दिल को छू लेने वाली कहानी “आश्रय” Emotional Story in Hindi

Written By:

-निधि जैन

“आश्रय” (Emotional Life Story in Hindi)

.          मुम्बई के एक आलीशान होटल की सातवीं मंजिल पर मेरा कमरा था। हाथ में काफी का प्याला लिए मैं बालकनी में आ खड़ी हुई। नीचे सड़क पर तेज गति से भागती गाड़ियाँ थी और नजर के सामने समुद्र का अंतहीन जल। मेरी नज़र दूर जाते एक जहाज पर टिक गयी। मैं उसे जाते हुए तब तक देखती रही जब तक वह मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गया। आज एक बार फिर जहाज मेरे दिल को बेचैन कर गया था हालाँकि उस घटना को घटित हुए कई साल बीत गये थे।

.          काँफ़ी का प्याला कब का खाली हो गया था और मुझे इस बात का अहसास तक नहीं हुआ। आँखे जहाज पर टिकी थीं, पर दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था। दो घन्टे बाद मुझे एयरपोर्ट के लिए निकलना था। माँ की सूनी आँखें मेरा पीछा कर रहीं थी। उनकी आँखों में एक बेबसी थी, जैसे कह रही हो “मत जाओ निकी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।”

.          आठ साल पहले माँ को लकवे का दौरा पड़ा था। तब से वह बेबस, लाचार बिस्तर पर ही थीं। इन आठ सालों में बहुत कुछ बदल गया। पापा हमें छोड़ कर इस दुनिया से चले गये। मैं नौकरी में तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ती गयी। बस एक माँ थी जो वहीं की वहीं ठहरी रही।

.          माँ ने संगीत में विशारद किया था। वह बहुत अच्छा गाती थी। उसके गले में साक्षात सरस्वती का वास था। उसकी गायकी को नये आयाम मिलें, इसलिए पापा ने मुम्बई तबादला ले लिया। उस समय मेरी उम्र करीब दो साल थी। मेरी और घर की देखरेख में पापा ने अपना पूरा सहयोग दिया। माँ के बचपन की सहेली कविता मुम्बई में ही रहती थी। उसका शहर के नामी लोगों के बीच उठना-बैठना था। उसने अपने किसी जान पहचान वाले से कह कर माँ को रेडियो पर गाने का मौका दिलवाया। गाना बहुत पसंद किया गया। अखबारों में माँ की तस्वीर के साथ उनकी गायकी की खूब प्रशंसा हुई-“एक उभरती गायिका ने संगीत की दुनिया में मचाई धूम।” उस गाने को सुन कर एक बड़े संगीतकार ने माँ को अपनी फिल्म में एक गीत गाने का मौका दिया। साथ ही उन्होंने यह वादा भी किया, “यदि गीत सफल रहा तो मेरी अगली फिल्म के सभी गाने तुम ही गाओगी।” माँ बहुत उत्साहित थी और उन्हें देख कर पापा भी खुश थे।

.          जिस दिन गाना रिकार्ड होना था मुझे तेज बुखार हो गया। पापा ने माँ से कहा,  “तुम निश्चिंत हो कर जाओ। मैं निकी को संभाल लूँगा।”  जब माँ जाने लगी तब मैंने उसका हाथ पकड कर कहा “माँ मत जाओ।” माँ ने संगीतकार को फोन कर के मना कर दिया। उसने कठोर शब्दों में कहा, “एक गीत की ख्याति के बाद तुम्हारे इतने नखरे हैं तो आगे क्या होगा।” उन्होंने माँ की पूरी बात सुने बिना ही फोन काट दिया। कुछ समय बाद एक  पत्रकार ने संगीतकार से पूछा  “आप उस नई कलाकार को गाने का मौका क्यों नहीं देते?” संगीतकार ने जवाब दिया “मौका दिया था पर वह बहुत ही गैरजिम्मेदार और अव्यावसायिक है। रिकाँर्डिंग के दिन अंतिम क्षण पर फोन कर के मना कर दिया। मेरा लाखों का नुकसान हो गया। ऐसी स्थिति में मैं क्या कोई भी मौका नहीं देगा।”  इस साक्षात्कार के बाद माँ को दुबारा कभी फिल्मों में गाने का अवसर नहीं मिला।

.          माँ के आग्रह करने पर कविता ने एक समारोह में माँ का एक गाना करवाने का वादा किया। जिस दिन माँ का कार्यक्रम था उसी दिन मेरे स्कूल में भी एक उत्सव था। मैं पहली बार स्टेज़ पर गाने वाली थी। संगीत मेरे खून में था और मेरी गुरु मेरी माँ थी। उसके बिना इतने लोगों के बीच गाना मेरे लिए मुमकिन नहीं था। मैंने आँखों में आँसू भर कर कहा “माँ, तुम्हारे बिना मुझसे न होगा।” माँ ने एक बार फिर हाथ आया मौका छोड़ कर मुझे प्रोत्साहित किया। ऐसे न जाने कितने मौके थे जब माँ ने अपना सब कुछ छोड़ कर मेरा और पापा का साथ दिया था। आज जब उन्हें मेरी जरूरत थी तब मैं अपने कैरियर की खातिर उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ कर जा रही थी।

.          अचानक कमरे में रखा फ़ोन बज उठा। मैंने भाग कर रिसीवर उठाया,  होटल रिसेप्शनिस्ट का फोन था, “आपको एयरपोर्ट ले जाने के लिए गाड़ी तैयार है।” रिसीवर रख कर मैं तेजी से बाथरूम की ओर चल दी। तैयार हो कर मैं नीचे पहुँची तो मेरी नजर होटल की बेकरी शाँप में रखे केक पर पड़ी। कल तो माँ का जन्मदिन है। पेरिस जाने की हड़बड़ाहट और माँ के रहने की व्यवस्था करने में मैं इतनी बड़ी बात भूल गयी। मैंने दुकान पर जा कर कल सुबह माँ के लिए केक भेजने का अनुरोध किया। केक आर्डर कर के मैं एयरपोर्ट के लिए निकल गयी। रास्ते भर माँ और उसके साथ बिताये पल याद आते रहे और याद आता रहा मेरा अतीत।

.          माँ के भरसक प्रयास के बाद भी मेरा रूझान संगीत की तरफ नहीं हो पाया। मैं कुछ अलग करना चाहती थी। मैं फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी इसलिए मैंने दिल्ली में दाखिला ले लिया। कोर्स पूरा होते ही मेरी शादी एक मर्चेन्ट नेवी आँफिसर से तय हो गयी। सब बहुत खुश थे, माँ-पापा और खास कर के मेरी दोस्तें। उनका कहना था “निकी, तू तो बड़ी भाग्यशाली है। तेरी तो ऐश हो गयी। पूरी दुनिया घूमेगी, वह भी मुफ्त में। हमको तो तुम से जलन हो रही है।”  जहाँ सब खुश थे, मैं ढेर सारी आशंकाओं से घिरी थी। दिल में एक अजीब सी घबराहट थी, पता नहीं कैसी जिन्दगी होगी? मुझे लगता था कि इस तरह की नौकरियों में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव अधिक होता है। पार्टियों में शराब का सेवन और अंग्रेजी धुनो पर नाचना। मैं इन सब से कोसों दूर भारतीय सभ्यता में लिप्त एक पारंपरिक लड़की थी। जब मैं ने पिताजी से अपने इस भय का जिक्र किया तो उन्होंने हँस कर टाल दिया। इस के अलावा और बहुत सारी दुविधायें थी। मुझे तो बस पर बैठते ही उल्टियाँ शुरू हो जाती हैं, फिर जहाज पर मेरा क्या होगा?  एक अनिश्चित जीवन शैली होने से मेरे कैरियर का क्या होगा?

.          ढेर सारी शंकाओ के बीच मेरी और जतिन की शादी हो गयी। उन्हें दो महीन बाद जहाज पर जाना था। मैं भी उनके साथ जाने वाली थी, इसलिए उनका कहना था कि अभी हमको अपना पूरा समय अम्मा के साथ बिताना चाहिए।

.          हमारी शादी को एक हफ्ता ही हुआ था कि अचानक जतिन को नौकरी से बुलावा आ गया। इतनी जल्दी मेरे कागज तैयार नहीं हो सकते थे, इसलिए उन्हें अकेले ही जाना पड़ा। तीन महीने बाद वापस आने का वादा कर के वह चले गये। चलते समय उन्होंने कहा, “दोनों लोग एक दूसरे का ख्याल रखना।”

.          जतिन के अचानक चले जाने से मैं काफी उदास थी। बहुत सारे अरमान एक साथ चकनाचूर हो गये थे। तीन महीने के लिए कोई नौकरी भी नहीं कर सकती थी। पहले सोचा कि मुम्बई माँ-पापा के पास चली जाऊँ, पर अम्मा से कहने की हिम्मत नहीं हुई। सोचा कुछ दिनों बाद बात करूँगी।

Emotional Life Story in Hindi

.          अम्मा दिन भर मन लगा कर रखतीं। एक पल भी उदास नहीं होने देती। कभी अपनी सहेलियों के घर ले जाती और कभी वह लोग आ जातीं। उनकी दोस्तें तो अम्मा से भी ज्यादा रौनक लगातीं। कभी हम सब ताश खेलते, कभी फिल्म देखने जाते और कभी बाजार। अम्मा खूब खरीदारी करवातीं। हमेशा मेरी पसन्द का ही खाना बनता फिर चाहे अपना घर हो या अम्मा की दोस्तों का। मैं सब की लाड़ली बन गयी थी। मैं मजाक में कहती, “अम्मा, अपने बेटे को कह दो मैं तो नहीं आ रही उसके पास। वहाँ न तो इतना लाड़-प्यार मिलेगा और न यह मस्ती।”

.          जतिन को गये दो महीने हो गये थे। एक रात मैं और अम्मा खाने के बाद टी.वी. देख रहे थे। तभी समाचार में पता चला कि जतिन के जहाज को समुद्री लुटेरों ने अपने कब्जे में ले लिया है। यह सुन कर मैं घबरा कर रोने लगी पर अम्मा ने अपने को मजबूत रखते हुए मुझे संभाला।

.          हम हर क्षण एक भय से गुजर रहे थे। एक-एक पल भारी था। अम्मा की दोस्तों में से कोई न कोई हमेशा हमारे पास रहता। अम्मा मेरे सामने चट्टान की तरह मजबूत खड़ी रहती। मेरे खाने-पीने से लेकर हर बात का ध्यान रखतीं। रात में देर तक वह मेरे बालों को सहलाती रहती। उनको देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उनका इकलौता बेटा, उनका एकमात्र सहारा, इतनी बड़ी मुसीबत में है। रात को जब भी मैं जागती, अम्मा को भगवान के आगे दिया जलाये, पूजा करते ही पाती। मैं उनके दिल की हालत समझती थी। उनके दिल में आशंकाओं का समंदर था जिसे बाँधे हुए वह अपने बेटे के सही सलामत लौटने की दुआ कर रहीं थीं। मेरे सामने मजबूत खड़ी माँ ईश्वर के आगे कुछ टूटती हुई दिखाई पड़ती।

.          एक हफ्ते बाद खबर मिली कि लुटेरों ने जहाज के कप्तान और एक अफसर जतिन की निर्दयता से हत्या कर दी। खबर मिलते ही अम्मा के सब्र का बाँध टूट गया और वह मुझसे बिना कुछ कहे ही अपने बेटे के पास चली गयीं। यह तक नहीं सोचा कि उनका बेटा मेरी जिम्मेदारी उन्हें दे गया था। अब मेरे लिए उनका क्या हुक्म था। शादी के इन दो-ढाई महीनों में मुझे जो लगाव अम्मा से हो गया था, वह शायद अपनी माँ से भी नहीं था।

.          पापा आ कर मुझे अपने साथ मुम्बई ले गये। मुझे इस रूप में देख कर माँ सहन नहीं कर पायी और उनके पूरे शरीर पर लकवा मार गया। पापा अपने को बहुत असहाय महसूस कर रहे थे। कहीं न कहीं उन्हें इस बात का अफसोस भी था कि उन्होंने यह शादी मेरी इच्छा के विरूद्ध की थी। मैंने उनसे कहा था   “पापा इस नौकरी में बहुत खतरा है। कही जहाज डूब गया?” पापा ने इसे मेरा बचपना समझ कर कहा था “खतरा तो बेटा सड़क पर चलने में भी है।” जल्द ही पापा भी हमें छोड़ कर चले गये। इतने कम समय में इतना कुछ देख लिया था कि दुबारा जिन्दगी में रंग भरने की कोई इच्छा ही नहीं रही। अब मेरी जिन्दगी के दो ही मकसद थे। एक तो माँ की देखभाल करना और दूसरा मेरा कैरियर। जिसकी शुरूवात गुजारा चलाने के लिए हुई थी, पर अब वह मेरा जूनून बन गया था।

.          ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और एक ही झटके में मैं  अपनी पिछली जिन्दगी से निकल कर टैक्सी की पिछली सीट पर आ गई। एयरपोर्ट आ गया था। कुछ भारी मन और बोझिल कदमों से  मैं अंतर्राष्ट्रीय प्रस्थान के गेट की ओर चल दी। जब मेरी बाँस ने पेरिस में नया आँफिस बनाने की जिम्मेदारी मुझे दी तब मैं बहुत खुश हुई। यह एक बहुत बड़ा काम था और पेरिस में काम करने का सपना तो मेरा काँलेज के समय से था। अभी सब मुझे बधाई दे ही रहे थे कि माँ का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया। मैंने बाँस को अपनी मजबूरी बताते हुए मना कर दिया। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा “निकी, सिर्फ एक साल की ही तो बात है। एक बार आँफिस ठीक से शुरू हो जाये, फिर तुम किसी और को अपना काम सौंप सकती हो।” मैंने परेशान होते हुए कहा, “एक साल बहुत लम्बा समय होता है। इस बीच मेरी माँ का क्या होगा।” उन्होंने सहज भाव से कहा  “तुम उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ सकती हो।” मैंने कुछ नाराज होते हुए कहा  “वृद्धाश्रम ! कभी नहीं। वहाँ की हालत बहुत खराब होती है। कोई ठीक से देखभाल नहीं करता।” बाँस ने एक बार फिर समझाया “मुम्बई के बाहर एक बहुत ही अच्छा वृद्धाश्रम है, आश्रय। बहुत ही साफ-सुथरा और सभी सुविधाओं से युक्त,  देखभाल भी घर के सदस्य की तरह करते है। मेरी बहन की सास वहाँ रहती है, इसलिए मैं निश्चित रूप से कह रही हूँ। खर्चा जरूर थोड़ा ज्यादा है, पर तुम उसकी चिन्ता मत करो उसे कम्पनी देख लेगी।” मैंने कुछ झिझकते हुए कहा, “वैसे भी माँ को मेरे बिना रहने की आदत नहीं है। मैं उनको छोड़ कर कभी नहीं जाऊँगी।” उन्होंने कुछ कड़क होते हुए कहा, “निकी, ऐसे मौके रोज-रोज नहीं मिलते। सफलता के लिए लोग क्या-क्या त्याग करते हैं। अगर तुम नहीं जाना चाहतीं तो तुम्हारी मर्जी। मेरे पास और भी विकल्प हैं।”

.          कोई भी फैसला लेने से पहले मैंने स्वयं आश्रय का निरीक्षण किया। उस जगह को मैंने बिल्कुल वैसा ही पाया जैसा कि बाँस ने बताया था। मुझे लगा कि घर पर तो माँ दिन भर बस एक नर्स के साथ अकेले ही रहती है। यहाँ तो उसे काफी हमउम्र मिल जायेंगे। मैं आश्रय से संतुष्ट थी इसलिए मैंने जाने का फैसला कर लिया।  मैं खुश थी पर माँ उदास। जैसे-जैसे मेरे जाने का दिन निकट आ रहा था माँ की उदासी बढ़ रही थी। आश्रय में उन्हें छोड़ते समय उनके साथ-साथ मेरी भी आँखे भर आयीं थी। तभी से मन में उदासी और ग्लानि थी। माँ की आँखें अभी भी मेरा पीछा कर रही थी। मैंने पलट कर देखा, टैक्सी अभी भी वही खड़ी थी। मैं लगभग भागती हुई टैक्सी पर पहुँच गयी। ड्राइवर ने मुझे इस अवस्था में देख कर आश्चर्य से पूछा, “क्या हुआ दीदी? कुछ छूट गया क्या ?”  मैंने आँखों में आँसू भर कर भर्राई हुई आवाज में कहा, “हाँ, कुछ बहुत कीमती। आश्रय चलेंगे?” कहते हुए मैं टैक्सी में बैठ गई।

.          गाड़ी तेज रफ्तार से खाली पड़ी सड़क पर दौड़ रही थी। मैंने खिड़की का शीशा नीचे कर दिया था। बाहर से हल्की ठन्डी हवा आ रही थी। सब कुछ शांत हो गया था। न कोई घबराहट, न उदासी, न ग्लानि और न ही कोई अपराध की भावना।

.          ड्राइवर ने गाड़ी आश्रय के पोर्टिको में रोक दी। मैंने खुश हो कर किराये के साथ एक अच्छी रकम टिप के रूप में दी। उसने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा। मैंने मुसकुरा कर कहा, “आज मेरी माँ का जन्मदिन है। दुआ करना मेरा और उनका साथ हमेशा रहे।”

.          केक ले कर मैं माँ के कमरे में पहुँची। “जन्म दिन मुबारक हो”, कहते हुए मैंने माँ को गले लगा लिया। माँ की बुझी आँखों में खुशी की लहर आ गई और यही मेरी असली सफलता थी।

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6 Responses

  1. Parul says:

    Very touching and true to life story 👍👍

  2. SHALINI Jain says:

    Nice story .An inspiration for the children who are leaving parents in old home for their career or spouses .we sh remember the sacrifice of our parents for bringing up

  3. Neera Srivastava says:

    Very nice story.
    A great lesson for present age children.

  4. Neera Srivastava says:

    Nice emotional story describing true feelings of a daughter

  5. Priti Agrawal says:

    Very nice story…वच्चो को अपने माता पिता के बलिदान हमेशा याद रखने चाहिए क्योंकि उन्होंने भी अपने वच्चों के लिए अपने वच्चों का भविष्य बनाने के लिए वहुत से वलिदान दिये हैं। very nice story describing true feelings of a daughter.

  6. Pooja tiwari says:

    ऐसी तरक्की का क्या फायदा ? जो माँ को एक आश्रम मे छोडकर नई नौकरी मे चले गये . आज बहुत सारी लडकियो कि हालात ऐसे ही है .

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