विक्रम बेताल की छठी कहानी: पत्नी किसकी? बेताल पच्चीसी
पत्नी किसकी? बेताल पच्चीसी की छठी कहानी – Pachisi ki Chhatthi Kahaani
एक और प्रयासों के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ लिया। वह उसे जब योगी के पास ले जाने लगे, तो बेताल ने नई कहानी शुरू कर दी।
बहुत पहले धर्मपुर नाम के नगर में गंधर्वसेन नाम का युवक रहता था। गंधर्वसेन की कद-काठी बहुत आकर्षक थी। यही कारण था कि कई लड़कियां उससे विवाह करना चाहती थीं, लेकिन गंधर्वसेन किसी को ध्यान नहीं देता था। वह हर रोजअपने घोड़े पर सवार होकर नगर में निकलता था और तेज गति से नगर को पार करके एक मंदिर की ओर निकल जाता था। यह मंदिर काली देवी का मंदिर था। गंधर्वसेन काली मां का बहुत बड़ा भक्त था। वो हर दिन मां काली की पूजा किया करता था।
एक दिन जब वो मंदिर से लौट रहा था तो उसने नदी के किनारे एक धोबी की लड़की को कपड़े धोते हुए देखा। वह लड़की गंधर्वसेन को बहुत सुन्दर लगी। गंधर्वसेन को उस लड़की से प्यार हो गया और वो दिन रात उसी के बारे में सोचने लगा। उसे लड़की से बात करने का कोई रास्ता नहीं सूझता। एक दिन उसने काली मां के मंदिर में पूजा करते हुए ये प्रतिज्ञा ली कि अगर वो लड़की उसकी हो गयी तो वो काली मां के चरणों में अपना शीश चढ़ा देगा। गंधर्वसेन खाना-पीना भूल चुका था, वो दिन रात उसी लड़की के बारे में सोचता रहता। इसका परिणाम ये हुआ कि गंधर्वसेन बीमार हो गया।
गंधर्वसेन को बीमार देखकर उसके मित्र देवदत्त ने उससे इसका कारण पूछा। गंधर्वसेन ने देवदत्त को अपना सारा हाल बताया। देवदत्त अपने मित्र से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने लड़की को ढूंढने की ठानी। देवदत्त उस लड़की को खोजने में सफल हुआ। देवदत्त ने उस लड़की के पिता से कहा कि अपनी बेटी की शादी गंधर्वसेन से कर दें। लड़की के पिता ने सारी स्थिति का जायजा लिया और अपनी बेटी का विवाह गंधर्वसेन से करा दिया।
विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता यहाँ उत्सव हुआ। गंधर्वसेन शादी की ख़ुशी में उस प्रतिज्ञा को भूल चुका था, जो उसने देवी के सामने की थी। लेकिन एक दिन सपने में गंधर्वसेन को उसकी अपनी छाया ने यह बात याद दिलाई। अगले दिन गंधर्वसेन को अपनी गलती का अहसास होता है और वो काली मंदिर में अपनी बलि देने के लिए तैयार हो जाता है। वो अपने मित्र देवदत्त को बुलाता है और उससे कहता है कि मैं, तुम और तुम्हारी भाभी मंदिर चलते हैं। मैं मदिर में अंदर पूजा करूंगा और तुम बाहर अपनी भाभी का ध्यान रखना। उसके बाद अंदर जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।
उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।”
लड़की ने कहा, “आप इन दोनों को जीवित कर दीजिए।” काली मां बोली, “तुम इन दोनों के सिर इनके धड़ों पर रखोगी तो ये जीवित हो जाएंगे।” लड़की ने ऐसा ही किया, लेकिन उससे सिर रखने में गलती हो गयी। उसने गंधर्वसेन का सिर देवदत्त और देवदत्त का सिर गंधर्वसेन के धड़ पर लगा दिया। दोनों मित्र जीवित होकर उस लड़की के लिए लड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी।
बेताल बोला, “हे राजन्! बताओ कि यह स्त्री किसकी हो?”
विक्रमादित्य को जवाब मालूम था। अगर वो चुप रहते तो बेताल उनका सिर धड़ से अलग कर देता, इसलिए विक्रमादित्य बोले – “नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।”
इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे फिर लाया तो उसने सातवीं कहानी कही।
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