“औलाद” Interesting Hindi Story with Moral

Interesting Hindi Story with Moral

हमारा छोटा सा चार लोगो का खुशहाल परिवार था, मॉ-पापा, भय्या और उन सबकी लाड़ली मैं, मीनाक्षी। पापा बहुत ही अनुशासन प्रिय व सख्त स्वभाव के थे पर जब मैं हठ करती तो सारी सख्ती भूल जाते। मॉ बहुत ही सीधी, शॉत व सरल स्वभाव की थी। जब कभी डॉटती भी तो ऐसा लगता जैसे थपकी दे कर लोरी सुना रही हो। मैं जोर से हँस देती “क्या मॉ, कम से कम गुस्सा तो ठीक से किया करो।” वह मुस्कुरा कर शॉत हो जाती। भय्या की तो मैं जान थी। वह मेरी हर जिद् पूरी करते। कुल मिला कर पूरा घर मेरी फरमाइशे पूरी करने में लगा रहता।

मेरी बी.ए. की परिक्षायें समाप्त हुई और बुआ-फूफा ने मेरी शादी का जिक्र छेड़ दिया। फूफाजी ने अपने ही विभाग का एक लड़का बताया। उन्होंने पूरे विश्वास से कहा  “मैं इस लड़के की गारंटी लेता हूँ। साल भर से यह लड़का हमारे पड़ोस में रहता है। हमारे यहॉ तो रोज का उठना-बैठना है। लडका इंजीनियर होने के साथ-साथ देखने में सुन्दर, बॉका जवान और बहुत ही सज्जन व संस्कारी है। मीनू के लिए इस से अच्छा वर नहीं मिलेगा।” पापा ने मेरी तरफ देखा और मैंने पलकें झुका ली।

पिछले जाड़े की छुट्टियों में मैं बुआ के पास कानपुर गयी थी। वहीं मेरी मुलाकात गौतम से हुई। देखने में वह बिल्कुल किसी फिल्मी हीरो की तरह था। उसका आकर्षक व्यक्तित्व मेरे दिल में कुछ-कुछ कर गया। ऐसा नहीं था कि मुझे उससे प्यार हो गया हो। यह केवल एक आकर्षण मात्र ही था। घर वापस आने के कुछ दिनों बाद ही समाप्त भी हो गया।

पापा ने मॉ और भाई से सलाह की, सभी को फूफाजी की पसन्द और समझ पर पूरा भरोसा था। मॉ ने मेरा विचार पूछा, “देख हमें तो सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा है। तेरी क्या मर्जी है? हम तेरी सहमति के बिना आगे नहीं बढ़ेंगे।” मन तो किया कि तुरन्त हॉ कर दूँ पर इतने लोगो के बीच में चुप रहना ही उचित था। मैंने गर्दन झुका कर मूक सहमति दे दी।

गौतम के मॉ-पापा बनारस में रहते थे। एक हफ्ते बाद वह कानपुर आने वाले थे। बुआ ने कहा “मैं पहले गौतम के विचार जान लूँ फिर आप लोग आ कर उसके मॉ-बाप से मिल लेना।” दो दिन बाद बुआ-फूफा वापस अपने घर चले  गये। मेरे दिल में धुक-धुक मची थी कि गौतम क्या जवाब देगा। बुआ ने उसी रात गौतम को खाने पर बुलाया और रिश्ते की बात छेड़ दी। उसने झिझकते हुए कहा “आप यदि मॉ-पापा से बात करें तो बेहतर रहेगा।” बुआ मुस्कुरा कर बोलींं “उनसे तो करेंगें ही, पर पहले हम तुम्हारे विचार तो जान लें।” गौतम ने अपनी तरफ से हॉ कर दी। साथ ही उसने कहा कि आखिरी फैसला मेरे मॉ-पापा का ही होगा। बुआ ने फोन करके हमें वहॉ बुला लिया। मैं बहुत  खुश थी ऐसा लग रहा था जैसे सपनों का राजकुमार यथार्थ में मिलने वाला हो।

गौतम के मॉ-पापा से मुलाकात हुई। उसकी मॉ काफी तेज लगीं। लगातार बोलती रहीं “पढ़ाई-लिखाई तो ठीक है, पर घर का काम तो कर लेती हो न?” “मेरे गौतम को तरह-तरह के व्यंजन खाने का शौक है।” “हम बहुओं से नौकरी नहीं कराते। नौकरी का विचार भी मन में न लाना।” पापा बहुत सीधे, शान्त व सज्जन व्यक्ति लगे, बिल्कुल गौतम की तरह। अगले दिन जब हम वहॉ से वापस आने लगे तो मॉ ने बुआ से कहा “गौतम की मॉ काफी तेज है। मुझे कुछ घबराहट सी हो रही है।” बुआ बोलीं, “मॉ को छोड़ो, लड़का तो हीरा है, हीरा। ज्यादा सोचो मत और मन पक्का कर लो”

हमारे लखनऊ पहुँचते ही बुआ का फोन आ गया, “भाई बधाई हो। सोने के कंगन लूँगी। उन लोगों ने हॉ कर दी है। इस इतवार को वह लोग लखनऊ आ कर सगाई करना चाहते हैं।” पापा बोले “तुम को भी बधाई हो। अरे! कंगन क्या जो चाहे ले लो, सब कुछ तुम्हारा ही है।” बुआ से बात करके पापा अत्यधिक प्रसन्न लग रहे थे। मॉ की खुशी कुछ फीकी सी थी। मैं समझ गयी कि वह गौतम की मॉ को ले कर परेशान हैं। मैंने उन्हें गले लगाते हुए कहा “चिन्ता मत करो, सब अच्छा ही होगा।” उन्होंने मेरे चेहरे पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा, “तू तो खुश है न?” मैंने शर्मा कर कहा “हॉ, बहुत।” और उनके गले लग गयी।

गौतम अपने मॉ-पापा के साथ हमारे घर आये। बुआ-फूफा पहले ही आ गये थे। सगाई की रस्म सम्पन्न हुई। बुआ ने मुझे और गौतम को छत पर भेज दिया ताकि हमें कुछ वक्त साथ में मिल जाए। हमारे बीच कुछ औपचारिक बातें हुई। तभी बुआ ने आवाज़ लगा कर हमें नीचे बुलाया। दो महीने बाद की तारीख तय हुई थी। बुआ ने खुश हो कर कहा “जल्द ही तू मेरी पड़ोसन बन जायेगी।” सगाई से शादी के बीच अक्सर गौतम के फोन आते और हम देर तक बातें करते रहते। हम एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जान गये थे। धीरे-धीरे हम दोस्त बन रहे थे।

शादी के बाद करीब 10 दिन मैं अपने ससुराल में रही। गौतम की मॉ बिल्कुल भी वैसी नहीं थीं जैसी की पहली मुलाकात में लगी। एक दिन उन्होंने बड़े प्यार से मुझे अपने पास बैठा कर कहा “देखो बेटी! गौतम मेरा इकलौता बेटा है। मेरा सब कुछ और अब तुम्हारा भी। जितना प्यार मैं उससे करती हूँ, उतना ही तुम भी करोगी। जब हम दोनों के सम्बन्ध अच्छे होगें तभी वह खुश रहेगा। हम दोनों का ही यह प्रयास होना चाहिए कि वह हमेशा खुश रहे।” मैंने उनसे कहा “मॉजी, आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी। आप भरोसा रखें।” वह खुश हो कर बोलीं  “तो फिर लगो गले।” मैं उनके गले लग गयी और हम दोनो की ही आँखें नम हो गयीं।

हम कानपुर आ गये। बुआ ने बड़े प्यार से हमारा स्वागत किया। उन्होंने मुझे घर व्यवस्थित करने में मदद की। जब तक हमारा घर पूरी तरह व्यवस्थित नहीं हो गया, हम बुआ के घर पर ही खाना खाते रहे। एक दिन बुआ ने बताया कि फूफा का स्थानांतरण झॉसी हो गया है। वह लोग हफ्ते भर में ही यहॉ से जाने वाले हैं।

एक हफ्ते बाद बुआ चली गयीं। उनके यहॉ रहने से नयी जगह पर समंजन बैठाने में कोई परेशानी नही हुई। मैं और गौतम उन्हें छोड़ने स्टेशन गये। चलते समय मैं बुआ के गले लग कर रो पड़ी। उनकी आँखो में भी आँसू आ गये। वह प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हुए बोलीं “दोनों लोग अच्छे से रहना। गौतम बहुत अच्छा लड़का है। तुम्हारा बहुत ख्याल रखेगा।”

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गौतम के साथ मेरी जिन्दगी की गाड़ी चल पड़ी। उन्होने मुझे बहुत प्यार व मान दिया साथ ही मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया।  मैंने उनकी सलाह मान कर एम.ए का प्राइवेट फार्म भर दिया। जल्द ही भाई की भी शादी तय हो गयी। छ: महीने बाद का मुहूर्त निकला। भाभी मुझे बहुत पसन्द आयीं। उनसे मिल कर ही मुझे समझ आ गया कि हमारी बहुत पटने वाली है।

छ: महीने पलक झपकते ही निकल गये और भाई की शादी का समय भी आ गया। हम एक हफ्ते पहले ही वहॉ पहुँच गये। धीरे-धीरे घर मेहमानों से भरने लगा। तीन-चार दिन पहले बुआ-फूफा भी आ गये। मैंने खुश हो कर बुआ को गले लगा लिया। उन्होंने धीरे से कान में पूछा  “कोई खुश खबरी नही सुना रहीं?” मैं शर्मा गयी। फिर तो जैसे इस प्रश्न का सिलसिला ही चल पड़ा। भाई की शादी हो गयी और हमारे परिवार में एक और सदस्य जुड़ गया। सभी मेहमान अपने-अपने घर चले गये। हम भी वापस कानपुर आ गये। मैंने गौतम को बताया कि “सभी रिश्तेदारों की जबान पर एक ही प्रश्न था।” उन्होंने गम्भीर स्वर में कहा “अभी इस के लिए जल्दी है। पहले एम.ए तो पूरा कर लो।”

शादी से आए हुए हमें अभी तीन महीने भी नहीं हुए थे कि मॉ ने फोन पर बताया “तुम बुआ बनने वाली हो।” मैं खुशी से झूम उठी। परीक्षाये समाप्त होते ही मैं मॉ के पास पहुँच गयी। इस बार तो मॉ ने भी पूछ लिया “तू कब सुना रही है खुश-खबरी?” मैं पहले से तैयार थी। मैंने झट से कह दिया, “पढ़ाई पूरी होने तक हम दोनों ही बच्चा नहीं चाहते हैं।” इन पन्द्रह दिनों में मेरे और भाभी के बीच काफी गहरा रिश्ता बन गया। मेरी फरमाइशें पूरी करने में भाभी तो भाई से भी चार कदम आगे थी। वहॉ से वापस आने के बाद हम अक्सर फोन पर लम्बी-लम्बी बातें करते। अब मॉ और भाई से ज्यादा मेरी भाभी से बातें होने लगी थी।

Interesting Hindi Story with Moral Value

Interesting Hindi Story with Moral Value

मेरा एम.ए प्रथम वर्ष का रिज़ल्ट आ गया। मैं बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई थी। गौतम काफी खुश थे। वह चाहते थे कि एम.ए. पूरा कर के मैं बी.एड. करूं। नौकरी करना न करना उन्होंने मेरे ऊपर छोड़ दिया था। उनका कहना था कि हर किसी के पास ऐसी डिग्री होनी चाहिए कि जरूरत पड़ने पर वह नौकरी कर सके। मैंने दूसरे साल का भी फार्म भर दिया।

एक दिन सुबह-सुबह भाई का फोन आया “तू बुआ बन गयी है। बेटा हुआ है। जल्दी से आ जा।” भाई की आवाज में खुशी की खनक साफ सुनाई दे रही थी। हम तुरन्त लखनऊ पहुँच गये। भतीजे को गोद में उठा कर मैं फूली नहीं समा रही थी। हफ्ते भर बाद हम वापस कानपुर आ गये। मेरा मन मेरे भतीजे के पास ही अटका रहा। मैं हर महीने दो-तीन दिन के लिए जा कर उससे मिल आती।

मेरी परीक्षायें नजदीक आ गयी थीं, इसलिए मैं सब कुछ भूल कर तैयारी में जुट गयी। परीक्षाये समाप्त होते ही मैं लम्बा प्रोग्राम बना कर अपने भतीजे के पास पहुँच गयी। सारा दिन मैं उसके आस-पास ही मंडराती रहती। उसके साथ वक्त बिता कर मेरे अन्दर की मॉ जाग रही थी। मैं मॉ बनना चाहती थी। यह मेरा सपना था कि मैं एक आर्दश पत्नी और एक अच्छी मॉ बनूँ। नौकरी करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी।

हमारी शादी को दो साल हो गये थे। अब की बार जब मॉजी आयीं तो उन्होंने कहा “बहुत पढ़ाई-लिखाई हो गयी, अब तो हम दादी बनना चाहते है।” एम.ए का परीक्षा फल आने के बाद गौतम बी.एड. का फार्म ले आये। मैंने कुछ झिझकते हुए कहा “नौकरी करने का विचार मेरा कभी से नहीं था और मॉजी भी नहीं चाहती हैं कि मैं नौकरी करूँ। हम दोनों कुछ और ही चाहते हैं।” गौतम मुस्कुरा कर बोले, “मैं भी वही चाहता हूँ।”

भाई ने बेटे की पहली सालगिरह पर एक शानदार दावत का आयोजन किया। मैं और गौतम भी दावत में गये। बुआजी वहॉ पहले से आयी हुई थीं। मुझे घूर कर देखते हुए बोलीं “तू अभी तक सूनी गोद ले कर घूम रही है, और देख तेरी भाभी के दूसरा आने वाला है।” बुआजी की कड़वी बातें सुन कर मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैंने आश्चर्य से भाभी की ओर देखा। भाभी ने हॉ करते हुए गर्दन झुका ली। मैंने अपने को संभाला और भाभी को गले लगाते हुए कहा “बधाई हो भाभी! अब की तो मुझे भतीजी चाहिए।”

महीने पर महीने बीतने लगे पर मेरे घर आशा की कोई किरण नहीं चमकी। जब भी मैं उदास होती गौतम मेरा मनोबल बढ़ाते। एक बार फिर भाई का फोन आया “बेटी हुई है। तुम लोग जल्दी से आ जाओ।” भाई की आवाज में कहीं एक उदासी थी। मैं जानती थी कि यह उदासी बेटी होने की नहीं थी। बेटी को तो वह बेटे से भी ज्यादा प्यार करने वाले थे। यह उदासी मेरे लिए थी। मेरी शादी उनकी शादी से पहले हुई थी, पर मेरा आंगन अभी तक खाली था।

अस्पताल पहुँच कर मैने भतीजी को भाई की गोद में देते हुए कहा “अब मेरी जगह इसको दे दो।” भाई ने उसे झूले में लिटा दिया।  मुझे सीने से लगा कर बोले, “तेरी जगह तो पूरी दुनिया में कोई नहीं ले सकता।” भाई का गला रुंध गया और आँखें नम हो गयीं। मैंने अपने को संभाला। खुशी के मौके पर भावुक होना उचित नहीं था। अकेले में मॉ ने मुझसे कहा “डाक्टर को दिखा ले। सब ठीक हो जायेगा।” मैं एक फीकी सी मुसकान के साथ मुस्कुरा दी।

एक दिन गौतम ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा “तुम बी.एड. का फार्म भर दो । कोई खुश खबरी होगी तो बीच में ही छोड़ देना। सारा दिन खाली बैठ कर क्या करोगी। व्यस्त रहोगी तो मन भी अच्छा रहेगा।” मैंने आँखों में आँसू भर कर कहा “मॉजी से क्या कहूँगी।” गौतम बोले, “तुम उनकी चिन्ता मत करो। मैं उन से बात कर लूँगा।” मुझे गौतम की बात समझ आ गयी।

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मेरा बी.एड. पूरा भी हो गया पर मेरी गोद सूनी की सूनी ही रही। मैंने गौतम से कहा “हमें डाक्टर के पास जाना चाहिए। ऐसा न हो फिर डाक्टर के पास जाने के लिए भी देर हो जाये।” वह मेरी बातों से सहमत नहीं थे पर मेरी खुशी के लिए राजी हो गये। डाक्टर ने हमारी  ढेर सारी जॉचें करवाई। हम बेसब्री से रिपोर्ट का इंतजार करने लगे। हम से ज्यादा इंतजार तो मॉजी को था। पड़ोसी-रिश्तेदार सभी तो उनके पीछे पड़े रहते थे।

डाक्टर का क्लीनिक गौतम के दफ्तर के रास्ते में ही था इसलिए वह रिपोर्ट लेते हुए आने वाले थे। मैं सुबह से इंतजार कर रही थी। गौतम के घर आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा “रिपोर्ट मिल गयी? डाक्टर ने क्या कहा? मैं जल्द ही मॉ बनूँगी न?” उन्होंने टिफिन पकड़ाते हुए कहा “अगले हफ्ते मिलेगी।” मेरा चेहरा उतर गया। चाय के लिए कह कर गौतम कमरे में चले गये।

चाय ले कर जब मैं कमरे में पहुँची तो गौतम बहुत गुस्से में किसी से फोन पर बात कर रहे थे “दूसरी शादी कर लूँ? मॉ कमी मुझ में है, उसमें नहीं। आप ऐसा करें उसकी दूसरी शादी करा दें।” मैं वहीं ठिठक गयी, यानि की रिपोर्ट आ गयी है। गौतम ने मुझसे झूठ क्यों बोला? मॉ को बताने से पहले मुझे बताना चाहिए था। “वहॉ क्यों खड़ी हो? चलो चाय पीते हैं” गौतम की आवाज सुन कर मैं चौक गयी। मैने हिम्मत करके पूछा “आप ने झूठ क्यो कहा? सब ठीक हो जायेगा न?” गौतम ने मुझे सीने से लगा लिया “मेरा विश्वास करो जल्द ही सब ठीक हो जायेगा। अब हम इस बारे में और बात नहीं करेंगे।”

कई महीने बीत गये। एक दिन गौतम की अलमारी साफ करते हुए मुझे रिपोर्ट मिल गयीं। शाम को जब वह घर आये तब मैंने रिपोर्ट उनके सामने रखते हुए कहा “मैं मॉजी को फोन करके सच बताने जा रही हूँ ताकि वह आपकी दूसरी शादी करा दें।” गौतम ने गुस्से में फोन छीनते हुए कहा “आज के बाद यह बात भूल कर भी न कहना। वादा करो की तुम रिपोर्ट की सच्चाई कभी किसी को नहीं बताओगी।” मैने सिसकियॉ लेते हुए कहा “आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? मेरी कमी को अपनी क्यों कह रहे हैं?” गौतम ने पानी का गिलास मुझे पकड़ाते हुए कहा “रिपोर्ट की सच्चाई जानते ही सब मुझे दूसरी शादी की सलाह देंगे। मुझ पर हर समय दवाब डालेंगे। तुम को उल्टी-सीधी बातें कहेंगे, जो कि मुझे मंज़ूर नही होगा। मैं पुरूष हूँ, इसलिए सब की ज़ुबान खामोश रहेगी।” उन्होंने हाथ बढ़ा कर मुझ से वादा मॉगा कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। मैंने बेमन से उनका हाथ थाम लिया।

मेरे लिए वक्त जैसे थम गया था, पर सच तो यह था कि समय बहुत तेजी से चल रहा था। मेरी भतीजी दो साल की हो गयी थी और भाभी एक बार फिर मॉ बनने वाली थी। मॉ बहुत बीमार थी। उसे देखने के लिए मैं लखनऊ गयी। इस बार भाभी के चेहरे पर वह चमक नहीं दिखाई दी जो पहली दो बार थी। मैंने उनसे पूछा “भाभी सब ठीक है न?” भाभी उदास हो कर बोलीं, “मैं तो तीसरा बच्चा बिल्कुल नहीं चाहती थी। तीन-तीन बच्चे पालना कोई आसान न होगा। यदि लड़का हुआ तो फिर भी ठीक है। यदि लड़की हो गयी तो क्या होगा? तुम्हारे भय्या की कमाई में दो-दो लड़कियों को पार लगाना मुमकिन नहीं।” मैंने प्यार से भाभी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा “भाभी यदि लड़की हो तो आप मुझे दे देना।” भाभी ने मुस्कुरा कर कहा “अरे! लड़का हो या लड़की आपका ही है।” मैंने खुश होकर एक बार फिर पूछा “पक्का कह रही हो न, इस बच्चे पर मेरा हक होगा?” भाभी ने कहा “पक्का, आपका हक होगा।” मैंने भाभी को गले लगा लिया। तभी भाई भी वहॉ आ गये। मैंने उन्हें पूरी बात बता दी। बच्चा देने की बात पर भाई भी सहमत थे। कानपुर वापस आ कर जब मैंने गौतम को बच्चे वाली बात बताई तो वह बहुत खुश हुए। किसी अपने का बच्चा गोद लेने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। वह अनाथ आश्रम से बच्चा लेने के पक्ष में नही थे।

मैं हर महीने १०-१२ दिन भाभी के पास बिताने लगी। मॉ अब ठीक थी पर उसमें इतनी ताकत नही थी कि वह भाभी की पहले जैसी देखभाल कर पायें। मैं भाभी का पूरा ख्याल रखती। उन के साथ डाक्टर के पास जाती और बच्चे के बारे में पूरी जानकारी लेती। भाभी के पास रह कर मैं वह सब महसूस करना चाहती थी जिससे भगवान ने मुझे दूर रखा था।

जैसे-जैसे समय पास आता गया मेरा वहॉ रहने का समय बढ़ता गया। गौतम ने भी मुझे कभी नहीं रोका । वह मेरी भावनाये समझ रहे थे। एक दिन भाई ने मुझे सुबह-सुबह जगा कर कहा “जल्दी से तैयार हो जाओ। अस्पताल जाना होगा।”  मैने गौतम को फोन कर दिया और तैयार हो कर भाभी के पास पहुँच गयी। भाभी का हाथ पकड़ कर मैंने एक बार फिर पूछा “भाभी बच्चा मुझे दोगी न?” भाभी तकलीफ़ में थी। पलकें झपका कर उसने हॉ कर दिया।

आखिरी समय पर कुछ जटिलताये आने की वजह से भाभी और बच्चे दोनों की ही जान को खतरा हो गया। दो घन्टे बाद डाक्टर ने आकर बताया “लड़की हुई है। दोनों पूरी तरह से स्वस्थ हैं।” यह दो घन्टे हमारे लिये बहुत भारी थे। गौतम ने मेरे पास आकर धीरे से कहा “मॉ बनने की बधाई हो।” मैंने शर्मा कर कहा “आपको भी।”

एक हफ्ते तक भाभी अस्पताल में ही रहीं। बच्चे को अलग कमरे में रखा गया। मैं पूरे समय बच्चे के कमरे के बाहर ही खड़ी रहती। गौतम भी मेरे साथ ही रहते।  भाई भाभी का पूरा ध्यान रख रहे थे, इसलिए मुझे उनकी चिन्ता नहीं थी। बीच-बीच में जा कर मैं भाभी का हाल पूछ आती।

भाभी और बच्चा हँसी-खुशी घर आ गये। भाभी बहुत कमजोर थीं। उन्हें आराम की जरूरत थी। मैं ही रात-दिन बच्चे की देखभाल करती। मेरे अन्दर की ममता हिलोरे मार रही थी। भाभी को उसे दूध पिलाता देख मेरा भी मन करता कि मैं उसे सीने से लगा लूँ। एक यही काम था जो मैं चाह कर भी नहीं कर सकती थी।

भाभी धीरे-धीरे ठीक हो रही थीं। मैंने महसूस किया कि वह बच्चे का सारा काम खुद ही करने की कोशिश कर रही है। कई बार वह अप्रत्यक्ष रूप से यह भी अहसास दिलाती कि वह ही बच्चे की मॉ है। मैंने भाभी से पूछा “भाभी गुडिया मुझे दोगी न?” उन्होंने दबी जबान से कहा “आपकी ही है।” मैं समझ गयी भाभी का लगाव बच्चे के लिए बढ़ रहा है। मैं जल्द-से-जल्द बच्चे को यहॉ से ले जाना चाहती थी। मॉ ने यह कह कर मना कर दिया कि पूजा के बाद ही हम उसे ले जा सकेंगे।

पूजा के एक दिन पहले गौतम भी आ गये। बच्चे के लिए हम दोनों ही काफी उत्सुक थे। मैंने सभी लोगो के बीच कहा, “मैं और गौतम चाहते हैं कि पूजा में गुड़िया के साथ हम दोनों बैठें।” मॉ ने यह कह कर मना कर दिया कि “पूजा में तो भाई-भाभी ही बैठेंगे। उसके बाद वह तुम्हें सौंप देगे।” भाभी कुछ आक्रामक होते हुए बोली “गुड़िया अभी बहुत छोटी है। उसे अपनी मॉ की जरूरत है।” वहॉ उपस्थित सभी लोग भाभी का यह रूप देख कर दंग रह गये। मैंने भाभी को प्यार से सहलाते हुए कहा “भाभी मैंने डाक्टर से बात कर ली है। उन्होंने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है।” भाभी गुस्से में बोली “डाक्टर से ज्यादा उसकी मॉ को पता है।” मैंने माहौल को हल्का करने के लिए हँसते हुए कहा “हॉ, तो उसकी मॉ ही तो कह रही है कि कोई दिक्कत नहीं है।” भाभी गुस्से में चीखते हुए बोली “सिर्फ मॉ कह देने से कोई मॉ नही बन जाता। जान पर खेल कर उसे जन्म देना पड़ता है। दूध पिला कर पालना पड़ता है।”

मैंने धैर्य रखते हुए विनम्रतापूर्वक भाभी से कहा “आप परेशान न हों। हम गुड़िया को दो-तीन दिन रुक कर ले जायेंगे।” भाभी का गुस्सा अभी भी सातवें आसमान पर था “दो-तीन दिन में क्या उसे अपनी मॉ की जरूरत नहीं रहेगी। मैं बच्चा नहीं दूँगी। आप जब चाहे यहॉ आकर इसे खिला सकती है।” यह सुन कर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। मैं लड़-खड़ा कर गिरने वाली थी कि गौतम ने मुझे सम्भाल लिया। मैंने आँखों में आँसू भर कर गौतम की ओर देखा, उनकी भी आँखें नम थीं।

मुझे लगा इस समय भाभी से बात करने का कोई फायदा नहीं होगा। मैं कल सुबह उनसे बात करूँगी। गौतम भाभी की बातों से काफी आहत थे। उन्होंने कोई भी बात करने से साफ इंकार कर दिया। हम बच्चे के लिए पूरी तरह मन बना चुके थे। लगातार उसके साथ रहने की वजह से मेरा उससे काफी लगाव भी हो गया था। अब मैं पीछे नही हट सकती थी।

सुबह मैंने भाभी के कमरे में जा कर कहा “भाभी आप बतायें कि हम गुड़िया को कब ले जा सकते है।” उन्होंने गम्भीर स्वर में कहा “कभी नहीं।” मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा “ऐसे न कहो भाभी, मैं गुड़िया के बिना मर जाऊँगी।” भाभी ने तेज आवाज़ में कहा “महीने भर उसके साथ रह कर आप मर जायेंगीं। मेरे बारे में सोचिये। मेरा क्या होगा। यदि मुझे कुछ हो गया तो मेरे बच्चों की देखभाल कौन करेगा।” मैंने हाथ जोड़ कर भाभी से कहा “मैंने आप से बार-बार पूछा था। आप ने हर बार हॉ कहा। अब आप अपने वादे से पीछे नहीं हट सकती।” भाभी कटाक्ष करते हुए बोली “मैं कहॉ पीछे हट रही हूँ। मैं आज भी कह रही हूँ कि आपकी ही है, पर एक भतीजी के रूप में। यदि आप मेरा और मेरे बच्चों का भला चाहती हैं तो इस बात को यहीं भूल कर, वापस अपने घर चली जाइये।” मैं भाभी का व्यवहार देख कर दंग थी। मैंने गुड़िया के सर पर हाथ फिराया और चुपचाप वहॉ से चली आयी। पीछे से भाभी ने चीखते हुए कहा “जब तक आपके सिर से बच्चे का भूत न उतर जाये, तब तक कृपया कर यहॉ न आइयेगा।”

आँखों में आँसू लिए मैं कमरे से बाहर आयी तो दरवाज़े पर गौतम और उनके पीछे भाई व मॉ खड़े थे। गौतम ने मेरा हाथ पकड़ा और सूटकेस ले कर वह चल दिये। भाई ने आगे बढ़ कर उनका रास्ता रोक लिया। गौतम ने हाथ जोड़ कर मॉ और भाई से विदा ली। मैं एक जिन्दा लाश की तरह उन के साथ चल दी। मेरी आँखों में आँसू थे, पर एक भी आँसू बाहर नही आया। भाई और मॉ में इतनी भी हिम्मत नही थी कि वह हमें रोकते।

मुझे वापस आए एक हफ्ते से ज्यादा हो गया था। मैं न रोती, न बोलती और न ही ठीक से खाती-पीती। मुझे गुड़िया से बहुत लगाव हो गया था। मैं अपने आप को उसकी मॉ के रूप में देखने लगी थी। भाभी को तो वैसे भी लड़की नही चाहिए थी फिर अचानक उनका मन क्यों बदल गया। मैंने तय किया आज के बाद मैं किसी भी बच्चे को गोद लेने का नही सोचूँगी। किसी से इतना प्यार नहीं करूँगी। किसी पर इस तरह अपनी ममता नही लुटाऊँगी। जो चीज मुझे भगवान ने ही नहीं दी वह मुझे भाभी क्या देती।

एक दिन भाई हम लोगों से मिलने आए। मेरी हालत देख कर वह बहुत दुखी व शर्मिंदा हुए। चलते समय मुझे सीने से लगा कर बोले “मैं तो तुम दोनो से क्षमा मॉगने लायक भी नही रहा। जल्दी से ठीक हो जा, नहीं तो मैं अपने को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा।”

गौतम के जोर डालने पर मैंने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। स्कूल से आ कर शाम तक मैं गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती। दिन भर व्यस्त रहती। गौतम का प्यार मेरे लिए काफी था। मैंने बच्चे के बारे में सोचना छोड़ दिया था। इस घटना के एक महीने बाद ही मॉ चल बसीं। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा पर वह यह सदमा सह नहीं पायीं। मैं और गौतम मॉ के अंतिम दर्शनों के लिए गये। बाहर वाले कमरे में उनका पार्थिव शरीर रखा था। हम वहीं मॉ के पास बैठ गये। मॉ के शरीर को लाश गाड़ी में रख दिया गया। हमने नम आँखों से उन्हे विदाई दी। उनके जाते ही हम भी वहॉ से चले आये। दो साल पहले पापा अचानक हार्ट फेल के कारण हमें छोड़ कर जा चुके थे। मॉ के बाद हमारा सम्बन्ध उस घर से हमेशा के लिए समाप्त हो गया।

मॉ को गये दो साल बीत गये थे। मैं और गौतम दोनों ही बच्चे के बिना रहना सीख गये थे। हॉलाकि भाभी की कही बातें आज भी मेरे कानों में गूँजती थी। भाभी ने उसके बाद कभी फोन नहीं किया और न ही मैंने। भाई से फोन पर बात हो जाती थी। कभी-कभी वह आकर हम से मिल भी जाता था। हमें लखनऊ बुलाने की वह कभी हिम्मत नहीं कर पाया। मैंने कभी उससे गुड़िया के बारे में कोई बात नहीं की और न ही उसने।

एक रात हम सोने जा रहे थे कि दरवाज़े पर घन्टी बजी। मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने पापा जी के साथ मॉजी खड़ी थीं। उनकी गोद में एक बड़ी-बड़ी आँखों वाली गोल-मटोल प्यारी सी करीब छ: महीने की बच्ची थी। उसे देखते ही गोद में लेने को मेरा मन बेचैन हो उठा। मैंने उत्सुकता से पूछा “यह कौन है?” तब तक गौतम भी वहॉ आ गये। मॉ बोली “मेरे चचेरे भाई की पोती है। उनके बेटे-बहू की सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। भाई का एक ही बेटा था उसे भी भगवान ने छीन लिया। वह तो इस उम्र में इस की देखभाल कर नहीं सकते। वह चाहते थे कि इस की मौसी इसे कानूनी तौर पर गोद ले ले। मौसी भी तो मॉ जैसी ही होती है। वह तो तैयार थी पर उसके पति व ससुराल वाले नहीं माने। मैंने भाई को सलाह दी की वह इस को कानूनी तौर पर तुम लोगों को गोद दे दें। बच्ची को मॉ-बाप मिल जायेगें और तुम लोगों को औलाद का सुख।”

मैंने मॉ से बच्ची को ले कर सीने से लगा लिया। मेरे बरसों का सपना आज पूरा हो गया था। मैं एक प्यारी सी बच्ची की मॉ बन गयी थी।

Written By –

-निधि जैन

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1 Response

  1. omprakash sahu says:

    आपकी कहानी दिल को छू गयी. मेरी भी कोई संतान नहीं है. बहुत दिनों से मुझे भी दुसरे के बच्चों को गोद लेने का मन कर रहा है. आपकी पूरी स्टोरी बिलकुल मेरे जीवन से है . आंसू आ गए इस कहानी को पढ़कर .

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