“निष्ठावान” पर कहानी – Story on Loyalty in Hindi

एक दिन जब मैं कॉलेज से लौटी तो एक 14-15 साल का लड़का मॉ के पास बैठा मटर छिलवा रहा था। मॉ ने मुझे देखते ही पूछा “आ गयीं? आज बड़ी देर कर दी? ” वह लड़का उठा और भाग कर रसोई में चला गया। मैने मॉ से इशारे से पूछा “यह कौन हैं?” मॉ ने बताया “तुम्हारी मौसी के यहॉ जो पुराना माली है, यह उसी का लड़का है। उन्होने घर के कामो में मेरी मदद के लिए भेजा है। यह यही हमारे पास ही रहेगा।”

“यहॉ? यहॉ कहॉ रहेगा?” मैने चौकते हुए पूछा। मॉ समझ गयी कि मैं यह पसन्द नहीं कर रही हूँ। वह मुझे समझाते हुए बोली “तुम परेशान मत हो, मैं देख लूँगी कि क्या करना है।” तब तक वह लड़का एक ग्लास में पानी ले कर आ गया और खुश होते हुए बोला “दीदी पानी” मैने झल्लाते हुए कहा “ठीक है, ग्लास मेज पर रख दो” यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी।

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पता नहीं क्यो मुझे उस लड़के का दीदी कहना पसन्द नही लग रहा था, एक अजीब सी चिढ़ हो रही थी। जबसे मेरा छोटा भाई अपनी इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने मुम्बई गया था तब से मैं ऐसी ही चिड़चिड़ी हो गयी थी। मैं उसे बहुत ज्यादा याद करती थी। हम बचपन से एक ही कमरा, अलमारी और मेज साझा करते थे। हम अक्सर छोटी-छोटी बातों पर लड़ते, पर अब वह सब बातें मुझे बहुत याद आती हैं। उसका मुझे तंग करना, मेरी चोटी खींच कर भाग जाना और फिर उसे मारने के लिए मेरा उसके पीछे भागना। मेरे पढ़ते समय उसका पास में खड़े होकर गेंद खेलना और फिर मेरा उस पर गुस्सा होना। स्कूल में मिली ट्रॉफियॉ पहले मुझे देना। यह सब बहुत याद आता है। मैं किसी से भी अपने मन की बात नहीं कहती हूँ पर मॉ सब समझती है।

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Loyalty Story in Hindi

मॉ का सारा समय नन्दू-नन्दू कहते ही बीतने लगा। पहली बार कोई मॉ को काम में हाथ बटाँने वाला मिला था। मॉ बहुत खुश थी। वह उससे काम कम लेती और उसका ख्याल ज्यादा रखती। खुद नाश्ता मिले न मिले पर नन्दू को नाश्ता वक्त से मिलना चाहिए। बाजार से कुछ भी खाने का सामान आता तो मॉ सबसे पहले नन्दू को देती यह सब देख मैं और चिड़ जाती। भाई के पुराने कपड़े ठीक कर के मॉ ने तो उसे बिल्कुल राजा बाबू बना दिया था। नन्दू भी मॉ का बहुत ध्यान रखता। दिन भर मॉ के साथ-साथ ही रहता।

रक्षा-बन्धन आने वाला था। मैने भाई को राखी कोरियर से भेज दी थी। यह पहली बार था कि हम इस मौके पर साथ नही थे। मन अन्दर ही अन्दर उदास था। रक्षा-बन्धन वाले दिन मैं सुबह से ही उदास और गुमसुम थी। नाश्ता भी ठीक से नही किया था। मैं अपने कमरे में बैठी प्रोजेक्ट का काम कर रही थी कि नन्दू ने आकर एक राखी मेरी मेज पर रख दी। मैने गुस्से से पूछा “यह क्या है? यहॉ क्यों रखा?” उसने मुस्कुराते हुए कहा “आप उदास न हों, मुझे राखी बॉध दें। मैं भी आप की रक्षा करूँगा।”

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मैने गुस्से से राखी कमरे के बाहर फेक दी।  “जाओ यहॉ से और आगे मेरे कमरे में मत आना। रक्षा करूँगा, पता भी हैं रक्षा कैसे करते हैं।” नन्दू की आँखों में आँसू आ गये। मॉ ने प्यार भरा हाथ उसके सर पर रख दिया “दुखी नहीं होते। दीदी परेशान हैं न, इसलिए ऐसे कह दिया। जाओ जल्दी से रसोई में जा कर बून्दी का लड्डू खा लो। तुम्हें बहुत पसन्द है न।” वह सर झुका कर वहॉ से चला गया। उसके जाते ही मॉ मेरे ऊपर बरस पड़ी “यह क्या तरीका है बात करने का। बिन मॉ का बच्चा है। कोई भाई-बहन भी नही है। हम को ही अपना परिवार मानता है। तुम को नहीं बॉधनी राखी तो मत बॉधो पर एक तरीका होता है मना करने का” कहते हुए मॉ वहॉ से चली गयी।

रक्षा-बन्धन को करीब दस दिन बीत गये थे। एक दिन मॉ नन्दू के साथ सब्जी लेने जा रही थी। मेरी मेज पर पैसे रखते हुए बोली “दरवाजा बन्द कर लो और राशन वाला सामान लायेगा, रखवा लेना और पैसे दे देना।” मैं घर पर अकेली थी, तभी दरवाजे पर घन्टी बजी। मैने दरवाजा खोला तो सामने राशन वाला खड़ा था। सामान दरवाजे के पास ही रखने को कह कर मैं पैसे लेने अन्दर चली गयी। पैसे ले कर मैं जैसे ही पलटी वह आदमी मेरे ठीक पीछे खड़ा था। उसे वहॉ देख कर मैं डर गयी। मैने गुस्से से कहा “तुम यहॉ कैसे आ गये? बाहर चलो मैं आ रही हूँ।” वह विषेली मुस्कान से मुस्कुराया और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी। इससे पहले कि मैं शोर मचाती उसने दूसरे हाथ से मेरा मुहँ बन्द कर दिया। उसकी आँखे और उसकी मुस्कुराहट देख कर मैं अन्दर तक कॉप उठी। मैं अपने को उसके चंगुल से छुड़ाने का प्रयास कर ही रही थी कि तभी पीछे से किसी ने उस पर वार किया और वह वही गिर पड़ा।

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मैने देखा नन्दू पीछे खड़ा था और उसके हाथ में मेरे भाई का बैट था। तभी मॉ भी वहॉ आ गयी। मैं भाग कर मॉ के सीने से लग गयी और जोर-जोर से रोने लगी “मॉ यदि आज नन्दू वक्त पर आ कर मेरी रक्षा न करता तो न जाने क्या हो जाता।” नन्दू सहमा हुआ एक कोने में खड़ा मुझे देख रहा था। मॉ ने मुझे कुर्सी पर बिठा कर तुरन्त पुलिस को फोन किया।

पुलिस ने उस आदमी की तहकीकात कर के हमें बताया “अरे! यह तो कई जगह ऐसी वारदाते कर चुका है। दुकानदार बिना पुलिस जॉच के इन्हें रख लेते हैं और फिर यह घर में घुस कर गंभीर अपराध को अंजाम देते हैं।” पुलिस वाले ने नन्दू की पीठ थपथपाते हुए कहा “तुम बहुत बहादुर बच्चे हो। तुम ने अपनी सूझ-बूझ से एक बड़ा हादसा होने से रोक लिया। हम तुम्हारा नाम राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए भेजेगें। 26 जनवरी को तुम्हें इस बहादुरी के लिए इनाम दिया जायेगा।”

नन्दू ने नज़रे नीचे किये हुए कहा “मुझे इनाम नही चाहिए। मैं तो बस अपनी दीदी की रक्षा कर रहा था।” उसकी बाते सुन कर मैं भाग कर कमरे में गयी और राखी ला कर नन्दू की कलाई पर बॉध दी। नन्दू का चेहरा खुशी से चमक उठा। मॉ ने झट से एक लड्डू उसके मुँह में रख दिया। यह देख, सभी लोग हँस पड़े।

अब तक राशनवाला भी होश में आ गया था। पुलिसवाले उसे हथकड़ी लगा कर अपने साथ ले गये। हम सब ने राहत की सॉस ली और अपना-अपनी दिनचर्या में लग गये। उस दिन के बाद मेरा व्यवहार नन्दू के प्रति पूर्ण रूप से बदल गया।

Written By –

– निधि जैन

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1 Response

  1. Baba Bihari says:

    Shabdo ka chayan apne accha Kiya hai.
    Thoda sa or isme gambhirta add kare

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