“असमंजस” लव स्टोरी इन हिंदी
-निधि जैन
. लखनऊ शहर के मशहूर सिनेमा घर मेफेयर के सामने वाला चौराहा उसके ही नाम से प्रसिद्ध था। मेरी स्कूटी अभी उस चौराहे पर पहुँची ही थी कि पुलिस वाले ने हाथ दिखा कर ट्रैफिक रोक दिया। किसी गणमान्य व्यक्ति का काफिला गुजरने वाला था। मैंने घड़ी पर नजर डाली, दोपहर का पौन बज रहा था। गर्म हवा के थपेड़े चेहरे को झुलसा रहे थे। मई का महीना, उस पर उत्तर-प्रदेश की लू वाली गर्मी। पता नहीं क्या सोच कर मैं भरी गर्मी में स्कूटी उठा कर चल दी। अच्छा खासा प्रदीप ए.सी गाड़ी भेज रहा था। उसमें चली जाती तो क्या बिगड़ जाता, पर हर जगह मेरा स्वाभिमान जो आड़े आ जाता है। पता नहीं अब यहाँ कितनी देर खड़ा रहना पड़ेगा। हर गुजरते पल के साथ मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। इस बेचैनी का कारण गर्मी थी या चौराहे पर खड़े हो कर इंतजार करना या फिर घर से निकलते समय आयुष का फोन। आयुष मेरा पड़ोसी और मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। आज पता नहीं फोन पर कुछ अजीब सी बातें कर रहा था। पुरानी बातें दिल से निकल कर दिमाग पर दस्तक देने लगी थीं।
. उस समय मेरी उम्र करीब पाँच साल थी। एक दिन मैं स्कूल से लौटी तो पापा-मम्मी अपने कमरे में उदास बैठे थे। मैंने पहले कभी उन्हें ऐसे नहीं देखा था। पापा उठ कर कमरे के बाहर चले गये। मैं रोज की तरह माँ को अपनी दिन-भर की कहानियाँ सुनाने लगी। माँ एकदम शांत भाव से मेरी बातें सुनती रही। अचानक उसने मुझे गले से लगा लिया और फफक-फफक कर रो पड़ी। मैंने घबरा कर पूछा, “माँ, रो क्यों रही हो? तुम ही तो कहती हो कि अच्छे बच्चे रोते नहीं।” तभी पापा कमरे में दाखिल हुए, उन्होंने मुझे आया के साथ कमरे के बाहर भेज दिया। थोड़ी देर बाद माँ-पापा मुसकुराते हुए बाहर आये और ऐसा लगा जैसे सब कुछ सामान्य हो गया।
Romantic Love Story in Hindi
. सच तो यह था कि कुछ भी सामान्य नहीं था। पापा, माँ को ले कर अस्पताल जाने लगे और मैं स्कूल से आ कर पड़ोस वाली आन्टी के घर। आन्टी का व्यवहार मेरे साथ बहुत ही सख्त और रूखा था। वह न तो मुझसे कोई बात करती और न ही कुछ खाने को देती। तीन-चार दिन बाद ही उन्होंने पापा से कह दिया, “आप अपना कुछ और इंतजाम कर लें। मुझे बच्चे की वजह से बहुत बंधन हो जाता है।” पापा ने मेरी स्कूल से छुट्टी करा दी और अपने साथ अस्पताल ले जाने लगे। जल्द ही माँ अस्पताल में ही रहने लगी। पापा दिन भर भाग-भाग कर कभी डाक्टर को बुलाते, कभी दवाई लेने जाते और कभी मेरे खाने-पीने का इंतजाम करते। उनकी अपनी भूख तो जैसे खत्म ही हो गई थी। उनके चेहरे पर एक बेबसी दिखाई पड़ती, जैसे वह चाह कर भी कुछ कर न पा रहे हों। मैं अपनी किताबों के बीच से आँखें उठा कर चुप-चाप कभी माँ और कभी पापा को देखती रहती। जब कभी मेरी और माँ की नजरें मिलती तो वह एक फीकी सी मुस्कान से मुसकुरा देती। एक दिन वह मुस्कान हमेशा के लिए बन्द हो गयी। उस समय मैं यह समझ भी न पाई कि मैंने क्या खो दिया है। धीरे-धीरे मुझे इसका एहसास होने लगा। पापा बिलकुल बदल गये थे। उनकी मुसकुराहट माँ के साथ ही चली गई थी। घर का पूरा वातावरण ही बदल गया था। पापा ने वह शहर छोड़ने का फैसला कर लिया। जल्द ही हम तबादले पर लखनऊ आ गये।
. शहर छोड़ने से यादें नहीं छूटतीं। लखनऊ आ कर भी पापा में कोई परिवर्तन नहीं आया। उन्होंने अपनी जिन्दगी को दफ्तर और घर के बीच कैद कर लिया। यहाँ हमारे घर के पड़ोस में गोयल आन्टी और उनका बड़ा सा परिवार रहता था। बड़ा इसलिए क्योंकि हम तो सिर्फ दो थे और उनके यहाँ दादा-दादी, अंकल-आन्टी और आयुष रहते थे। आयुष मेरी ही उम्र का था। मेरा दाखिला भी आयुष के स्कूल में ही हो गया। दिन भर मैं उनके घर पर ही रहती। आन्टी मेरे खाने-पीने से ले कर मेरी पढ़ाई तक का उसी तरह ध्यान रखतीं जैसे वह आयुष का। उन्होंने पहले दिन से ही मुझे बहुत स्नेह दिया। एक बिन माँ की बच्ची की वह माँ बन गयीं। जल्द ही मैं उनके पूरे परिवार के साथ घुल मिल गयी। उन लोगों का मेरे प्रति प्यार और अपनापन देख कर पापा मेरी तरफ से और भी बेफिक्र हो गये।
. समय बीतता गया और मेरा रिश्ता उस परिवार के साथ दिन प्रति दिन गहरा होता गया। धीरे-धीरे उस परिवार के सभी सदस्य मेरी जिन्दगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गये और आयुष मेरा सबसे अच्छा दोस्त। गोयल परिवार के हर सदस्य की जुबान पर बस मेरा ही नाम होता। कभी दादा जी को मेरे साथ शतरंज की बाजी खेलनी होती तो कभी दादी को घुटनो के व्यायाम में मेरी मदद, कभी आन्टी को नयी रेसिपी मेरे साथ बनानी होती और कभी अंकल को मेरी बनाई मसाला चाय पीनी होती। उस कड़क मसालेदार चाय में उनका साथ सिर्फ मैं ही देती। आन्टी और दादाजी तो कभी से चाय नहीं पीते थे और दादी को जब से डायबटीज हुई, उन्होंने चाय पीनी ही छोड़ दी। उनका कहना था, “बिना शक्कर के चाय का कोई मजा नहीं।” पूरे घर में बस एक ही शख्स था जिसे मेरी कभी जरूरत नहीं पड़ती थी, वह था, आयुष और मेरा कोई काम उसके बिना पूरा नहीं होता। आयुष सारा दिन बरामदे में पड़े झूले पर बैठा पढ़ाई करता रहता। मैं आते-जाते धक्का दे कर उसका झूला हिला देती। वह गुस्से में झुंझलाते हुए कहता, “कितनी बार कहा है पढ़ते समय मुझे तंग मत किया करो। तुम को तो पढ़ाई से कुछ लेना देना है नहीं पर मुझे तो कुछ बड़ा करना है।” वह तो बस रात दिन पढ़ाई में ही लगा रहता और मुझे भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता। मुझे पढ़ाई में कोई खास रुचि नहीं थी। मैं तो बस अपनी माँ की तरह एक साधारण गृहिणी बनना चाहती थी। एक ऐसा पति चाहती थी जो मुझसे उतना ही गहरा प्यार करे जैसा पापा माँ से करते थे और आज भी करते हैं। आयुष अकसर मुझे समझाता, “मन लगा कर पढ़ाई किया करो ताकि जिन्दगी में कुछ बन सको। तभी जीवन सुख-सुविधाओं से पूर्ण होगा।” उसने पूरी जिन्दगी अपने पापा को संघर्ष करते और उनके साथ आन्टी को अपना पूरा सहयोग देते देखा था। उसकी बातों के जवाब में मैं हँसते हुए कहती, “इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि मैं किसी बड़े सरकारी अफसर से शादी कर लूंगी और ऐश की जिन्दगी काटूँगी।” मैं उसकी बातों को बिना कोई महत्व दिए इधर-उधर हो लेती और वह अपनी पढ़ाई में मग्न हो जाता।
. एक दिन पापा ने दफ्तर से लौट कर बताया, “कल शाम को मेरे बचपन का साथी अपनी पत्नी और बेटे के साथ आयेगा। उनका बेटा आई.ए.एस. अफसर है। वह लोग अपने बेटे के लिए तुम्हारा रिश्ता चाहते हैं। मुझे भी यह प्रस्ताव पसन्द है। तुम दोनों आपस में मिल लो। अगर दोनों की सहमति बनती है तो हम अभी सगाई और जाड़ों में शादी कर देंगे। इस प्रस्ताव पर खुले मन से विचार करना, मेरी तरफ से कोई दबाव नहीं हैं। कोई भी हिचक हो तो निःसंकोच कहना। तुम्हारी खुशी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उम्मीद है तुम मेरी बात को समझ पा रही हो। तुम्हारी माँ होती तो बेहतर समझा पाती।” मैं पापा के गले लग कर बोली, “आप किसी भी तरह की चिन्ता न करें। आप मेरे पापा और माँ दोनों हो।” मैं मन ही मन बहुत खुश थी। हँसी मजाक में कही गयी बात सच होने वाली थी। मैंने आन्टी को पापा की कही पूरी बात बतायी, सुन कर वह बहुत खुश हुई।
. सुबह से ही कुछ व्याकुलता थी। शाम तक वह और बढ़ गयी। मुझे इस का कारण समझ नहीं आ रहा था। मैं तो मस्त-मौला, आत्म विश्वास से भरी लड़की थी, फिर ऐसा क्यों हो रहा था। शाम को अंकल-आन्टी और प्रदीप घर आये। प्रदीप एक आकर्षक एवं शालीन व्यक्तित्व वाला लड़का था। कोई भी लड़की उसे पति के रूप में पाना चाहेगी। उन लोगों के जाने के बाद पापा ने मेरे विचार पूछे तो मैंने अपनी सहमति दे दी। दो घन्टे की मुलाकात मेरे हाँ करने के लिए काफी थी। रात बहुत देर तक मुझे नींद नहीं आयी। एक बेचैनी अब भी थी।
. मैं और पापा अभी नाश्ता कर ही रहे थे कि फोन की घंटी बज उठी। प्रदीप के पापा का फोन था। उन्होंने बताया, “हमने प्रदीप से बात की है। उसे यह रिश्ता पसन्द है। आप भी बेटी से बात कर लें। यदि सब ठीक है तो रविवार को सगाई कर देंगे। प्रदीप को सोमवार से डयूटी पर जाना है।” पापा इससे पहले की अपनी प्रतिक्रिया देते, अंकल ने एक बार फिर कहा, “आप इत्मीनान से बात कर लें, फिर बतायें।”
. पापा ने अभी फोन रखा ही था कि प्रदीप का फोन आ गया। वह बोला, “मेरे दिल ने तो तुम्हें देखते ही हाँ कर दी थी। तुम्हारा जवाब सुनने के लिए आज लंच पर मिलना चाहता हूँ, आ सकोगी?” मैंने लंच के लिए हाँ कर दी। उसने कहा, “मैं गाड़ी भेज दूँगा।” मैंने मना करते हुए कहा, “मैं खुद ही आ जाऊँगी।” जब प्रदीप की बातें मैंने पापा को बतायीं तो उनकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आये। मैंने पापा को माँ के जाने के बाद पहली बार इतना खुश देखा था। भाग कर मैं आन्टी के पास गयी और उन्हें पूरी बात बता दी। उन्होंने खुश हो कर मुझे गले से लगा लिया। घर में सभी लोग खुश थे सिवाय आयुष के। उसके लटके चेहरे को देख कर मैंने आन्टी से पूछा, “इसे क्या हुआ है? शक्ल क्यों लटका रखी है?” आन्टी ने बताया, “कल रात इसका सिविल सर्विस के इम्तहान का रिजल्ट आ गया और यह उसमें सफल नहीं हुआ।”
. आयुष अपने कमरे में उदास बैठा था। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, “निराश मत हो। अगली बार तुम जरूर सफल होगे यह मेरा विश्वास है।” उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, “तब तक बहुत देर हो जाएगी। खैर मेरी छोड़ो, मेरा सपना न सही तुम्हारा एक बड़े सरकारी अफसर से शादी करने का सपना तो पूरा हो रहा है। तुम को बहुत बहुत बधाई।” तभी दादा जी ने आवाज लगाई और मैं आयुष को वही छोड़ कर उनके पास चली गई। दादा जी से मिल कर जब मैं दुबारा आयुष के कमरे में गई तो वह वहाँ नहीं था। आन्टी ने बताया “वह कोचिंग के बारे में कुछ जानकारी लेने हजरत गंज गया है।” मैंने उदास होते हुए कहा “मुझसे कह कर जाता तो मैं भी उसके साथ ही निकल जाती।” आन्टी ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फिराते हुए कहा “उसको छोड़ो। तुम जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ। कोई मदद की जरूरत हो तो आवाज लगा देना।” मैं फीकी से मुसकान दे कर चली आई।
. मैं तैयार हो कर स्कूटी स्टार्ट कर रही थी कि पापा ने बाहर आ कर बताया, “आयुष का फोन है। कुछ जरूरी बात करनी है।” मैंने गुस्से में फोन उठाया, “कहाँ हो तुम? तुम को पता है न कि तुम्हारे बिना मुझ से कुछ नहीं होता। एक बजे तक क्लार्क्स पहुँचना है और स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही है। देर हो रही है। पहली ही धारणा गलत बन जायेगी।” कहते हुए मेरी आवाज भर्रा गई। उसने मेरी बातों और स्थिति पर बिना ध्यान दिए कहा, “मैं तुम्हारी पसंदीदा जगह, शर्मा चाय की दुकान पर तुम्हारा बन-मख्खन और चाय के लिए इंतजार कर रहा हूँ।” मैंने खीज कर कहा, “यह कौन सा समय है इंतजार करने का। तुम को पता है न मुझे प्रदीप से मिलने जाना है। पहले ही देर हो गयी है और तुम्हें मस्ती सूझ रही है।” वह गम्भीर हो कर बोला, “मुझे कुछ जरूरी बात करनी है।” मैंने कहा, “लौट कर घर पर करती हूँ। अभी फोन रखती हूँ।” वह हड़बड़ा कर बोला, “श्रुति, लौट कर बहुत देर हो जायेगी।” “देर तो मुझे हो रही है। मैं अभी नहीं आ रही। वैसे भी क्लार्क्स का खाना छोड़ कर मैं तुम्हारा बन-मख्खन खाने नहीं आऊँगी।” कह कर मैंने फोन रख दिया। घड़ी पर नजर डाली तो साढ़े बारह बज रहे थे। यहाँ से होटल तक पहुँचने में आधा घन्टा तो लग ही जायेगा और अगर कही जाम मिला तो फिर उस स्थिति में भगवान ही मालिक है।
. चौराहे पर खड़े-खड़े बीस मिनट हो गये थे। मेरे चारों ओर गाडियों का जमावड़ा लग गया था। एक तो गरमी, ऊपर से आयुष की उल्टी-सीधी बातें। एक बेचैनी सी महसूस हो रही थी। अरे भाई, अगर रिजल्ट मन का नहीं आया तो आसमान थोड़ी न सिर पर गिर पड़ा है। पूरी जिन्दगी पड़ी है, इस साल नहीं तो अगले साल हो जायेगा। अगले साल….अचानक मेरे दिमाग में एक हलचल हुई। यह आयुष बार-बार यह क्यों कह रहा है कि, “तब तक बहुत देर हो जायेगी।” तभी पुलिस वाले ने हाथ दिखाया और सीधे, क्लार्क्स की तरफ जाने वाला ट्रैफिक तेज गति से चल पड़ा। मैंने भी अपनी स्कूटी सामने वाली सड़क पर ले ली। अचानक ही मैंने अपनी स्कूटी को तेजी से बांयी ओर घुमा लिया। एक तीव्र गति से आते मोटर साइकिल वाले ने ब्रेक लगाते हुए कहा, “अगर बायें जाना था तो बांये ही खड़ा होना चाहिए था।” मैंने उसकी बात पर ध्यान दिए बिना ही स्कूटी शर्मा चाय वाले की ओर बढ़ा ली।
. स्कूटी खड़ी कर के मैं अन्दर गई तो कोने वाली मेज पर आयुष मुँह लटकाये बैठा था। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया और उसने वेटर को चाय और बन-मख्खन लाने को बोला। मैंने उसकी मेज पर पहुँच कर खड़े-खड़े ही कहा, “जल्दी बताओ क्या कहना है ?” वह मुस्कुरा कर बोला, “अरे! पहले बैठ तो जाओ। तुम्हारा ज्यादा वक्त नहीं लूँगा।” मैं सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। वेटर मेज पर चाय और बन-मख्खन रख कर चला गया। मैंने कुछ परेशान होते हुए कहा, “आयुष तुम समझ नहीं रहे हो मुझे देर हो रही है। प्रदीप खाने पर मेरा इंतजार कर रहा होगा। मुझे वहाँ एक बजे पहुँचना था। एक से ऊपर तो यही हो गया है।” मैं बिना रुके बोले जा रही थी और वह एक टक मुझे देखे जा रहा था। उसके चेहरे और आँखो के भाव देख कर मैं अचानक शांत हो गयी। उसने मेरी आँखों में आँखे डाल कर कहा, “आई लव यू।” सुबह से लगातार होने वाली घबराहट अचानक ही बन्द हो गयी। मैंने अपनी पलकें झुका लीं। दो मिनट खामोश रहने के बाद वह फिर बोला, “मैं तुम से प्यार करता हूँ श्रुति। माँ सब जानती है पर मैंने उसको मना किया था। मैं परीक्षा में सफल होने के बाद ही तुम को बताना चाहता था, पर आज न कहता तो बहुत देर हो जाती। मैं जानता हूँ कि तुम एक बड़े सरकारी अफसर से शादी करना चाहती हो। मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं कभी बन भी पाऊँगा या नहीं, पर आज न कहता तो जिन्दगी भर पछतावा रहता कि कह देना चाहिए था। अब तुम चाहो तो बन-मख्खन छोड़ कर क्लार्क्स का आलीशान खाना खाने जा सकती हो। तुम जो भी चुनोगी मैं हमेशा तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त रहूँगा।” मैंने पलकें उठा कर उसकी तरफ देखा। उसका चेहरा एकदम शांत था और उस पर वही मुसकान थी जो हमेशा उसके चेहरे पर रहती थी। मैं कुर्सी छोड़ कर खड़ी हो गई। उसकी मुसकान फीकी पड़ गई। मैंने कहा, “प्रदीप मेरा इंतजार कर रहा है। मैं उसको मिल कर अपना फैसला बताना चाहती हूँ।” मैंने धीरे से प्लेट पर रखा बन-मख्खन उठा कर मुँह में ऱख लिया और बिना कुछ कहे बाहर की ओर चल दी। दरवाजे पर पहुँच कर मैंने पलट कर देखा वह खुशी से उछल रहा था।
. प्रदीप से मिल कर मैंने उसको अपना फैसला बता दिया। प्रदीप एक समझदार व्यक्ति था। उसने मेरी भावनायें समझते हुए मेरे निर्णय का पूरा सम्मान किया। घर आकर मैंने आन्टी के गले लगते हुए कहा, “मैंने प्रदीप को मना कर दिया।” उन्होंने आश्चर्य से कहा, “क्यों?” मैंने शरारत भरी मुसकान के साथ कहा, “क्योंकि मुझे आपको आन्टी नहीं माँ कहना है।” उन्होंने आयुष की ओर देखा। उसने मुस्कुरा कर पलकें झपका दी। पापा से मुझे कुछ भी कहना नहीं पड़ा, उन्हें सब कुछ प्रदीप ने ही समझा दिया था।
. दो दिन बाद इस शर्त के साथ हमारी सगाई कर दी गयी कि अगले साल की परीक्षा के बाद रिजल्ट चाहे जो भी आये, शादी कर दी जायेगी। आयुष सिविल सर्विस के साथ बैंक आँफिसर की परीक्षा भी देगा।
. सगाई से शादी तक के सफर में मेरी जिन्दगी में कोई परिवर्तन नहीं आया। आज भी आन्टी नयी रेसिपी बनाते समय मुझे ही आवाज देती है और अंकल मसाले वाली चाय मेरे हाथ की ही बनी, मेरे साथ ही पीते हैं। आज भी मैं दादाजी के साथ शतरंज की बाजी में बेईमानी करती हूँ और हारने पर उदास हो जाती हूँ। आयुष आज भी मुझे कभी आवाज नहीं देता और पूरे समय झूले पर बैठा पढ़ाई करता रहता है। अब मैं उसे कभी पढ़ते समय परेशान नहीं करती। मैं दिल से दुआ करती हूँ कि वह अपने लक्ष्य में कामयाब हो। उसका सपना आई.ए.एस अफसर बनने का है। यह सब वह मेरे और अपने पापा के लिए करना चाहता है। मैंने तो उससे स्पष्ट शब्दों में कह दिया है “मैं उससे शादी इसलिए कर रही हूँ क्योंकि वह एक बहुत अच्छा इंसान है और एक बड़े ही प्यारे परिवार का हिस्सा। मुझे रूपया-पैसा, शान-शौकत, बंगला-गाड़ी, नौकर-चाकर, ऐशों-आराम से ज्यादा उसका साथ और उसका प्यार चाहिए। बस इतनी सी हैं मेरी इच्छायें।”
. एक साल बीत गया। इस बार रिजल्ट आने पर वह अपने प्रयास में काफी हद तक सफल रहा। उसका आई.ए.एस बनने का सपना तो पूरा नहीं हुआ पर वह आई.आर.एस के द्वारा रेलवे विभाग में क्लास वन आँफिसर बन गया। घर में सब ही खुश थे। मैं खुश थी कि अब उसका सारा खाली वक्त अपने परिवार और मेरे लिए था। उसका साथ ही मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण था और यही तो था मेरा सपना।
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मैंने गणित में एम.एस.सी एवं कम्पयूटर कोर्स किया और कुछ समय तक एक साँफ्टवेयर प्रोग्रामर की तरह कार्यरत रही। मैं पिछले पाँच सालों से कहानियाँ व लेख लिख रही हूँ। मेरी दो किताबें, एक नई सुबह (10 लघु कहानियों का संग्रह) और बोझ (एक लघु उपन्यास) प्रकाशित हो चुकी हैं। दोनों ही किताबें Amazon व Flipkart पर उपलब्ध हैं। कुछ कहानियाँ और लेख आँन लाइन व पत्रिकाओं में भी छपी हैं। लगभग एक साल से मैं इस वेब साइट से जुड़ी हुई हूँ और मेरी कई कहानियाँ यहाँ छपी हैं। आप सभी से प्रोत्साहन की आशा करती हूँ।
Very well written and happy ending story, love to read it ….. congratulations !!
जीवन में हम क्या चाहते है और किस से क्या मिल सकता है इसका सही समय पर चुनाव जीवन को खुशहाल बना देता है। जीवन में सच्चे लोग मिल जाए तो सुखद अनुभव होता है। जीवन के कठिन समय भी सरल हो जाते हैं।
कहानी बहुत ही सरल तरह से द्रश्य खोलते जाती है और मीठा सा अनुभव कराती हुई सुखद रूप लेती है। जीवन में दूर दूर तक ऐसा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं हुआ पर फिर भी कंही पड़ोस की कहानी हो ऐसा लगता है। 👏👏👏 दिल को छू गयी।
Excellent flow ,expression and words also in AMANJAS story as previous stories .I also read ur both books ek nai subah ,it was good short stories especially I liked DIL . novel Bojh is also unforgettable love -sacrifice for wife and family.
पढ़ कर अच्छा लगा। बहुत बढ़िया!