सिंहासन बत्तीसी की परिचय कहानी – Sinhasan Battisi Intro Story in Hindi

Sinhasan Battisi ki Kahaani – Starting Story

प्राचीन समय की बात है। उज्जैन में राजा भोज राज्य करते थे। उसी नगरी में एक किसान का एक खेत था। जिसमें उसने कई खेती लगा रखी थी। एक बार उस खेत से बड़ी अच्छी फसल हुई। लेकिन खेत के बीचों-बीच एक छोटा सा टीला था, जहां जमीन खाली रह गई। हालांकि किसान ने उस जमीन पर भी बीज डाले थे। लेकिन वहां कुछ नहीं उगा। किसान ने वहां खेत की रखवाली के लिए टीला के ऊपर एक मचान बना लिया। जब भी किसान उस मचान पर चढ़ता अपने आप वहां से आवाज़ आने लगता – ‘कोई है? राजा भोज को पकड़ लाओ और सजा दो। मेरा राज्य उससे ले लो। जाओ, जल्दी जाओ।’

धीरे-धीरे सारी नगरी में यह बात आग की तरह फैल गई और राजा भोज के कानों में भी यह बात पहुंची। राजा ने कहा, ‘मुझे उस खेत पर ले चलो। मैं सारी बातें अपनी आंखों से देखना और कानों से सुनना चाहता हूं।’ राजा भोज जब उस जगह पहुंचे तो उन्होंने भी वही देखा कि किसान मचान पर खड़ा है और कह रहा है- ‘राजा भोज को फौरन पकड़ लाओ और मेरा राज्य उससे ले लो।

यह बात सुनकर राजा बहुत चिंतित हो गए। चुपचाप महल में लौटा आए। उन्हें रातभर नींद नहीं आई। सवेरा होते ही उन्होंने राज्य के ज्योतिषियों और जानकार पंडितों को इकट्ठा किया। उन्होंने अपनी गोपनीय विद्या से पता लगाया कि उस मचान के नीचे कुछ छिपा है। राजा ने उसी समय आज्ञा दी कि उस टीला को खुदवाया जाए।

खोदते-खोदते जब काफी मिट्टी निकल गई तो अचानक एक सिंहासन प्रकट हुआ। सिंहासन के चारों ओर आठ-आठ पुतलियां यानी कुल बत्तीस पुतलियां खड़ी थीं। सबके अचरज का ठिकाना न रहा। राजा को खबर मिली तो सिंहासन को बाहर निकालने को कहा, लेकिन कई मजदूरों के जोर लगाने पर भी वह सिंहासन टस-से मस न हुआ।

तब एक पंडित ने कहा कि यह सिंहासन देवताओं का बनाया हुआ है। अपनी जगह से तब तक नहीं हटेगा जब तक कि राजा स्वयं इसकी पूजा-अर्चना और एक बलि न दे। राजा ने ऐसा ही किया। पूजा-अर्चना करते ही सिहांसन ऐसे ऊपर उठ आया, मानो फूलों का हो। राजा बड़े खुश हुए।

सिहांसन में कई तरह के रत्न जड़े थे जिनकी चमक अनूठी थी। सिंहासन के चारों ओर 32 पुतलियां बनी थी। उनके हाथ में कमल का एक-एक फूल था। लेकिन सिंहांसन कही-कही ख़राब हो गया था, जिसे राजा ने हुक्म दिया कि खजाने से रुपया लेकर सिहांसन दुरुस्त करवाएं।

सिंहासन सुंदर होने में करीब पांच महीने लगे। अब सिंहासन दमक उठा था। जो भी देखता, देखता ही रह जाता। पुतलियां ऐसी लगती मानो अभी बोल उठेंगीं। राजा ने पंडितों को बुलाया और कहा, ‘आप लोग कोई अच्छा मुहूर्त निकालें। उस दिन मैं इस सिंहासन पर बैठूंगा।’ दिन तय किया गया। दूर-दूर तक लोगों को निमंत्रण भेजे गए। तरह-तरह के बाजे बजने लगे, महल में खुशियां मनाई जाने लगी।

पूजा के बाद जैसे ही राजा ने अपना दाहिना पैर बढ़ाकर सिंहासन पर रखना चाहा कि सारी पुतलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लोगों को बड़ा अचंभा हुआ कि यह बेजान पुतलियां कैसे हंस पड़ी। राजा ने डर से अपना पैर खींच लिया और पुतलियों से पूछा , ‘ओ सुंदर पुतलियों! सच-सच बताओं कि तुम क्यों हंसी?’

पहली पुतली का नाम था। रत्नमंजरी। राजा की बात सुनकर वह बोली, ‘राजन! आप बड़े तेजस्वी हैं, धनी हैं, बलवान हैं, लेकिन इन सब बातों का आपको घमंड भी है। जिस राजा का यह सिहांसन है, वह दानी, वीर और धनी होते हुए भी विनम्र थे। परम दयालु थे। यह सुनकर राजा बड़े नाराज हुए।

राजा ने फिर पूछा, यह सिंहांसन किसका हैं – पुतली ने समझाया, महाराज, यह सिंहासन परम प्रतापी और ज्ञानी राजा विक्रमादित्य का है।

राजा बोले, मैं कैसे मानूं कि राजा विक्रमादित्य मुझसे ज्यादा गुणी और पराक्रमी थे? पुतली ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम्हें राजा विक्रमादित्य की एक कहानी सुनाती हूं।’ सिंहासन बत्तीसी क‍ी पहली पुतली रत्नमंजरी ने सुनानं शुरू की।

Also, Read More Stories :- 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बिना परमिशन कॉपी नहीं कर सकते