2 Amazing Stories in Hindi – पढ़िए 2 सबसे अमेजिंग स्टोरीज इन हिंदी
कुछ कहानियां बहुत ही रोचक होती है। जिस वजह से ऐसी कहानियों को सुनने में बच्चे ही नहीं बड़े भी दिलचस्पी दिखाने लगते है। आपके लिए हम ऐसी ही 2 amazing stories in Hindi लेकर आए है जो न केवल रोचक है बल्कि प्रेरणादायक भी है।
Short Story in Hindi – कड़वे कद्दू की यात्रा
एकबार तीर्थ यात्रा जाने वाले लोगो का एक संघ एक संत के पास पहुंचा और संत को भी तीर्थयात्रा पर चलने के लिए आग्रह करने लगा। लेकिन संत ने तीर्थयात्रा पर जाने से इंकार कर दिया । संत ने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू दिया और कहा “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।” तीर्थयात्रियो ने बिना संत की बातों पर गौर किए उस कद्दू को उठाया और अपने साथ यात्रा पर ले गए
जहाँ – जहाँ भी तीर्थयात्रियो का संघ गया, और स्नान किया वहाँ – वहाँ उन्होनें कद्दू को भी स्नान करवाया , मंदिर में जाकर दर्शन किया तो कद्दू को भी दर्शन करवाया।
यात्रा पूरी होने के बाद सब संत के पास वापस आए और उन्हें कद्दू पकड़ा दिया । संत ने यात्रियों को भोज का निमंत्रण दिया। भोज में आए सभी लोगो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दू की सब्जी विशेष रूप से बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “ये सब्जी कड़वी है।” इस पर संत ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि “ये सब्जी तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इस में कड़वाहट है !”
संत की बात सुन यात्रियों को एहसास हो गया कि उन्होनें तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है।
अँधविश्वास – A Short Amazing Story in Hindi
एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ एक जंगल में आश्रम बनाकर रहते थें, एक दिन कहीं से एक बिल्ली का बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया। महात्माजी ने उस भूखे प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी खिलाई। इसके बाद बिल्ली का बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा।
लेकिन उसके आने के बाद महात्माजी को एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि जब वे सायं ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कन्धे या सिर पर बैठ जाता। तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा देखो मैं जब सायं ध्यान पर बैठू, उससे पूर्व तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, महात्माजी के ध्यान पर बैठने से पूर्व वह बिल्ली का बच्चा पेड़ से बॉधा जाने लगा।
एक दिन महात्माजी की मृत्यु हो गयी तो उनका एक प्रिय काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा। वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पूर्व बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता। फिर एक दिन बिल्ली ही खत्म हो गयी। सारे शिष्यों की मीटिंग हुयी, सबने विचार विमर्श किया कि बड़े महात्माजी जब तक बिल्ली पेड़ से न बॉधी जाये, तब तक ध्यान पर नहीं बैठते थे। अत: पास के गॉवों से कहीं से भी एक बिल्ली लायी जाये।
आखिरकार काफी ढॅूढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बॉधने के बाद महात्माजी ध्यान पर बैठे। उसके बाद कई बिल्लियॉ मर गई और कई महात्माजी भी मर गए। लेकिन उस आश्रम में बिल्ली को पेड़ पर बाँध कर ध्यान के लिए बैठने की पंरपरा खत्म नहीं हुई ।
परम्परा को निभाते निभाते शिष्य ये भी भुल गए कि उनके महात्मा ने उन्हें ये आदेश किस वजह से दिया था ।
शिक्षा – पंरपरा को अँधविश्वास में नहीं बदलना चाहिए । पंरपरा को निभाने से पहले उसके पीछे की वजह जान लेना जरुरी होता है ।
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First one is nice story keep it up
Nice story
प्रशंसनीय कहानी