बचपन का प्यार – एक प्रेम कहानी ( भाग – १) Childhood Love Story in Hindi
Best Childhood Love Story in Hindi
परेश और सुनीता, शिवपुरी में रहते थे। दोनों बचपन से ही बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों एक ही सोसायटी में रहते थे और दोनों का घर भी एक – दूसरे से ज्यादा दूर नहीं था, पास में ही था। परेश ५ वी कक्षा में पढ़ता था और सुनीता ६ वी कक्षा में पढ़ती थी। दोनों का एक ही स्कूल था, ‘ विद्यासागर’।
Romantic Love Story in hindi
दोनों साथ स्कूल में जाते और घर आते वक्त भी दोनों साथ में मस्ती करते – करते आते। घर पे आने के बाद सुनीता पेंटिंग करती और परेश लेखन कार्य में व्यस्त रहता, क्यों की परेश को लिखना बहुत पसंद था। सुनीता स्वभाव से थोड़ी भुलक्कड़ थी। अक्सर वह कई बार छोटी- छोटी चीजों को भूल जाती थी। पेंटिंग और लेखन कार्य के बाद दोनों पार्क के खेलने जाते, साथ में दूसरे बच्चों को भी ले जाते, लेकिन सुनीता अक्सर देर से आती। वह कहती की, “तुम सब जाओ, मैं थोड़ी देर में आती हूं।” लेकिन फिर वह भूल जाती और जब याद आता तब देर से जाती थी। उसकी यह आदत से परेश को बहुत गुस्सा आता था, पर सुनीता जैसी ही आती, उसका गुस्सा शांत हो जाता था। सुनीता आने के बाद, सारे बच्चे अलग-अलग खेल खेलते। कभी कंचा, कभी छुपन-छुपाई, कभी गिल्ली डंडा, कभी क्रिकेट, ऐसे तरह-तरह के खेल खेलते।
परेश अक्सर हर एक खेल में सुनीता को पूरा समर्थन देता। जब छूपन – छुपाई का खेल हो और जब सभी खिलाड़ियों को पकड़ने के लिए सुनीता की बारी आती, तो परेश जान बूझकर सबसे पहले पकड़ा जाता, ताकि वह सुनीता का साथ दे सके, बाकी सब को ढूंढने में। जब आंख – मिचौली का खेल होता था, तब भी वह यही चीज को दोहराता। उसकी यह हरकत से, उनकी टीम का एक लड़का, जिसका नाम रॉनी था, वह परेश की यह बात को जानता था, इसलिए कई बार वह परेश के साथ झगड़ा करता। लेकिन परेश भी कभी पीछे हटा नहीं करता, वह भी उसके साथ भीड़ जाता। परेश और सुनीता, सारे बच्चें चले जाने के बाद, घंटो तक पार्क में बैठते और बहुत सारी बातें करते।
Childhood Love Story in Hindi
यह सिलसिला रोज चला। परेश और सुनीता की दोस्ती से तो दोनों के परिवार को कोई ऐतराज नहीं था,लेकिन पार्क में घंटो तक बैठे रहने वाली बात, रॉनी ने सुनीता के मम्मी – पापा को बता दी, लेकिन सुनीता के मम्मी – पापा ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दोनों ने रॉनी से कहा, “ रॉनी बेटा, सुनीता और परेश अभी बच्चे है। खेल – कूद में व्यस्त होना, बातें करना, यह स्वाभाविक बात है। उनकी दोस्ती से हमे कोई आपत्ति नहीं है।” यह बात सुनकर रॉनी उदास होकर चला गया। मन में यही बात वह दोहरा रहा था की, “यार, इस बार भी ये दोनों बच गए”।
रॉनी ने काफी चाल चली, लेकिन उसकी एक भी चाल कामयाब नहीं हुई। धीरे – धीरे वक्त गुजरता गया, परेश अब १५ साल का हो चुका था और सुनीता १६ साल की। एक बार अचानक, सुनीता बीमार पड़ गई। उसका शरीर तेज़ बुखार से कांप रहा था, डॉक्टर की दवाई के बावजूद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। इन दिनों, दोनों का मिलना और बाते करना भी बंद हुआ। कुछ दिनों तक दोनों, एक – दूसरे से नहीं मिल पाए। परेश दो – तीन बार सुनीता के घर भी गया, लेकिन सुनीता की मम्मी ने यह कहकर उसे वापस भेज दिया की , “ बेटा, सुनीता अभी बहुत बीमार है, वो अपने कमरे में सो रही है, उसको आराम करने दो। जब वह ठीक हो जाएगी, तब तुम दोनों खेलना और बाते करना, अभी उसको आराम करने दो।” परेश को सुनीता की काफी फिक्र हुई, उसने सुनीता के अच्छे स्वास्थ्य के लिए, ईश्वर से प्राथना की। कुछ दिनों के अंदर सुनीता फिर से पहले जैसी ठीक हुई। ठीक होने के बाद उसको परेश से मिलने की इच्छा हुई। उसी दिन शाम को वह दोनों पार्क में उसी जगह पे मिले, जहा दोनों घंटो तक बैठकर बहुत सारी बातें करते थे। सुनीता को ठीक देखकर, परेश की खुशी का ठिकाना नही रहा। उसने सुनीता से कहा, “ सुनीता, आज तुझे ठीक देखकर मुझे अत्यंत खुशी हुई। मेरा मन तो बहुत हुआ तुमसे मिलने का, लेकिन तुमसे मुलाकात नहीं हो पाई; लेकिन आज तुझे ठीक देखकर बहुत अच्छा लगा।” सुनीता ने भी कहा, “ परेश, मैं जब बीमार थी, तब केवल इसी पलों को याद करके मुस्कुराती थी; जो पल मैंने तुम्हारे साथ पार्क में बिताए थे। मेरा भी बहुत मन किया था, की तुमसे मिलु। आज इतने दिनों के बाद तुझे मिलकर और मस्तीभरे पल बीता कर, मुझे इतना अच्छा लगा! में तुझे बता नही सकती, परेश।” आखिरकार सुनीता से रहा नहीं गया और अपने दिल की बात बताते हुए कहा, “ परेश, मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हुं। इतने दिनों से मेरे मन में यह बात थी, लेकिन मैंने तुम्हे नहीं बताई। दरअसल, में तुम्हें बहुत प्यार करती हूं। तुम मेरे मन में बस चुके हो। मैं दिन-रात केवल तुम्हारे ही सपने देखती हूं। यहां तक कि मैं किताब भी पढ़ती हूं, तो मुझे उसके अंदर भी तुम्हारी ही तस्वीर नजर आती हैं। मुझे तुम्हारे सिवा ओर कुछ नहीं दिखता।”
Bachpan ka Pyar Story in Hindi
यह बात सुनकर परेश अत्यंत आनंदित हो उठा! उसका मन कर रहा था की, खुशी से नाचू! क्यों की वह भी यही बात कई दिनों से बताने के लिए सोच रहा था, लेकिन हिम्मत नही हुई। आज सुनीता की हिम्मत देखकर, उसने भी सुनीता से कहा, “ सुनीता, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूं। तुम मेरी हर एक सांस में समाई हुई हो! तुम ही मेरा जीवन हो! तुम ही मेरा सुख – चैन। तुम मेरे रूह में बसा हुआ, वह दिया हो, जो कभी बुझ नही सकता। मैं सिर्फ तुम्हारा हूं।” यह बात कहकर, दोनों एक-दुसरे से गले मिले और अगले कुछ पलों तक, इस कायनात की अलग ही अनुभूति में खो गए; जिस पलों में सिर्फ सुनीता और परेश थे, दूसरा कोई नहीं। दोनों की आंखो में खुशी के आंसू थे। दोनों ने मन ही मन, भविष्य में एक-दूसरे से विवाह करने का निश्चय किया। फिर एक मुस्कान के साथ, दोनों ने एक – दूसरे से विदा ली और अपने – अपने घर चले गए।
सुनीता को हररोज इतना देर से आते हुए देखकर, उसके मम्मी – पापा को उस पर संदेह हुआ। सच जानने के लिए, सुनीता के पापा ने, अगले दिन चोरी – छुपी पार्क जाने का निर्णय लिया। रात को उन्होंने सारी योजना बना ली थी। फिर अगली सुबह सुनीता स्कूल गई। पूरा दिन स्कूल में बिताने के बाद वह घर पहुंची। घर पहुंचकर उसने एक पेंटिंग बनाई। फिर परेश और बाकी सब बच्चों के साथ वह खेलने गई पार्क में। पार्क से खेलकर सारे बच्चें घर आ गए, लेकिन परेश और सुनीता, सभी बच्चों के जाने के बाद, प्यारभरे पल बिताने लगे। सुनीता के पापा, चोरी – छुपी पार्क की ओर जाने लगे। रास्ते में ही उनको रॉनी मिल गया। रॉनी ने उन दोनों की सारी बातें बता दी और वो दोनों अभी कहा पे है, वह भी बता दिया। सारी बाते बताने के बाद, रॉनी मन ही मन खुश होके घर जा रहा था। सुनीता के पापा धीरे – धीरे पार्क में पहुंच गए। पार्क में एक झाड़ी के पीछे छिपकर सारा नजारा देख रहे थे। परेश और सुनीता, एक – दूसरे के बहुत करीब थे और एक – दूसरे की आंखो में खोए हुए थे तथा प्यारभरी बाते कर रहे थे। यह नजारा देखकर, सुनीता के पापा ने जोर से आवाज दिया, “ सुनीता, यह तुम क्या कर रही हो ? ”
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( दोस्तों, कैसा लगा आपको भाग -१? अब सोचिए, आगे क्या होगा? सुनीता के पापा यह दृश्य देखकर क्या करेंगे? क्या सुनीता के मम्मी – पापा इस रिश्ते का स्वीकार करेंगे ? या इस रिश्ते को ठुकरा देंगे ? या फिर दोनों को कुछ सजा देंगे ? क्या होगा! उसके बारे में सोचिए।)
भाग – २ बहुत जल्द…
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दोस्तो, मेरा नाम आशीष पटेल है। प्यार से मुझे लोग ‘आशु’ कहकर बुलाते है। मैं गुजरात राज्य के वडोदरा शहर में से, एक छोटे से गांव ‘विश्रामपुरा’ से हूं। मुझे कहानी लिखना सबसे प्रिय लगता है एवं में इसी लक्ष्य की तरफ अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूं। उम्मीद है, की यह कहानी आपको पसंद आयेगी। अगर आपको यह कहानी पसंद आए, तो अपने दोस्तो के साथ जरूर साझा कीजिएगा। Contact
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