भारत-पाक विभाजन : जिम्मेदार कौन – India Pakistan Partition in Hindi
आज पूरे 1 वर्ष के बाद लवी अपने बच्चों के साथ मम्मी पापा से मिलने आई थी। बच्चे व लवी के भाई के बच्चे मिलकर शाम को खेल रहे थे लवी के मम्मी पापा टीवी देख रहे थे इसी बीच लवी के मम्मी पापा में बहस होने लगी और बात काफी आगे बढ़ गई लवी की मम्मी चाहती थी कि वह टीवी पर अपना प्रिय सीरियल बुनियाद देखें जो कि भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित है जबकि लवी के पापा न्यूज़ देखना चाहते थे दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे मगर टीवी तो एक ही था सब बच्चे नाना नानी को लड़ते हुए देख रहे थे और मन ही मन मुस्कुरा रहे थे कि यह तो हमारी तरह लड़ रहे हैं। तभी लवी के पापा ने कहा की विभाजन का सीरियल क्या देखना है हमने तो विभाजन अपनी आंखों से देखा है । यह सुन बच्चे काफी रोमांचित हो गए और उन्होंने नाना जी को विभाजन की कहानी सुनाने को कहा टीवी बंद हो चुका था और नाना जी ने कहना शुरू किया।
India Pakistan Partition Story in Hindi
मैं आपको विभाजन की कहानी सुनाता हूं। विभाजन मतलब पाक और हिंदुस्तान का विभाजन कैसे हुआ और उसमें वर्तमान पाकिस्तान के मशहूर प्रांत खैबर पख्तून पाकिस्तान का सबसे ऊपरी हिस्से का प्रांत है जिसकी सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। भारत का सबसे आखरी रेलवे स्टेशन और उसका मशहूर जिला बन्नू के वह रहने वाले हैं। भारत और पाक के बंटवारे के संदर्भ में हमने विभाजन का वह दृश्य अपनी आंखों से देखा हमारा जिला बन्नू बहुत ही खूबसूरत और चारों ओर चारदीवारी से घिरा हुआ था। जिसके 6 दरवाजे वहा से अफगानिस्तान की सीमा और नो कंट्री लैंड था। पख्तून बिलोज और कबाइली के कबीले रहते थे ।वह कबीले कभी भी आकर हमारे खूबसूरत जिले को घोड़ों के समूह में लुटेरों की तरह लूट लेते थे ।जिसको वहां की भाषा में गद्दी के नाम से पुकारा जाता था।
बनू एक बहुत ही खूबसूरत जिला था जिसमें अधिकतर आबादी पठानों की थी सन 1947 की 7 अगस्त को हमारे पड़ोस के एक पठान परिवार के तांगे वाले ने हमें यह सलाह दी कि आप अगर यहां मुसलमान बनकर रहना चाहो तो कोई बात नहीं वरना यहां आपकी जिंदगी को खतरा हो सकता है। हमारे परिवार में यूनानी हिकमत का काम कई पुस्तो से होता था इसलिए वह तांगेवाला हमारे परिवार से बहुत प्रेम मानता था। उसकी सलाह पर हमने अपने खूबसूरत और खानदानी मकान को छोड़कर भारत की तरफ आने का फैसला किया। तब हमारे पिता हकीम जी हमारी माता हमारी बड़ी बहन और हम तीन भाई तांगे पर बैठे और जो जरूरी घरेलू सामान था वह उसमें लाद दिया तांगे वाले से हमने अपने शफा खाने की तरफ चलने को कहा जो सब्जी मंडी के पास था ।तांगा वहां पहुंचा हकीम जी ने दुकान खोली और एक पेटी जिसमें हमारे खानदानी कुश्ते रखे थे और हिकमत की कुछ किताबें जो हस्त लिखी थी तांगे में रखी उसी समय वहां मारकाट का दौर आरंभ हो गया।
तांगेवाला हमारे जिले के मशहूर आदमियों में गिना जाता था। हमारी तरफ बढ़ती भीड़ को रोकते हुए उसने चेतावनी दी कि कोई भी हकीम साहब के परिवार को कुछ भी नहीं कह सकता अगर किसी ने ऐसी हिमाकत की तो मैं उसे गोली से शुट कर दूंगा दंगाई पीछे हट गए। तांगे वाले ने हिफाजत से हमें पंजाब की तरफ आने वाली ट्रेन में आंसू भरी निगाहों से विदा किया। यह हमारे खानदानी पैशे की ही मेहरबानी है कि हम वहां से हिफाजत से हिंदुस्तान की तरफ आ सके।
गाड़ी ने हमें पंजाब की तरफ रवाना किया और हम लोग फगवाड़ा के स्टेशन पर उतर गए। वहां की एक मशहूर धर्मशाला में हमारी बड़ी बहन और उनके जेठ और देवर सब परिवार सहित हमारा इंतजार कर रहे थे। वहां हमने एक रात आराम से काटी और दिल से उस तांगे वाले का शुक्रिया अदा किया तब तक पंजाब में भी फ्रंटियर की तरफ से आने वाले हिंदुओं की जुबानी बन्नू के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी थी।
Bharat Pakistan Vibhajan ki Kahaani
अब मैं कहानी को बननू फिर दोबारा ले चलता हूं यह 9 अगस्त 1945 की बात है सारे सरकारी कर्मचारी और चुने हुए जनप्रतिनिधि सब एक समुदाय विशेष के थे उन सब ने मिलकर के एक हवा बनाई की बनू से पंजाब की ओर 10 तारीख को एक आखरी ट्रेन जाएगी उसके बाद पंजाब की तरफ हिंदुस्तान की ओर कोई और ट्रेन नहीं जाएगी। इस अफवाह का यह असर हुआ के शहर के सभी संपन्न और मालदार आदमियों ने सिफारिश करके ट्रेनों में अपनी टिकट की व्यवस्था कर दी यही उन लुटेरों की स्कीम थी। जो मालदार आदमियों को लूटना चाहते थे 10 तारीख अगस्त 1947 मे ट्रेन खचाखच भरी हुई थी ट्रेन के पायदान के ऊपर छतों पर और जहां जिसको जगह मिली 500 आदमियों के डब्बे में हजार बारह सौ से ज्यादा लोग भरे यह नजारा उस तरह था। जिस तरह आपने फिल्म गदर के अंदर देखा होगा।
ट्रेन अपने स्टेशन से चल पड़ी 12 किलोमीटर जाने के बाद ट्रेन की पटरी पर पेड़ों के बड़े-बड़े लट्ठे डाल दिए गए थे ट्रेन रुक गई और पख्तून कबीले के पठान और बंजारे लुटेरों ने बहुत बेदर्दी से ट्रेन को लूटा मालदार लोगों को बेदर्दी से लूटा गया जवान लड़कियों को उठाकर साथ ले गए बाकी लोगों को बेदर्दी से खत्म कर दिया गया। ट्रेन के इंजन को ट्रेन से अलग करके उसके ड्राइवर को कहा गया कि वह आगे जाकर के पंजाब के आदमियों को बता दें ही अब सारी ट्रेन कट कर ही आएंगी और ड्राइवर को कहा गया यह खबर आपको पंजाब में सबको बतानी है कि हम किसी को भी अब जिंदा नहीं भेजेंगे जब ट्रेन का इंजन पंजाब की सीमा मे गया और वहां पता लगा किस तरह फ्रंटियर के आदमियों को बेदर्दी से पूरी ट्रेन को काट दिया गया । तो पूरे पंजाब में एक कोहराम मच गया और सरदारों में इस बात की यह प्रतिक्रिया हुई वहां भी दूसरे समुदाय के आदमियों को मारकाट शुरू हो गई।
हकीम साहब और उनके परिवार के लोग काफी घबरा गए थे हकीम साहब ने अपने तीनों लड़कों के हाथ पर ओम शब्द गुदवाया और उनके सिर मुंडवा कर चोटी रखें गले में जनेऊ डाला ताकि दूर से आने वाले आदमियों को यह महसूस हो जाए कि यह हिंदू समुदाय के हैं। क्योंकि सरदार सिखों के अतिरिक्त सभी बिना पगड़ी वालों को दूसरे समुदाय का समझकर मारने लगे थे किसी तरह 10 तारीख की रात मुश्किल से हम लोगों ने फगवाडे में ही काटी मारकाट होने की वजह से लाशों को उठाने वाला कोई नहीं था। सब और लूटपाट मच गई गिद्ध लाशों को नोच नोच कर खा रहे थे। शहर में हैजा फैल गया हम लोग वहां से जालंधर की ओर रवाना हुए और हकीम साहब के दामाद और उनके कुनबे के लोग दिल्ली की ओर रवाना हुए। जालंधर में पहुंचकर हम लोग अपनी एक रिश्तेदारी में रूके वहां भी ज्यादा दिन तक हम लोग नहीं रूक सके हमारे पिता हकीम साहब खानदानी हकीम थे वह हरिद्वार में रहने की ठान चुके थे। क्योंकि हरिद्वार ही आयुर्वेदिक दवाइयों का एक ऐसा स्थान है जहां आयुर्वेद की अनंत औषधियों का भंडार है। मगर किस्मत ने हमारी जिंदगी की कहानी किसी और शहर के लिए लिखि थी।
Bharat aur Pakistan ka Vibhajan
जालंधर से जब हम ट्रेन में बैठ कर हरिद्वार की ओर चले तो सालदा ट्रेन में नगीने से एक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ा और बहुत देर तक हकीम साहब के पास खड़ा रहा। भीड़ भीड़ बहुत थी आदमी पर आदमी चढ़ा हुआ था। हजारों की भीड़ में बैठने की जगह कहां हकीम साहब ने उस खड़े हुए आदमी को खुद खड़े होकर बैठने की जगह दी और कहा कि मैं बहुत दूर से आ रहा हूं आप बैठिए मैं थक गया हूं। बातचीत आरंभ हुई उस आदमी ने हकीम साहब से उनकी दास्तान के बारे में पूछा तो मुसाफिर जिनका नाम रामप्रसाद था उन्होंने हकीम साहब से कहा कि हमारा एक दोस्त बहुत सख्त बीमार है उसको शहर के बाहर एक मकान में रखा गया आदमी बहुत मालदार है। लेकिन अपने कपड़े फाड देता है इस वजह से उसे आबादी से दूर एक मकान में रखा गया। आप उनका इलाज कर दें हरिद्वार न जाए उनको आप ठीक कर दे मैं आपको मुंह मांगी कीमत दिलवा दूंगा।
मुरादाबाद के स्टेशन से हम लोग चन्दौसी आने वाली ट्रेन में बैठ गए और चंदौसी पहुंचकर हम लोगों को उसी मकान में रहने की व्यवस्था कर दी गई। हकीम साहब ने मरीज को देखा मरीज के हथेली के नाखूनों में कुछ देख कर उन्हें उनकी बीमारी के बारे में अंदाज हुआ। मरीज बहुत मालदार था और और प्रदेश के अच्छे-अच्छे डॉक्टरों को दिखाकर मायूस हो चुका था। उसे अपनी सुध नहीं थी हकीम साहब ने राम प्रसाद से एक शर्त रखी यह दशहरे के दिन थे मैं मरीज को ठीक कर दूंगा चाहे मुझे इतनी मेहनत करनी पड़े मगर मैं जो मांगूंगा वह रकम आपको देनी होगी। बात तो हो गई और हकीम साहब ने अपनी शर्त के हिसाब से दिवाली के दिन तक मरीज को ठीक कर दिया और उन्हें लेकर बाजार तक पैदल लेकर आए पूरे शहर में हंगामा हो गया कि यह हकीम जो फ्रंटियर से आया है। इसने एक ऐसे मरीज को ठीक किया है जिससे प्रदेश के अच्छे अच्छे डॉक्टर भी ठीक नहीं कर पाए।
बात पूरे शहर में बिजली की तरह पहुंच गई मरीज अपनी दुकान पर पहुंचा शर्त के अनुसार जो रकम तय हुई थी उससे काफी कम रकम हकीम साहब को दी गई और उन्हें इस बात के लिए राज़ी करने की कोशिश की गई कि वह यहीं पर रह जाएं। अपना शफाखाना यही खोल ले व हम एक फार्मेसी बनाएंगे आप उसमें अपने सभी नुस्खे फार्मेसी को दे दे। लेकिन किसी के अधीन होकर काम करना हकीम साहब को गवारा नहीं था। उन्होंने उस रकम को लेकर बाजार के पास ही अपना एक किराए की दुकान का इंतजाम किया और जो रकम मिली थी वह एडवांस में 1 साल के किराए के रूप में दुकान मालिक को दे दी और खाली हाथ ही घर पर पहुंचे अगले दिन अपनी खानदानी कुशते की पेटी लेकर अपनी दुकान पर आए चटाई बिछाकर बैठ गए।
शहर में उनके आमद की खबर रंग लाई और मरीजों के लाइन लग गई। हर मरीज को कुशते की पुड़ियां दे कर किसी ना किसी आयुर्वेदिक पौधा लाने के लिए कहा किसी को ग्लो लाने के लिए कहा तो किसी को नींम किसी को ग्वार का पाठा आयुर्वेदिक औषधियों का ज्ञान होने के कारण ग्रामीण अंचलों के आदमियों ने देसी दवाई उनके पास लानी शुरू कर गाड़ी चल निकली और हम चनदौसी के निवासी हो गए। मुद्दा यह है यह विभाजन किसने करवाया और क्यों करवाया विभाजन से आए हुए लोगों को देश ने सम्मान पूर्वक तो लिया ।लेकिन हमारे नाम के आगे शरणार्थी भगोड़े पंजाबी कई नाम लगा दिए गए।
India Pakistan Partition Story in Hindi
पुश्तैनी जमीन और ज्यादा दिन छोड़कर भारत में आपसे अपने ही देश के लोगों को शरणार्थी का नाम दे दिया गया मन बहुत दुखी था। मगर राजनीति के खिलाड़ियों ने देश को टुकड़ों में बांट दिया और उसका नतीजा भुगता हमारे हिंदू समुदाय के व्यक्तियों बहुत कड़ी मेहनत और मशक्कत से अपने आप को एक नई जगह पर स्थापित करना अपने व्यवसाय को बनाना बच्चों को पालना उनको शिक्षित करना अपना मुकाम बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं। यह आदमी के हाथ में उसकी लकीरें तो हैं लेकिन भाग्य आपको वहीं पर ले जाता है जहां आपने जिंदगी काटनी और दाना पानी जहां का लिखा हो वही जिंदगी कटती है विभाजन एक कलंक है जिसके लिए देशवासी कभी उन आदमियों को माफ नहीं करेंगे जो जो इस विभाजन के जिम्मेदार हैं।
आज पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान साहब भी उसी प्रांत के है। एक बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मुशर्रफ दिल्ली आए थे तब वहां उन्होंने अपनी जन्म स्थान को देखने की ख्वाहिश जाहिर की और चांदनी चौक के एक मोहल्ले में जहां उनका जन्म हुआ था वहां वहां जाना उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी यह होती है दर्द दिल की जुबान कि आदमी का दिल हमेशा उसी स्थान के लिए देखना पसंद करता है जहां उसका जन्म हुआ। इस पीड़ा को राजनेता कभी नहीं पहचानता है उम्मीद है वह लोग जो इस बंटवारे के इस विभाजन के जिम्मेवार है उन्हें कुदरत कभी न कभी सजा जरूर देगी।
यह कहकर नाना जी शांत होकर बैठ गए सभी बच्चों ने ताली बजाकर नाना जी विभाजन की कहानी की बहुत प्रशंसा करी और नानी के हाथ से टीवी का रिमोट छीन कर नाना जी को दे दिया व अगले दिन एक कहानी और सुनाने का वादा लिया।
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डा तिलक राज आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी , जिला मुरादाबाद
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