन।

तो यह थी विस्तार से राजा विक्रम, योगी और बेताल की आरंभिक कहानी। यही से शुरू होता है बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों का सफर, जो बेताल एक-एक करके विक्रम को सुनाता है। क्यूंकि राजा ने 24 बार उसके कहानिया के अंत में जवाब दिया, जिस कारण हर हर बार वो पिशाच पेड़ चढ़ जाता।

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1 Response

  1. Pooja tiwari says:

    जब विक्रम – बेताल दूरदशर्न मे आता था मै तब से इसकि फैन हूँ . थेंक्यू पुरानी यादो को फिर याद दिलाने के लिये .

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