गुलक वाला बैंक – A Small Moral Story in Hindi
Short Moral Story in Hindi
बात उन दिनों की है, जब बच्चे छिप छिपकर पैसो को गुलक मे रखते थे, आजकल के बच्चों की तो बात ही अलग है। कहाँ वो समय था जहां एक एक रूपया मिलना भी खजाने मिलने जैसा लगता था, और आज तो कोई पूछता तक नही उसे। खैर इस कहानी मे उस एक रूपय की कीमत लाखों से ज्यादा है. एक छोटे से कस्बे में एक परिवार रहता था,सुखद और शांत। उस परिवार में दादा-दादी, मां-बाप और एक छोटा सा शैतान बच्चा दीपू, यह सब एक साथ रहते थे। समय सबका एक जैसा तो नही रहता था, कभी अच्छे दिन आते थे, तो कभी बुरे भी पर सब एक साथ मिलकर उसको झेला करते थे, पर एक चीज कभी बंद नही होती थी, दीपू का बैंक। हर रोज उसे एक रूपय मिल ही जाया करते थे। जहाँ छुट्टियों में, त्योहारों मे सभी बैंक बंद होते थे, वही इन दिनों में दीपू की सबसे ज्यादा कमाई होती थी।
हर दिन जमा करते करते उसने कई छोटे बडे गुलक अपने पास रखे हुए थे, सब अचछा चल रहा था। दीपू भी अब बडा हो रहा था, और उसको भी अब सही गलत, अचछा बुरा समझ आने लगा था। अब उसको भी घर की परिस्थिति का ज्ञान होने लगा था, कि कैसे दादा जी की दवाईयां समय से नही आती, कैसे पापा के जूते नये नही है, कैसे मम्मी हर त्योहार पर घर से बाहर नही जाती और कैसे दादी बिना चश्मे के दुनिया देखती थी, पर तब भी पापा दीपू को हर रोज की तरह एक रूपया देना नही भूलते थ। दीपू सब शांत होकर देख रहा था, और उसने सोचा कि अब दीपू का गुलक बैंक ही सबकी जरूरत पूरी करेगा,किसको क्या पता था कि एक रूपय की कीमत आखिर है क्या, सबने तो यह सोचा था की बच्चा खुश हो जाता है, और एक रूपया मे क्या आता है।
A Small Moral Story in Hindi
अब जैसे घर मे धीरे धीरे सब कुछ बदलने लगा था, दादी के सिरहाने किसी ने चश्मा रख दिया था, जिसे पहन कर दादी के चेहरे पर अलग ही खुशी थी। दादा जी की दवाईयां भी आजकल समय पर आ जाया करती थी, दीवाली पर पता नही मम्मी के अलमारी मे किसी ने नई साडी रख दी थी, और पापा नये जूते देख हैरान थे। सब कुछ जैसे अचछा होने लगा था, सबने सोचा की यह सब दीपू के पापा ने किया। खैर यह सिलसिला चलता रहा, और दीपू भी हर रोज की तरह एक रूपय जमा करता रहा, सब खुश थे और दीपू को सबकी खुशी देखकर बहुत सूकून मिलने लगा। एक दिन दादा जी ने सबसे कहा कि सब कितना अचछा हो रहा है, बेटा तूने सब कैसे किया? दीपू के पापा ने बोला कि यही तो मै पूछने वाला था, सब सुनकर हैरान थे, कि सवाल सबका एक पर जवाब किसी के पास नही था।
तभी दीपू ने गुलक लाकर सबको कहाँ कि पापा यह सब मैने किया, और मेरे गुलक बैंक ने, और जो आप मुझे हर रोज एक रूपया देते हो उसने। यह सुनकर सब मौन हो गए, और सबकी आँखें नम हो गईं, सबने दीपू को गले लगाया और बहुत आशिर्वाद दिया। इस कहानी का यही एक सार है, कि जीवन में कोई भी परिस्थिति क्यूँ ना आए, सदा थोडा थोडा करके जमा करना चाहिए, और पाई पाई की कीमत समझनी चाहिए।
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भूतपूर्व शोधर्थी, इस समय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में विद्यार्थी. मुझे साहित्य से प्रेम है, कविताएँ लिखने पढ़ने में रुचि है.