“वीरान रात की सच्चाई” Hindi Poem on Life

Hindi Poem on Life

वीरान रात की सच्चाई

वह रात क्या कुछ इस कदर वीरान थी,

या कुछ लोगों की सोची समझी चाल थी ।

सड़क पर क्या कोई नहीं था,

या तुम सब से अनजान थी।

चीखी तो बहुत होगी पर शायद,

बहरो की बस्ती थी ,

जहां किसी के कान नहीं थी ।

ना किसी ने सुना, ना रोका, ना टोका

शायद तुम वहां किसी की पहचान नहीं थी।

मां, बहन, बेटी तुम किसी की उस वक्त भी थी,

पर फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तुम उन लोगों का मान नहीं थी।

स्वयं के साथ होता तब वह गलत कहलाता,

तुम्हें इस सच्चाई की पहचान नहीं थी।।

दोषी कौन

एक दिन,

सहसा हीं मन में,

कौंधी एक बात,

दहेज प्रथा,

वरदान या अभिशाप ?

दोषी कौन ?

जिसने लिया,

या जिसने दिया,

या कहीं मैं तो नहीं,

जिसने अनायास हीं,

अपना भाव लगने दिया ??

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1 Response

  1. Ashutosh Kumar says:

    बहुत सुंदर,उम्दा

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