“आपकी परी” Interesting Story in Hindi with Moral
आपकी परी (Interesting Story in Hindi with Moral)
आज कोलकाता यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह था। दिसंबर का महीना था। वातावरण में हल्की सी सर्दी थी। उपकुलपति के शुरुआती भाषण के बाद विद्यार्थियों को डिग्री देने का कार्यक्रम आरंभ हुआ। प्रथा के अनुसार सर्वोच्च डिग्री से आरम्भ हुआ था।
“डॉ. शुभंकर गांगुली, डॉक्टर ऑफ़ साइंस। ” पहला नाम घोषित हुआ। एक लम्बा सा तेजस्वी युवक स्टेज की ओर बढ़ा। उपकुलपति ने उसे बधाई दी और डिग्री प्रदान की। फिर वह अपने आसन पर लौट आया।
“एक्सक्यूज़ मी, आपका ये पर्स गिर पड़ा था। ” एक युवती उसके सामने खड़ी थी। साक्षात दुर्गाप्रतिमा की तरह उसका रूप था। बड़ी-बड़ी तेजस्वी आखें, उन्नत नासिका, सुर्ख गुलाबी पतले होंठ, और चिबुक पर खिला हुआ काला सा तिल। शुभंकर जैसे मोहाच्छन्न सा हो गया था।
“ओह, थैंक यू। ” युवती मुस्कुराकर लौट गई।
डॉ. मिताली चैटर्जी , PhD ” अब वह युवती स्टेज की ओर बढ़ी। उसवक्त स्टेज की तरफ से दूसरा विद्यार्थी अपनी डिग्री लेकर लौट रहा था। अतः वह किनारे की तरफ से जा रही थी। अचानक वह किसी चीज़ की ठोकर खाकर गिर पड़ी, लेकिन शुभंकर उसे देख रहा था। उसने उसे थाम लिया था। वहाँ ज़मीन पर एक पेड़ की जड़ निकली हुई थी। मिताली के अंगूठे से काफी खून निकल रहा था। शुभंकर ने उसे अपनी सीट पर बिठाया और अपना रुमाल निकालकर घाव पर बाँधने लगा। तभी उपकुलपति के इशारे पर कर्मचारी फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर पहुँच गये थे। पट्टी बाँधने के बाद मिताली लंगड़ाती हुई स्टेज की ओर बढ़ी। उसे काफी दर्द हो रहा था। “आप रुकिये डॉक्टर चैटर्जी। ” कहकर उपकुलपति , डॉक्टर विष्णुकांत शास्त्री स्टेज से उतर आये , और उन्होंने मिताली को उसके आसन पर जाकर डिग्री प्रदान की। फिर स्टेज पर वापिस लौटकर उन्होंने कहा , “हम शर्मिंदा हैं कि हमारी छोटी सी लापरवाही की वजह से एक प्रतिभावान वैज्ञानिक आज घायल हो गई। डॉ. मिताली वर्षों से कैंसर का मूल ढूंढने की कोशिश में लगी हैं। इलाज ढूंढने के लिये हज़ारों लोग लगे है लेकिन कैंसर के उत्स , कारण ढूंढने में बहुत कम लोग लगे हैं। डॉ. चैटर्जी , आपको अगर मेडिकल सहायता की ज़रुरत हो तो हम एम्बुलेंस का बंदोबस्त कर सकते हैं। ”
“नहीं सर, मैं घर जाकर एक इंजेक्शन ले लूँगी, तो ठीक हो जाऊँगी। अगर आप आज्ञा दें —-” मिताली ने खड़ी होकर कहा।
“हाँ, हाँ, कोई है आपके साथ?” वे बोले।
“सर मैं इन्हें ले जाऊँगा। ” शुभंकर ने कहा। और मिताली शुभंकर के कंधे का सहारा लेकर सभागृह से निकल गई।
“मेरी गाड़ी पार्किंग में है, आप ज़रा — ” शुभंकर उसे बैठाने की जगह ढूंढने लगा।
“पार्किंग तो काफी दूर है। मैं यही सामने से टैक्सी ले लेती हूँ। ” उसे अँगूठे में काफी दर्द हो रहा था।
“अच्छा एक मिनट। ” कहकर शुभंकर ने उसे गोद में उठा लिया। मिताली अवाक होकर देखती रही।
शुभंकर ने बड़ी सावधानी से उसे अपनी गाड़ी में बिठाया। “कहाँ जायेंगी आप ?”
“टॉलीगंज। ” कुछ देर में वे मिताली के बताये पते पर जा पहुँचे। शुभंकर ने फिर एक बार उसे गोद में उठा लिया और अंदर ले चला। “अरे क्या हुआ?” अंदर से उसकी माता व्यग्र होकर बाहर निकली। शुभंकर ने उसे सोफे पर बिठा दिया था।
“कुछ नहीं माँ, ज़रा ठोकर लग गई थी, अंगूठे में। ” मिताली ने कहा। “ज़रा फर्स्ट ऐड बॉक्स देना।” “अरे काफ़ी गंभीर चोट आई है। ” माँ ने घाव देखकर कहा। “आप इसे ले आये हैं यूनिवर्सिटी से। आपने बहुत अच्छा किया। ” माँ ने शुभंकर की ओर देखते हुये कहा, “आपका नाम?’
“ये डॉक्टर शुभंकर गांगुली हैं माँ। ये मुझे कनवोकेशन से उठाकर ले आये हैं। थैंक यू डॉ. गांगुली। ” मिताली ने कहा। वह लंगड़ाती हुई बाथरूम में जाकर हाथ धो आई। फिर वह इंजेक्शन तैयार कर ले आई। “इनको दे बेटी , ये लगा देंगे इंजेक्शन। ” माँ ने कहा। मिताली हँस पड़ी। “ये मेडिकल डॉक्टर नहीं हैं माँ। इन्होने पहले प्लांट बायोलॉजी में PhD की थी , आज इनको DSc, डॉक्टर ऑफ़ साइंस की डिग्री मिली है। DSc , PhD से ऊपर की डिग्री होती है। ” मिताली ने माँ को सरल भाषा में समझाया।
“वैसे आप जिस विषय पर रिसर्च कर रही हैं, वो भी बहुत ज़रूरी है। ” शुभंकर ने कहा।
“अच्छा बेटा, आपके घर में कौन-कौन है?” माँ ने पूछा।
“मुझे आप मत कहिये चाचीजी, मैं आपके बेटे जैसा हूँ। ”
“हाँ, हाँ बेटा। ऐसा बेटा तो हर माँ-बाप का गर्व होता है। तुम्हारे माता-पिता को भी तुमपर ज़रूर गर्व होता होगा। ”
“वो अगर होते चाचीजी, तो शायद होता। ” शुभंकर ने चेहरा घुमा लिया था।
“ओह, माफ़ करना बेटा, मैंने नाहक तुम्हारी दुखती रग छेड़ दी। ” माँ उसके पास आकर उसके माथे पर हाथ फेरने लगी। फिर उसदिन माँ ने उसे रात के भोजन के लिये रोक लिया। काफी देर तक सब मिलकर गपशप करते रहे। वह बड़ी आसानी से उनसे घुल-मिल गया था।
“अरे मिताली मैं ये बात तो पूछना भूल ही गया तुम कहाँ काम करती हो?” इस बीच वे बातचीत में काफी सहज हो गए थे।
“रिसर्च का काम तो कोलकाता यूनिवर्सिटी में ही करती हूँ, वैसे NRS से जुडी हुई हूँ। ”
‘ओ, मैंने सोचा था सबेरे तुम्हें पहुँचाता जाऊँ, लेकिन मुझे जाना होता है जादवपुर यूनिवर्सिटी। ”
“नहीं, नहीं , तुम चिंता न करो शुभो , वैसे कल मैंने सोचा है छुट्टी ले लूँगी। ” मिताली ने कहा। फिर शुभंकर उनसे विदा लेकर चला गया। लेकिन उनकी मित्रता बनी रही। मिताली की माँ ने उससे कह रखा था , छुट्टी के दिन तुम घर में अकेले नहीं रहोगे। मिताली को भी उसका साथ अच्छा लगता था। कब उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई, उन्हें भी पता नहीं चला था।
एकदिन दोनों कॉफ़ी हाउस में बैठे थे। आज शुभंकर कुछ गंभीर सा था। वह मिताली को एकटक निहार रहा था। ” ऐसे क्या देख रहे हो शुभो ?”
“तुम्हें कभी-कभार कुछ समय के लिये देखकर अब और जी नहीं भरता। मैं सोच रहा था मीता, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग शादी कर लें? मुझसे शादी करोगी ?” शुभो ने उसका हाथ पकड़ लिया था। मिताली सन्न रह गयी। यह उसके लिये अप्रत्याशित था।
“मैं भी न जाने कब से यही सोच रही थी शुभो। ” उसने शुभो की आँखों में देखते हुये कहा।
“अब?” शुभो का प्रश्न था।
“अब और क्या? अभी घर चलते हैं , माँ को बताते हैं। माँ को वैसे भी आभास था। कल कह रही थी मुझसे। मैं सोच रही थी , मैं ही प्रोपोज़ कर दूँ। मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। ” मिताली ने प्यार भरी नज़रों से उसकी ओर देखते हुये कहा। फिर जल्द ही शुभंकर और मिताली की शादी हो गई।
दोनों एक-दूसरे को पाकर खो से गए थे। लेकिन दोनों के अपने-अपने सपने थे , अपनी-अपनी मंज़िलें। अब दोनों फिर अपने भिन्न-भिन्न पथ पर चल पड़े। उनके रास्ते भिन्न-भिन्न थे, लेकिन दोनों प्यार के बंधन से बंधे हुये थे। अतः उनके रिश्ते में एक ठहराव था। फिर एकदिन पता चला ,मिताली माँ बनने वाली थी। शुभंकर इस खबर से ज्यादा खुश नहीं था। “तुम इतनी जल्दी माँ बन जाओगी, मैंने सोचा नहीं था। ” वह स्तब्ध हो गई थी। शुभो का ये स्वरुप वह नहीं जानती थी। मिताली का चेहरा देखकर शुभो ने कहा , ” तुम्हारे माँ बनने से तुम्हारा रिसर्च प्रोजेक्ट बाधित नहीं होगा ? कैसा लगेगा तुम्हें , तुम्हारी महत्वाकांक्षा ५ साल के लिये मुल्तवी हो जाये ?”
“मैं जो कर रही हूँ , ये तो मेरी सारी उम्र की साधना है। शायद वो लंबित हो गई है , लेकिन मेरी कोख़ में तुम्हारे प्यार की निशानी पल रही है। मैं उसे भी मेरा सबकुछ उजाड़ कर दूँगी , जैसे मैंने तुम्हें प्यार किया , मैं उसे भी भरपूर प्यार दूँगी। ” शुभो निरुत्तर हो गया था , हालाकि वह अपनी पत्नी की सामान्यता से कुछ निराश ही हुआ था। साथ ही मिताली की बातों से एक अपराधबोध भी उसके मन में झाँकने लगा था।
शादी के बाद वह शुभो के साथ उसके फ्लैट में आ गई थी। माँ भी अकेली थीं , पर उनके साथ पुरानी नौकरानी बिमला मौसी थी। मिताली प्राय माँ की खबर लेती रहती थी। इनदिनों शुभो कुछ चिढ़े से , नाराज़ से चल रहे थे। मिताली ने सोचा , अपने काम का कुछ तनाव होगा। एकदिन शुभो ने आकर उसे बताया , ” मुझे अमेरिका में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में तीन साल के लिये फेलोशिप ऑफर हुई है। सारा खर्च वो लोग उठायेंगे। ” ये तो अच्छी बात है शुभो। अगले दो महीने में हमारी संतान आ जायेगी , फिर तुम चले जाना। ”
“दो महीने का समय नहीं है मेरे पास। अगले महीने के आखिर तक वहाँ पहुँचना है। ”
“तो क्या तुम अपने बच्चे का मुँह देखे बग़ैर चले जाओगे? क्या इस बच्चे से तुम्हें कोई लगाव नहीं शुभो ?” मिताली ने आहत स्वर में कहा। उसकी आँखें भर आईं थीं। ” मैंने सोचा था तुम मुझसे प्यार करते हो , तो मेरे बच्चे से भी प्यार करोगे। लेकिन अब तो लगता है, तुमने मुझसे भी कभी प्यार नहीं किया। ” और मिताली रो पड़ी और वह वहाँ से चली गई। उसदिन देर रात सिसकियों की आवाज़ से शुभो की आँख खुल गई। सिसकियों से मीता का सारा शरीर काँप रहा था। फिर जब भी मीता , शुभो के सामने आती , उसकी आँखें भर आती। उसका आचरण स्वाभाविक था , वह ठीक समय उसका नाश्ता बनाकर ले आती। वह कॉलेज जाने के लिये निकलता तो उसे कोट पहनाती , मुस्कुराने की कोशिश करती, तो उसके आँसू निकल आते। अभी वह मैटरनिटी लीव पर थी।
उसदिन शाम को शुभो घर लौटा। वह बाथरूम से नहा -धोकर निकला तो मीता उसके लिये चाय बनाकर ले आई। “यहाँ मेरे पास बैठो मीता। ” उसने मीता को जबरन अपने पास बिठाया। ” मैं अमेरिका नहीं जा रहा हूँ। ”
“क्यों? तुम्हारी फ़ेलोशिप ?”
“फ़ेलोशिप फिर मिल जाएगी। अभी मुझे मेरी मीता के पास रहना है। ” कहकर उसने मीता को सीने से लगा लिया। न जाने दोनों कितनी देर तक एक-दूसरे से लिपटे रहे। ” चलो, कल मैं छुट्टी ले लेता हूँ। कल शुक्रवार है। ये तीन दिन सिर्फ मेरी मीता के। ”
फिर एकदिन मिताली ने एक बेटी को जन्म दिया। वह मीता की तरह सुन्दर थी। उसके नैन-नक्श भी अपनी माता से मिलते-जुलते थे। उन्होंने उसका नाम पारिजात रखा था और वे उसे परी कहकर बुलाते थे। वह अपनी माँ कि लाड़ली थी , हालाकि वह हरवक्त शुभो की गोदी में रहना चाहती थी। शुभंकर को वैसे बच्चे संभालना अच्छा नहीं लगता था। वह अपने शोध कार्य में लगा रहना चाहता था , और बेटी बार-बार उसे भटका देती थी। इस बात को लेकर आये दिन उसका विवाद होता रहता था मीता से। बालिका अब करीब ३ साल की हो गई थी।
उसदिन शुभंकर अपने लैपटॉप कंप्यूटर पर काम कर रहा था। शनिवार का दिन था। आज माँ आई हुई थीं।
परी न जाने क्यों रो रही थी। ” शुभो तुम एक मिनट परी को पकड़ो , मैं ज़रा डाइपर ले आती हूँ। शुभो एक हाथ से परी को थामे दूसरे हाथ से लैपटॉप पर काम किये जा रहा था। अचानक बालिका ने उसे गीला कर दिया। ” मीता , ये देखो इसने क्या कर दिया ?” शुभो चिल्लाकर उठने लगा , लेकिन परी ने उसके लैपटॉप पर पेशाब कर दिया। ” मीता। ” शुभो गरजा। परे हटने की कोशिश में कंप्यूटर कुर्सी के साथ चित होकर गिर पड़ा। मीता दौड़ी आई थी। तभी शुभो के लैपटॉप में एक छोटा सा विस्फोट हुआ। मीता ने उससे पहले ही झपटकर बच्ची को ले लिया था। शुभो को चोट तो नहीं आई थी , लेकिन वह गुस्से से काँप रहा था। वह उठा , उसने अपनी शर्ट बदली और तेज़ी से घर से निकल गया।
मीता ने उसके मोबाइल पर फ़ोन किया तो देखा वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गया था। दोपहर ढलते-ढलते वह घर लौटा। तब तक उसका गुस्सा शांत हो चुका था। ” परी ठीक है न ? सॉरी मुझे उस तरह अपना आपा नहीं खोना चाहिये था। ”
“कोई बात नहीं शुभो, हो जाता है कभी-कभी। तुम स्नान कर लो। मैं खाना गर्म करती हूँ। ” मीता ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये कहा। माँ ने अपने जमाई का ये रौद्ररूप पहली बार देखा था।
भोजन के बाद शुभो ने अपना लैपटॉप चेक किया। शार्ट सर्किट से उसमें जो विस्फोट हुआ था , उससे वह पूरी तरह नष्ट हो गया था। शुभो का पारा फिर से चढ़ गया। “तुम्हारी बेटी ने मेरी ६ महीने की मेहनत पर पानी फेर दिया। अमेरिका की नेचर पत्रिका के लिये मैं जो शोध लेख लिख रहा था , वह बर्बाद कर दिया तुम्हारी बेटी ने। ” उसने तैश में आकर कहा।
“मेरी बेटी शुभो?”
“हाँ हाँ , तुम्हारी बेटी। तुम दोनों माँ-बेटी मेरी जान के पीछे श्राप की तरह लगी हुई हो। ” मिताली की आँखों में आँसू आ गये थे। माँ वहीँ थीं। वे भी स्तब्ध रह गई थी। “मैं चलती हूँ। ” कुछ देर बाद माँ ने चुपचाप अपनी बैग उठाई और निकल गई। हर बार की तरह आज शुभो उन्हें छोड़ने नहीं गया।
शुभंकर के कॉलेज में एक असिस्टेंट प्रोफेसर थीं , डॉ. डॉली बिस्वास। उसदिन कॉलेज के कैंटीन के एक कोने में शुभंकर अपने आप से नाराज़ बैठे था। तभी डॉली दो कप चाय लेकर उनके पास जा बैठी। ” ये लीजिये डॉ. गांगुली , चाय पीजिये। ”
“थैंक यू। ” शुभंकर ने हँसने की कोशिश करते हुये कहा।
“सुना है, आपने प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी की फ़ेलोशिप छोड़ दी? कमाल है ! किस्मतवालों को मिलती है , प्रिंस्टन फ़ेलोशिप। ”
“हाँ, घर में प्रॉब्लम थी। ” शुभो ने टालने की कोशिश की।
“घर में प्रॉब्लम? घर में तो सिर्फ आपकी बीवी हैं। सुना है वो भी डॉक्टर हैं। ” डॉली ने फिर बात को उकसाने की कोशिश की।
“दरअसल, तब हमारी बेटी पैदा होने वाली थी। ”
“बेटी पैदा होनेवाली थी तो क्या आप बेटी पैदा करते? आपकी बीवी खुद को संभाल नहीं सकती थीं? पति का इतना सुनहरा मौका बर्बाद कर दिया। अगर मुझे ऐसा मौका मिलता , मैं तो किसी कीमत पर जाया नहीं करती और सुना है आपकी बेटी ने आपका लैपटॉप बर्बाद कर दिया। आप नेचर पत्रिका में अपना शोध लेख भेजने वाले थे। ” अब तो जैसे आग में घी पड़ गया था।
“अरे वो मेरी बीवी नहीं, पनौती है मेरी। ”
“आपको पता है, दिल्ली में गवर्नमेंट एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट में डायरेक्टर, अस्सिटेंट डायरेक्टर की पोजीशन के लिये एप्लीकेशन ले रहे हैं। आपका तो जो प्रोफाइल है, आपको तो मिल ही जायेगी वो नौकरी। कहाँ पड़े हुये हैं यहाँ?” डॉली एकबार तृप्ति की मुस्कान मुस्कुराई और वहाँ से निकल गई। कुछ लोग होते हैं जिन्हें दूसरों के घरों में आग लगाने शांति मिलती है।
“मीता , मुझे दिल्ली में गवर्नमेंट एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट में नौकरी मिली है। ” एकदिन शाम को घर पहुँचते ही शुभंकर ने कहा।
“कैसी नौकरी ?”
“अरे ऐसी वैसी नौकरी नहीं , डायरेक्टर की पोस्ट है। ”
“लेकिन तुम वहाँ अकेले रह पाओगे ?”
“अकेले क्यों ? तुम भी अपना बोरिया बिस्तर बांधो और चलो। ”
“मैं कैसे जा पाऊँगी शुभो ? तुम्हें पता है यहाँ मेरी रिसर्च पूरी होने पर है। यहाँ मेरी नौकरी है , माँ है। ”
“तो तुम नहीं जाओगी ?”
“मैं ये नहीं कह रही शुभो , मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ। पर अभी मैं जा नहीं सकती। काश मैं ये काम हाथ में नहीं लेती। ”
“हूँ , तो तुम अपने आप को तीसमार खान समझती हो ?” शुभो ने तिरस्कार भरे स्वर में कहा।
“बाबा , माँ को डाँटो नहीं। ” नहीं बालिका वहाँ चली आई थी। उसने अपनी नन्ही सी हथेली से शुभो की ऊँगली पकड़ ली थी।
“हूँ। ” शुभो उसका हाथ झटककर निकल गया। परी रोने लगी। मिताली ने अपने आँसू पोंछे हुए बालिका को गोदी में उठाकर अंदर चली गई।
उसदिन शुभो शामको घर लौटा। वह जबतक फ्रेश होकर बाथरूम से निकलता मीता चाय बनाकर ले आई थी। “मीता , मुझे इसपर तुम्हारे साइन चाहिये। ” मिताली जैसे ही सामने आ बैठी , शुभंकर ने कुछ कागज़ात उसे पकड़ाये।
“डिवोर्स? तुम डिवोर्स चाहते हो मुझसे ?” वह सन्न रह गई थी।
“हाँ, ये रिश्ता चल नहीं रहा है। बेवजह लादे रहने का कोई मतलब नहीं। ” शुभंकर ने भावहीन लहजे में कहा।
“मैं नहीं चाहता, हम लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे। शांति से निपट जाये तो ही बेहतर होगा। मैंने दिल्ली में नौकरी ले ली है, बता चूका हूँ मैं तुम्हें। ये घर मैंने तुम्हारे नाम कर दिया है। मुझे आज़ाद कर दो। ”
“आज़ाद कर दूँ? नहीं मैं तो तुमसे डिवोर्स नहीं चाहती, फिर मैं कैसे आपसी सहमति के मुद्दे पर साइन कर दूँ शुभो ? लेकिन फिर भी मैं तुम्हें बांध कर नहीं रखूँगी। तुम मुझे नहीं चाहते , तुम मुझे छोड़कर जा सकते हो , लेकिन ये जानकर मुझे वाकई बड़ा सदमा लगा है शुभो , कि तुम इस नन्ही सी बच्ची को भी ठुकराकर जाना चाहते हो। ” मीता की आँखें भर आई थी। वह परी को उठाकर चली गई। अगले दिन सबेरे वह अपना सूटकेस लेकर सामने ड्राइंग रूम में चली आई। ” मैं सिर्फ अपने और परी के कपड़े लेकर जा रही हूँ। तुम्हारे दिए हुये गहने मैंने अलमारी में रख छोड़े हैं। ये कान के बुँदे माँ ने दिये थे , और ये अंगूठी जो तुमने मुझे पहनाई थी, लौटा रही हूँ। । तुम चाहो तो चेक कर लो। मैं रूकती हूँ। ” मिताली ने संयत स्वर में कहा।
“ज़रुरत नहीं। ” शुभंकर ने सिर हिलाया। फिर मिताली परी को गोदी में उठाकर निकल गई।
“बाबा, नहीं आयेंगे, बाबा। ” लेकिन बाबा ने जैसे वो पुकार सुनी ही नहीं। आज मिताली की ज़िन्दगी का एक अद्याय ख़त्म हो गया।
२
मिताली का चेहरा देखते ही माँ सबकुछ समझ गई थी। उन्होंने मीता से कुछ नहीं पूछा। नन्ही नातिन को लेकर वे सामने बगीचे में चली गई।
“नानी, बाबा क्यों नै आये हमारे साथ?” उसने बड़े भोलेपन से तुतलाती ज़बान में पूछा।
“आयेंगे बेटा, आयेंगे। तुम झूले पर जाकर खेलो। ” लेकिन झूले पर जाने की बजाय वह अंदर चली गई।
मिताली अपने कमरे जाकर पलंग के एक कोने में जा बैठी। अतीत की सारी यादें आज उसके मानसपटल पर उभर आई थीं। वह दीक्षांत समारोह , वह शुभंकर का उसे गोदी में उठाकर लाना , वह विवाह का प्रस्ताव , फिर वह तिरस्कार , वे विद्रूप भरे व्यंगबाण , और फिर डिवोर्स का प्रस्ताव। उसकी आँखों से अश्रु धारायें बह निकली थी। नन्ही बालिका चुपचाप उसे देख रही थी। ” नानी माँ रो रही है। ” बालिका की आँखें भरी हुई थी। नानी ने उसे गोद में उठा लिया। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था , क्या जवाब दें उसे।
धीरे-धीरे मिताली ने खुद को संभाल लिया। अब उसने खुद को बेटी की परवरिश पर और अपने शोध पर नियोजित कर दिया। अगले एक डेढ़ साल में उसने स्टेम सेल्स पर शोध सम्पूर्ण कर लिया था। उसने रक्त कैंसर का स्रोत खोज निकाला था। उसने ऐसी रक्त कणिकायें खोज निकाली थी , जिनमें अस्वाभाविक परिवर्तन होने से, कोशिकाओं की संरचना में परिवर्तन आने लगता है , जो अंततः कैंसर कोशिकायें जन्म देती हैं। देश-विदेश की स्वास्थ्य में इसकी चर्चा होने लगी , जाँच होने लगी। मिताली को भिन्न-भिन्न संस्थाओं से आमंत्रण आने लगे इस विषय में बोलने के लिये। मीडिया में भी उसकी काफी प्रशंसा हुई। इसबीच परी पाँच साल की हो गई थी। अकेली माता होने के कारण उसकी तरफ से ,बेटी को साथ ले जाने की शर्त होती।
उधर शुभंकर ने दिल्ली जाकर गवर्नमेंट एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट में अपना पदभार ग्रहण कर लिया था। उसे एक बड़ा सा क्वार्टर दिया गया था। माली सरकारी था उसने अपनी तरफ से खाना बनाने के लिये एक महिला रखी थी और एक अन्य नौकर सबेरे आकर साफ़-सफाई कर जाता।
एकदिन अचानक डॉली बिस्वास उसके घर आई। आज शनिवार था। शुभंकर सामने बागीचे में बैठा समाचार पत्र पढ़ रहा था। ” वाह आपका घर तो बड़ा ही अच्छा है ! वरना दिल्ली जैसे शहर में ऐसा क्वार्टर। ” डॉली ने शुभंकर के सामने बैठते हुये कहा।
“आप यहाँ कब आईं? ‘
“मैं तो आपके आने के ६ महीने के अंदर आ गई थी। ”
“मुझे भी यही उम्मीद थी। ”
“मतलब?”
“मतलब, हम और आप एकसाथ एक ही जगह काम कर रहें हैं। ”
“ये क्या कह रहें हैं डॉ. गांगुली ? आपकी तो पत्नी है। ” डॉली जैसे आसमान से गिरी हो।
“थी अब नहीं रही, जैसा की आपने सुझाया था। ”
“मैंने कहा था कि आप अपनी बीवी को छोड़ दो? और अगर मैंने आपको कहा भी हो, तो भी आप उनको छोड़ देंगे? आपने तो सुना था; मिताली जी से प्यार किया था , वैसे आप तो काबिल ही नहीं है उसके। आप क्या प्यार करेंगे ? आपने साबित कर दिया , बड़ी-बड़ी डिग्रीयाँ हासिल करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। अरे आपकी तो एक छोटी सी बच्ची भी थी। ” वह घृणित दृष्टि से उसे देख रही थी। ” अब तो आपने, आपके गुनाह में मुझे भी शामिल कर लिया। एक बार आपकी आत्मा नहीं काँपी, ऐसा फैसला करते समय ? ” डॉली जड़ होकर बैठी रही। वह बार-बार अपना सिर हिला रही थी।
“चलती हूँ। ओह हाँ, जिसके लिये मैं आज आई थी। मेरी शादी है, अगले शनिवार को। ” और वह चली गई। शुभंकर सूनी नज़रों से उस तरफ देखता रहा। “ये क्या कर बैठा मैं?” आज न जाने क्यों, नन्ही बालिका का रोता हुआ चेहरा उसे धिक्कार रहा था। मीता की सजल आँखें उसे झिंझोड़ रही थी। डॉली उसे झकझोर कर चली गई थी।
“साहब, खाना तैयार है। ” खाना पकानेवाली महिला ने आकर कहा।
“तुम जा सकती हो। मैं खा लूँगा। ” फिर उसने अपने थके-थके से पैर उठाये और अंदर चला गया।
उसने खाना फ्रिज में रख दिया , पानी पिया और खिड़की के सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी आँखें भर आई थी। रह-रह कर उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। डॉली की बातें उसके कानों में गूंज रही थी।
फिर वह पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया। एकांत में यद्यपि उसे बार-बार अपने छोटेपन पर, ओछेपन पछतावा होता। मीता से कही हुई अपनी कड़वी बातें रह-रह कर उसके कानो में गूंजा करती। धीरे-धीरे वह एक अजीब से अवसाद में घिरने लगा था।
एकदिन उसने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया। “नीता को बुलाना ज़रा। ”
“नीता मैडम तो छुट्टी पर है सर। ”
“ओह , हाँ। ” उसे ख़याल आया उसकी सेक्रेटरी नीता ने, अपनी शादी के लिये एक महीने की छुट्टी ली थी। वह फिर अपने अतीत में खो गया था। उसे याद आया , शादी के बाद कितने प्यारभरे पल वो दे पाया था , मीता को? फिर भी वह उस जैसे आदमी से इतना प्यार करती थी।
अगले हफ्ते नीता काम पर वापिस लौट आई थी। उसकी माँग में दमकता सिन्दूर उसे मीता की याद दिला रहा था। नीता के सारे अस्तित्व में आज जैसे एक अनोखा सुकून , अद्भुत ख़ुशी झलक रही थी।
“सर मेरी गैर हाज़िरी में कोई प्रॉब्लम तो नहीं हुई?” नीता ने पूछा।
“अरे नहीं नहीं, बधाई हो। सॉरी मैं आपकी शादी में नहीं आ सका। क्या करूँ, टूर पर जो जाना पड़ा था। आप जानती हैं। ” शुभंकर ने कहा। कहकर उसने नीता को एक पैकेट थमाया। उसमें एक जोड़ी डिज़ाइनर हाथ घड़ी थी।
“थैंक यू सर। हम लोग राजस्थान गये थे हनीमून के लिये। मैं ये आपके लिये लाई हूँ। ” कहकर उसने एक सुनहरे रंग की पत्थर से बनी फोटोफ्रेम उसके सामने रखी, साथ में उसी पत्थर से बने एक जोड़ी चाय के कप, खूबसूरत से बक्से में पैक किये हुये थे।
“अरे गोल्डन स्टोन? ये कहाँ मिला ?”
“हम लोग जैसलमेर गये थे सर। ये वहाँ की खासियत है। इसी लिये वहाँ राणा रावल जैसल का जो किला है उसे सोने का किला, गोल्डन कासल कहते हैं।”
“थैंक्स यू। ये तो मेरे लिये बेशकीमती चीज़ है। ” शुभंकर ने कहा।
उसदिन उनके एग्जीक्यूटिव क्लब में दिवाली की पार्टी चल रही थी। सभी अफ़सर आमंत्रित थे। हॉल में हलकी सी संगीत की ध्वनि गूँज रही थी। अचानक आयोजक ने घोषणा की। ” ओके देवियों और सज्जनों , अब आप सब अपने-अपने साथी के साथ फ्लोर में आ जाये। सिर्फ अपने साथी के साथ हाँ। ” सभी हँस पड़े। “लेट’स डांस।” सभी अपने-अपने साथियों के साथ फ्लोर पर आ गये। आज मीता के लिये शुभंकर का मन कचोटने लगा था।
“आप अकेले आये है सर। “किसी ने पूछा।
“हाँ। ” शुभंकर ने फीकी सी मुस्कान लिये कहा।
“ओह, मैं भूल गया, मैडम तो कोलकाता में हैं। ”
शुभंकर देख रहा का, उसी की तरह एक और सज्जन एक तरफ खड़े थे। उनके बगल में ७-८ साल की एक बालिका हाथ में आइसक्रीम लिये खड़ी थी। पूछने पर पता चला था , उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था और वे ख़ुद बिटिया की देखभाल करते थे। फिर बालिका ने फुसफुसाकर अपने पिता को कुछ कहा और वे उसे लेकर बाथरूम की ओर ले गये। फिर एक समय दिवाली भोज शुरू हुआ। सब अपने-अपने परिवार के साथ , प्रियजनों के साथ बैठे थे। सिर्फ शुभंकर शराब का गिलास लिये एक तरफ खड़ा था। एक अजीब सी कसक उसके दिलों-दिमाग पर छा गई थी।
सहसा बालिका ने उलटी कर दी। वो सज्जन उसकी ओर लपके, उन्होंने उसे गोद में उठाया और वे उसे लेकर बाथरूम की ओर ले गये। फिर वे बालिका को गोद में लिये वापिस लौटे , उसे कुर्सी पर बिठाया और बैग में से नैपकिन निकालकर पुचकारते हुये उसका मुँह पोंछने लगे। उन्होंने बैग से एक सिरप की बोतल निकाली , खाने की टेबल से चम्मच लिया और बच्ची को सिरप पिलाया।
बालिका रो रही थी। वे उसे बहलाने की कोशिश कर रहे थे। “अच्छा , आइसक्रीम खाओगी ?”
“नहीं मैं घर जाऊँगी। ”
“अच्छा , अच्छा रोते नहीं। चलो। ” कहकर उन्होंने बालिका को गोद में उठाया , शुभंकर की ओर देखकर हाथ हिलाया और निकल गये। शुभंकर की आँखें अचानक भर आई थीं।
“नीता , मल्होत्राजी दो दिन से ऑफिस नहीं आ रहे हैं , उनकी कोई ख़बर ? ” शुभंकर को पता था , मल्होत्रा की पत्नी काफी बीमार थीं। वे हरदिन दोपहर को उन्हें देखने घर जाते थे, लंच के समय। एक कार एक्सीडेंट में वे तो बच गये थे , पर उनकी पत्नी को गंभीर चोटें आई थीं। शरीर का कमर के नीचे वाला हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त हो गया था। तबसे वे शैय्याशायी थीं। मल्होत्रा उनके ऑफिस में क्षेत्र भूमि विकास अधिकारी के पद पर काम करते थे। शुभंकर प्रतिदिन जब पार्क में टहलने जाते तब वे हमेशा नज़र आते , अपनी पत्नी को व्हील चेयर में बिठाकर वे घुमाने ले आते थे।
“उनकी पत्नी की हालत सीरियस है सर। हॉस्पिटल में भर्ती किया है उन्हें। ” नीता ने बताया। फिर अगले दिन सूचना मिली कि मल्होत्रा की पत्नी का देहांत हो गया। शुभो तुरंत अपने कुछ साथियों के साथ उनके घर जा पहुँचा। मल्होत्रा फूट-फूटकर रो रहे थे। आसपास के लोग , उसके साथी अर्थी की तैयारी कर रहे थे। अचानक कमरे के दूसरी तरफ से रोने की आवाज़ सुनकर सबने उस ओर देखा। शुभंकर ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे। उसकी आँखों से गंगा-जमुना बह रही थी।
“अरे सर आप ?”
“ओह , सॉरी , मैं भावनाओं में बह गया था। ” शुभंकर ने झट आँसू पोंछे। वह सबके साथ अंतिम यात्रा में शामिल हुआ। उसने अर्थी को कन्धा भी दिया। बाद में उसकी सहृदयता की ऑफिस में काफी चर्चा हुई। दफ्तर के कर्ता-धर्ता अपने अधीनस्थ के दुःख में शामिल हुये , इससे महकमें के उसकी काफी इज़्ज़त बढ़ गई।
जनवरी का महीना था। इस साल के राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी थी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान के लिये, इस साल डॉ. मिताली गांगुली को देश के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार के लिये चुना गया था। इस बीच मिताली को पहले ही कई देश-विदेश के पुरस्कारों से भूषित किया गया था। मीडिया में उनकी काफी चर्चा हो रही थी। उसके कई साक्षात्कार प्रचारित-प्रसारित हो चुके थे। मीता हर इंटरव्यू में अपनी इस सफलता के पीछे शुभंकर के योगदान की बात कहती। जितनी बार शुभो ये इंटरव्यू देखता, उसकी आँखें भर आती। उसकी आत्मा चीख-चीखकर उसे धिक्कारती। “मैंने कितनी बेरहमी से उसे ठुकरा दिया और वो हर तरफ मेरे गुण गाये जा रही है। ”
आज राष्ट्रपति के हाथों मिताली को पुरस्कार लेना था। पति की हैसियत से उसे विशेष आमंत्रण मिल चुका था। शुभंकर की हिम्मत नहीं हो रही थी, मीता का सामना करने की। निर्वाचित पुरस्कार जीतने वालों को मंच पर बिठाया गया था। शुभंकर पीछे पत्रकारों , और आम जनता की भीड़ में छुपकर खड़ा था।
“अरे डॉक्टर गांगुली , आपकी सीट तो वहाँ सामने है। ” बदकिस्मती से व्यवस्थापकों में से किसी ने उसे पहचान लिया। शुभंकर को विरोध करने का कोई मौका ही नहीं मिला।
राष्ट्रपति ने मिताली को पुरस्कार देते हुये कहा , ” भारत वर्ष को आपके अभूतपूर्व योगदान के लिये गर्व है डॉक्टर मिताली। ”
“इसमें मेरे पति डॉक्टर शुभंकर गांगुली का बड़ा योगदान है सर। ” मिताली ने सामने की सीट पर बैठे शुभंकर की ओर इशारा करते हुये कहा। फोटोग्राफरों के कैमरे शुभंकर की ओर घूम गये थे। फिर मिताली स्टेज से उतरी तो पत्रकारों ने उसे घेर लिया। इस बीच शुभंकर चुपके से वहाँ से खिसक गया।
अगले दिन उसके ऑफिस में सारे कर्मचारी उसे बधाई देने लगे। ” सर मैडम को अगर आप ले आते तो अच्छा होता। हम भी मिल लेते उनसे। ”
“हाँ , मैं तो लाना चाहता था लेकिन अचानक उन्हें ज़रूरी बुलावा आ गया उसके हॉस्पिटल से। उन्हें तो इस पुरस्कार से कोई फर्क ही नहीं पड़ा , पर मुझे तो गर्व है मिताली पर। ” ये बात उसने सचमुच दिल से कही थी।
“सच, होना ही चाहिये सर।”
शुभंकर प्रतिदिन पार्क में घूमने जाता। उसका मुख्य आकर्षण होता , वहाँ खेलने वाले बच्चे। वो हर बच्चे में उसकी परी को खोजने की कोशिश करता। वह अपने साथ अपने एक झोले में तरह-तरह के चॉकलेट, केक , छोटे-छोटे खिलौने, कॉमिक्स ले जाता और उन बच्चों में बाँटता, कहानियाँ सुनाता, मज़े-मज़े के किस्से सुनाता। अब वह बच्चो के लिये कहानी वाले चाचा, चॉकलेट वाले चाचा बन गया था। लेकिन घर पहुँचते ही, फिर परी का आँसुओं से भरा चेहरा उसके मस्तिष्क पर छा जाता। कभी उसे लगता वह पागल होता जा रहा है। वह बच्चों से उनके जन्मदिन पूछता और अनाहूत जन्मदिन पर पहुँच जाता उनके घर। कुछ लोग नाराज़ होते , कुछ शर्मिंदगी महसूस करते , कुछ पशोपेश में पड़ जाते , क्योंकि शुभंकर पदभार में उन सबसे ऊपर था।
३
उसदिन रविवार था। शुभंकर कनाट प्लेस में अकारण ही घूम रहा था। छुट्टी वाले दिन घर में उसके लिये समाय काटना मुश्किल हो जाता था। कम से कम कनाट प्लेस में लोग दिखाई पड़ते , गहमा-गहमी नज़र आती , बच्चे नज़र आते।
“अरे शुभो। ” किसी ने पुकारा। उसने देखा उसका बचपन का पुराना दोस्त एक गाड़ी से उसे पुकार रहा था।
“अरे विनय तू यहाँ?”
“क्यों तुझे तो बताया था, जब मैं कोलकाता से यहाँ दिल्ली चला आया था। ”
“हाँ, वो भी करीब दस साल हो गये। ” शुभो उसके करीब जा पहुँचा था।
“यहाँ कैसे?” विनय ने पूछा।
“बस ज़रा काम से आया था। ”
“अगर कहीं जाना हो तो मैं छोड़ दूँ। ”
“नहीं मेरे पास अपनी गाड़ी है। ” शुभो ने कहा।
“कहाँ है अभी?”
शुभो ने अपना कार्ड उसे दिया। “कभी आ न मेरे घर। ”
“हाँ, अब जब ढूंढ ही लिया है तो कैसे छोड़ूँ? ” विनय ने कहा। “आज शाम ही जा सकता हूँ तेरे घर। दरअसल बीवी बच्चों के साथ कोलकाता गई है। उनके बिना तो घर काटने को दौड़ता है, तुझे तो पता ही होगा। ”
“अरे इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जल्द से जल्द आ जाना। ” शुभंकर का चेहरा खिल उठा था।
“अच्छा। ” फिर जैसे ही विनय जाने लगा तो शुभंकर ने उसे रोका। ” तू अभी कहाँ जा रहा है?”
“घर ही जा रहा था। घर जाकर नहा -धो लूँ। फिर लंच, फिर पहुँचता हूँ तेरे घर शाम को। ” विनय ने अपना प्लान उसे बताया।
“ये सब तो तू मेरे घर में भी कर सकता है। आज इतने दिनों बाद मिले हैं, मैं ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहता हूँ तेरे साथ। आपत्ति है तुझे?”
“आपत्ति तो नहीं है। अच्छा अगर तुझे आपत्ति न हो, तो मैं भी हो लेता हूँ तेरी गाड़ी के पीछे-पीछे।” फिर विनय उसकी गाड़ी के पीछे चल दिया।
“अरे वाह , तेरा क्वार्टर तो शानदार है ! दिल्ली शहर में ऐसा घर मिलना, ये भी किस्मत की बात है। ” विनय ने घर में प्रवेश करते हुये कहा।
“अच्छा मेरे पास एक जोड़ी नया पैजामा कुरता है। तू हाथ-पैर धोकर आराम से बैठ। रात के खाने से पहले नहीं छोड़ूँगा तुझे। ” शुभंकर ने कहा।
दोनों सोफे पर आ बैठे। चाय के कप के साथ वे गपशप करने लगे। ” भाभी नहीं है ?”
“नहीं , वो तो कोलकाता में है। ” शुभो ने कहा।
“उसदिन TV पर भाभी को देख रहा था। अब तो उनके चेहरे पर अद्भुत तेज आ गया है। और वो युक्तिसम्मत भी है। आज उनकी खोज की देश-विदेश में चर्चा हो रही है। देश का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार , इस उम्र में। क्या पता आगे चलकर नोबेल पुरस्कार भी मिल जाये उन्हें। लेकिन इन सब में भी वे तेरा ज़िक्र करना नहीं भूली। अभी पिछले महीने कोलकाता में भी अचानक मुलाकात हुई थी उनसे। जितने समय हम लोग बातें कर रहें थे , वो बार-बार तेरा ज़िक्र करती थी। आँखें भर आयी थीं उनकी तुझे याद करते-करते। खुशकिस्मत है तू। ” अचानक शुभंकर रो पड़ा।
“अरे शुभो क्या हुआ ? ” विनय उसके पास जा बैठा। “अरे कुछ तो बोल। काफी देर तक शुभो रोता रहा। फिर एक समय उसने अपना दिल खोल कर रख दिया दोस्त के सामने।
“ये तूने सचमुच अच्छा नहीं किया शुभो। जिस शुभो को मैं जानता था , ये वो नहीं है। तुझमे कहाँ से इतना घमंड आ गया ? किसी ने तुझे बरगलाया और तू उसकी बातों में आ गया ? अपनी नन्ही सी बिटिया के बारे में भी नहीं सोचा ? तू इतना निर्दयी कैसे हो गया , हाँ ? और मीता भाभी को देख, तूने इतनी निष्ठुरता से उसे ठुकरा दिया और उसने एक बार भी इसका ज़िक्र नहीं किया, जिससे तेरी इज़्ज़त बनी रहे। छी , छी ये क्या कर दिया तूने ?” विनय ने मुँह फेर लिया। शुभो की आँखों से फिर अश्रुधारायें बहने लगी थी।
” किसी ने नहीं बरगलाया मुझे , सब मेरी गलती है। मैं हैवान बन गया था। स्वार्थी, बेरहम , अहसान फरामोश जो कुछ कह ले। मैं किसी के भी प्यार के लायक नहीं हूँ। ”
“लेकिन मीता भाभी फिर भी तुझे प्यार करती है ,आज भी। आज भी वे तेरे नाम का सिन्दूर अपने माथे पर लगाती हैं। ”
“मैं उसके काबिल नहीं हूँ बीनू। मैं किसी काबिल नहीं हूँ। मैं सिर्फ सज़ा के काबिल हूँ और वो मुझे मिल रही है।”
“तूने कभी सोचा नहीं कि तू जाकर उनसे माफ़ी माँग सकता है ? वो ज़रूर माफ़ कर देंगी तुझे। ”
“मैं माफ़ी के लायक नहीं हूँ। मैं सजा के लायक हूँ। मैं राक्षस हूँ , पत्थरदिल हैवान हूँ। मैं —–” और शुभो का गला फिर रुंध गया था। वह उठकर बाथरूम में चला गया। दोपहर का भोजन खाना बनाने वाली महिला ने लगा दिया था। विनय ने देखा तरह-तरह के व्यंजन सजाये हुये थे। लेकिन शुभो के लिए सादे चावल , दाल और थोड़ी उबली सब्ज़ियाँ थीं।
“अरे शुभो ये क्या ?”
“यही मेरा खाना है , बाकि सब मना है। मुझे गैस्ट्रिक अलसर है। ” शुभो चुपचाप खाना खाने लगा। विनय ने देखा , शुभो की आँखें निस्तेज कोटरों में धँस गई थीं , गाल पिचक गये थे , शरीर झड़ गया था। मानो वह खुदको बड़ी निर्ममता से सज़ा दे रहा था। सारा दिन वे अतीत की बातें करते रहे। जब भी मीता का ज़िक्र आता , शुभो या तो अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेता या बात को बदलने के लिये व्यस्त हो जाता। शामको दोनों पार्क में घूमने गये। वहाँ विनय ने शुभो का दूसरा ही रूप देखा। वहाँ वह बच्चों का कहानी वाले चाचा था , चॉकलेट वाले चाचा था।
“ये तू बहुत अच्छा कर रहा है शुभो। ” रात को विनय ने कहा। शुभो ने उसकी ओर नज़रें उठाई। “ये जो तू बच्चों का कहानी वाले चाचा बन गया है। ”
“हाँ , इसके बिना मैं कब का ख़त्म हो जाता। ”
“मैं तो कहूँगा , तू बच्चों के विकास में और भी ज्यादा सहयोग कर सकता है। दिल्ली में ऐसी संस्थायें हैं , जिनसे तू जुड़ सकता है। ”
“हाँ , कर तो सकता हूँ , लेकिन न जाने कबतक ज़िन्दगी साथ दे। ” शुभो ने बुझे हुये स्वर में कहा। विनय की आँखें अचानक भर आई थीं। उसका ह्रदय एक अव्यक्त वेदना से भर गया था।
रात को भोजन से पहले वे शुभो के शयनकक्ष में लेटे-लेटे बातचीत कर रहे थे। “अच्छा तू ज़रा बैठ , मैं नहा कर आता हूँ। ” शुभो ने कहा।
“अभी, इसवक्त ?”
“हाँ , मेरी पुरानी आदत है। ” कहकर वह बाथरूम में नहाने चला गया। विनय ड्रेसिंग टेबल पर बिखरे पड़े मैगज़ीन आदि को समेट कर रख रहा था। उसे सब कुछ करीने से रखना पसंद था। अचानक उसकी नज़र आईने के पीछे रखी एक छोटी सी डिबिया पर पड़ी। विनय ने देखा उसमें बहुत सारी नींद की गोलियाँ थीं। उसे छुपाकर रखा गया था। विनय की साँसें जैसे रुक सी गई थी। शुभो क्या आत्महत्या करने की सोच रहा है ? उसने डिबिया तुरंत अपनी पैंट की अंदरूनी जेब में रख दी।
रात के भोजन के बाद अब विनय जाने के लिये तैयार था। ” अच्छा शुभो कल मैं दो दिन के लिये दौरे पर जा रहा हूँ। लौटने के बाद मैं तुझे हमारी संस्था ‘बच्चों की फुलवारी’ में ले जाऊँगा। तुझे वहाँ बच्चों के साथ काम करना अच्छा लगेगा। ” घर पहुँचते ही विनय ने कोलकाता जानेवाली पहली उड़ान की टिकट बुक की।
दिल्ली के पुरस्कार समारोह से मिताली जब कोलकाता पहुँची , तब पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से उसका भव्य स्वागत किया गया। उसे हवाई अड्डे से सीधे राजभवन ले जाया गया , वहाँ उसका सत्कार किया गया। फिर जब वह अपने निवास स्थान पर पहुँची , तब वहाँ भी इलाके के लोगों ने स्वतःस्फूर्त रूप से उसका सत्कार किया। परी अधीर होकर माँ का इंतज़ार कर रही थी। अंत में वह परी को लेकर घर के अंदर जा पहुँची। “तुम नाराज़ हो माँ से ?” माँ ने उसे चूमते हुये कहा।
“आप बाबा को साथ नहीं लाई ? ” परी ने TV पर बाबा को मंच के सामने वाली सीट पर बैठे देख लिया था।
“नहीं बेटा, बाबा नहीं आये। ” मिताली की माँ ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा। “शुभो को कार्यक्रम वालों ने लेकर सामने बिठाया ज़रूर था बेटा , लेकिन मैं जबतक स्टेज से उतरती वो जा चुके थे।” परी रुआँसी होकर मीता को देख रही थी। “बाबा हमसे रूठ गये हैं बेटा।” मीता ने एक ठंडी साँस छोड़ी और अंदर अपने कमरे में चली गई। परी सजल आँखों से माँ को देखती रही।
दूसरे दिन मीता अपने नियत समय पर काम पर रवाना हो गई थी। परी की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी। छुट्टियों में दोपहर के भोजन के बाद नानी अपने कमरे में जाकर लेटती और परी माँ के कमरे में कहानी की किताबें पढ़ती या चित्रकारी करती। उसदिन वह अलमारी से ड्राइंग पेपर निकालने की कोशिश कर रही थी। अचानक न जाने कहाँ से एक बड़ा सा लिफाफा गिर पड़ा। जब से उसके पिता घर छोड़ कर गये थे, तबसे वह बीच-बीच में उन्हें अपनी बचकानी भाषा में पत्र लिखा करती थी। लिखकर वह माँ को दे देती थी, कि माँ बाबा के पास भेज दें। ये वही चिट्ठियाँ थी। अर्थात माँ ने ये चिट्ठियाँ बाबा को नहीं भेजी थी। अब बालिका की समझ में आया, कि माँ ने ये सब चिट्ठियाँ बाबा को क्यों नहीं भेजी।
परी ने TV पर देखा था उन्होंने माँ के साथ-साथ बाबा के बारे में जानकारी दी थी। अब उसने अपना लैपटॉप शुरू किया। उनके स्कूल में दूसरी कक्षा से ही बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती थी। अब वह चौथी कक्षा में थी। कंप्यूटर से उसने अपने बाबूजी का पता ढूंढ निकाला था। उसने तय किया था वह बाबा को पत्र लिखेगी। उसने अपने बाबा को लिखा :
मेंरे प्यारे बाबा ,
TV पर मैंने उसदिन समारोह में आपको देखा तो सोचा था, कि माँ आपको मनाकर ले आयेगी। लेकिन माँ ने आज बताया, आप हमसे रूठ गये है और कभी नहीं आयेंगे। क्यों बाबा, माँ ने ऐसी कितनी बड़ी गलती कर दी थी, कि आप उनसे मिलना भी नहीं चाहते? आपकी परी ने इतने सालों पहले; ऐसी कौनसी गलती की थी, कि आपने अपनी परी को भी भुला दिया ? आपको पता है , माँ अब भी आपके लिये हर दिन रोती है , जब सबेरे काम पर जाने से पहले माथे पर सिन्दूर लगाती है। आपको क्या आपकी परी की कभी याद नहीं आती ? आप क्या कभी नहीं मिलोगे आपकी परी से? परी आपको बहुत याद करती बाबा , प्लीज बाबा। ”
आपकी परी
आजकल शाम को परी अपनी छोटी साईकिल लेकर पार्क में जाती थी। उसदिन वह पार्क के बगल में पोस्ट ऑफिस में चली गई। “अंकल मुझे ये चिट्ठी भेजनी है मेरे बाबा को। कितने पैसे देने पड़ेगे ?” कहकर उसने एक बड़ा सा लिफाफा काउंटर पर दिया। “अरे बेटा , तुम डॉ. गांगुली की बेटी हो न ?”
“जी अंकल। ”
“इसमें तो टिकट लगाना पड़ेगा बेटी। पैसे हैं तुम्हारे पास? ” क्लर्क ने कहा। तभी पोस्टमॉस्टर ने उसे देखा और वे उसे बुलाकर अंदर ले गये। ” अरे वाह बेटा, तुम भी चिट्ठी लिखती हो? ” वे बोले, “ये बाबूजी का पता तुम्हें कहाँ से मिला?”
“मैंने कंप्यूटर से निकाला है अंकल। हमको स्कूल में सिखाते हैं।” बालिका ने बड़ी मासूमियत से कहा। उन्होंने अपने एक कर्मचारी से पता जाँचने के लिये कहा। पता बिलकुल ठीक था। “अरे बेटा तुम तो अपनी माँ की जैसी ही होशियार हो। चलो हम दोनों मिलकर टिकट लगाते हैं। उन्होंने उसे दिखाया , टिकट कैसे लगाते हैं। ” अंकल इसमें तो लिखा है ५ रुपये। ”
“कोई बात नहीं है बेटा। ”
“मेरे पास पैसे हैं अंकल। ” कहकर उसने अपनी फ्रॉक की जेब से पैसे निकालकर उन्हें दिये।
“अरे बहुत अच्छा बिटिया। अब देखो , इस लिफाफे पर ठप्पा कैसे लगाते हैं। ये लो ठप्पा। अब इस टिकट पर ज़ोर से मारो। शाब्बास। अब इस खाने में डाल दो। बस कल सबेरे तुम्हारी चिट्ठी चली जायेगी। ”
“थैंक यू अंकल। ” और बालिका अपनी साइकिल लेकर घर लौट आई थी।
आज मिताली ने किन्ही कारणों से छुट्टी ले रखी थी। चाय का कप टेबल पर रखकर वह दरवाज़े के सामने पड़े अखबार को उठाने लगी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। सामने विनय खड़ा था। “अरे विनय भाईसाहब , आइये आइये। ”
“मैं डर रहा था कही आप काम पर न चली गई हों। ” विनय ने सोफे पर बैठते हुये कहा।
“अरे क्या हुआ भाईसाहब?”
“शुभो ठीक नहीं है भाभीजी। मुझे नहीं लगता, वो अब ज़्यादा दिन ज़िंदा रह पायेगा। ” विनय की आँखों में चिंता की झाइयाँ पड़ी थी। ” वो जीना ही नहीं चाहता। ” फिर उसने संक्षेप के उसके बारे में सब बताया। ” मैं जानता हूँ भाभीजी, उसने बहुत बड़ी गलती की है। और पिछले सात सालों से वह खुद को, बड़ी निर्ममता से उसकी सजा दे रहा है। उसकी गलती चाहे कितनी बड़ी हो , मृत्युदंड तो उसका परिणाम नहीं होना चाहिये न। आपने उसे उसदिन देखा ही होगा। मैं कल उसके घर में था। ये है उसकी फोटा, जो मैंने कल अपने मोबाइल से खींची थी। मैंने उसे कहा कि आप के पास आकर माफ़ी मांगे , तो बोला , मैं माफ़ी के काबिल नहीं हूँ। मैं सजा के लायक हूँ। मैं राक्षस हूँ , पत्थरदिल हैवान हूँ। उसका खाना-पीना सब बंद हो गया है। कल देखा सिर्फ चावल, दाल और उबली सब्ज़ियाँ यही, उसे खाना है , क्योंकि उसे गैस्ट्रिक अलसर हो गया है। उसने कुछ बताया नहीं, लेकिन बाथरूम में बेसिन पर लगे दाग से लगा उसके गले से शायद खून आ रहा है। आज मैं इसलिये आपके पास आया हूँ भाभी, कि कल मुझे उसके दराज़ में ये मिला। ” कहकर उसने नींद की गोलियों की जो डिबिया वह शुभो के घर से उठा लाया था , टेबल पर रखी। मीता की आँखें बह निकली थी। न जाने कब परी वहाँ चली आई थी। वह दौड़कर माँ से लिपट गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। ” मैं अभी बाबा के पास जाऊँगी। ”
“हम सब बाबा के पास जायेंगे बेटा। भाभीजी मैं टिकट्स ले आया हूँ, अभी निकलना होगा। ” माँ ने सारी बातें सुन रही थीं। वे एक सूटकेस में उनके कुछ कपडे रखकर ले आई थीं। फिर मीता परी के साथ दिल्ली रवाना हो गई।
उसदिन शुभंकर ऑफिस से जल्दी घर लौट आया था , क्योंकि उसकी तबियत ख़राब थी। माली बगीचे में काम कर रहा था। गाड़ी से उतर कर वह थका-थका सा दरवाज़े की तरफ बढ़ा , तभी दरवाज़े के बगल में लगे लेटर बॉक्स पर उसकी नज़र पड़ी। लेटर बॉक्स से एक बड़ा सा लिफ़ाफ़ा झाँक रहा था। इतना बड़ा लिफ़ाफ़ा कहाँ से आ सकता है। लिखाई कुछ पहचानी नहीं लग रही थी। लिफ़ाफ़ा हाथ में लिये वह सोफे पर जा बैठा। कौन उसे पत्र लिखेगा। सोचते-सोचते उसने लिफाफा खोला। यह पत्र परी ने उसे लिखा था। साथ ही उसने अपने वो सारे खत उसमें जोड़ दिये थे , जो बचपन से वह उसे लिखती रही है। चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी थी। अचानक उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया , और वह सीना पकड़कर गिर पड़ा। उसी समय दरवाज़े पर एक गाड़ी आकर रुकी थी। मिताली गाड़ी से उतरी ही थी, कि उसने अंदर कुछ गिरने की आवाज़ सुनी। वह अंदर की ओर भागी। देखा शुभो ज़मीन पर पड़ा था।
” शुभो , शुभो। ” मिताली ने उसकी नाड़ी देखी। उसकी साँसें भी बंद थीं। चूँकि वह डॉक्टर थी अतः वह जीवनदायी CPR पद्धति से भलीभाँति परिचित थी। अब उसने शुभो के सीने को पूरी ताक़त से , ज़ोर-ज़ोर से दबाना शुरू किया। फिर उसने उसकी नाक दबाकर उसका मुँह खोला और अपने होंठ उसके होठों से मिलाकर ज़ोर से साँस फूँकी। फिर उसके सीने को पूरी ताक़त से ज़ोर-ज़ोर से दबाया , फिर साँस फूँकी। आख़िर शुभो की साँस लौट आई थी। ” बाहर से माली काका को बुला के लाओ बेटी , बाबा को हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा।” परी दौड़कर माली को बुलाकर ले आई। खुशकिस्मती से उसने हवाई अड्डे से सारे दिन के लिये गाड़ी बुक की थी। ड्राइवर भी इस बीच खतरे का संकेत पाकर चला आया था। मिताली ने ड्राइवर की मदद से शुभो को गाड़ी में लिटाया और उसका सर गोदी में लेकर उसके पास जा बैठी । परी माँ का पर्स लेकर चली। मीता ने अपने मोबाइल से हॉस्पिटल से संपर्क किया। ” हैलो , मैं डॉक्टर मिताली गांगुली बोल रही हूँ। ”
“ओह, डॉ. गांगुली , बोलिये बोलिये। ” दूसरी तरफ से सोत्साह आवाज़ आई। ” मैं एक इमरजेंसी मरीज़ को लेकर हॉस्पिटल आ रही हूँ। हार्ट अटैक का केस लगता है। आप ज़रा देखिएगा प्लीज , इमरजेंसी है। ” मिताली ने व्यग्र स्वर में कहा।
“जी, हम लोग तैयार रहेंगे। क्या मैं एम्बुलेंस भिजवा दूँ मैडम? आप कहाँ से आ रही हैं ? ” मीता ने अपना पता बताया। कुछ दूर चलते ही सामने से सायरन बजाती हुई एम्बुलेंस आती दिखाई पड़ी। फिर शुभंकर को एम्बुलेंस में स्थानांतरित कर दिया गया। ऑक्सीजन चालू कर दी गई। हृदयगति मापने वाला यंत्र भी उसके सीने पर लगा दिया गया। हॉस्पिटल में सभी डॉक्टर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त इस भूयसी डॉक्टर को देखने के लिये उत्सुक खड़े थे। हर कोई उनकी मदद करना चाहता था , हर कोई उनकी नज़र में आना चाहता था। अतः शुभंकर को तुरंत ICU में ले जाया गया। मिताली और परी वहीँ बैठे रहे। आधी रात के बाद परी माँ की गोद में सो गई।
सुबह तक शुभंकर की हालत में काफी सुधार आ गया था। इमरजेंसी के डॉक्टर ने आकर उनकी जाँच की। मिताली वहीँ खड़ी थी। “अब ज़रा ऑक्सीजन मास्क हटा कर देखूँ मैडम ?” मीता ने सहमति जताई। मीता उसके सिर के पास खड़ी थी। ऑक्सीजन मास्क हटाते ही शुभो ने एक भरपूर साँस ली और आँखें खोल दी।
“डॉक्टर आपने मुझे क्यों बचाया ? मुझे मर जाने दिया होता ?” शुभंकर ने क्षीण स्वर में कहा।
“मैंने आपको नहीं बचाया डॉ. गांगुली , आपको इन्होने बचाया है। ” अब मीता सामने आई। दूसरे डॉक्टर मुस्कुराकर कमरे से निकल गये।
“तुमने मुझे क्यों बचाया मीता ? मैं तो तुम्हारा अपराधी हूँ। ”
“तो सज़ा मुझे क्यों शुभो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ? ” मीता की ऑंखें भर आई थीं। इस बीच परी मुँह फुलाकर उसके सामने आ खड़ी हुई थी।
“अरे परी बेटा। ” शुभो ने अपनी कमज़ोर काँपती हुई बाहें उसकी ओर फैलाई। परी दौड़कर पिता से लिपट गई। ” मैं आपसे बहुत गुस्सा हूँ बाबा। ”
“मैं कान पकड़ता हूँ बेटा , मैंने बहुत बड़ी गलती की है। ”
“कान पकड़ना है, तो माँ के सामने पकड़िये। माँ को आपने बहुत रुलाया है। ”
“हाँ बेटा , माँ से भी मुझे माफ़ी माँगनी है। ” शुभो ने मिताली की ओर देखते हुये दयनीय स्वर में कहा। ” मैं तुम सब का गुनहगार हूँ। ”
“अब तुम ज्यादा बातें मत करो शुभो , वरना इंजेक्शन देकर सुलाना पड़ेगा तुम्हें। ” मीता ने कहा।
“नहीं नहीं मीता , मैं मेरी बेटी को जरा जी भरकर देख लूँ, मैं वैसे ही ठीक हो जाऊँगा। ” फिर ३-४ दिन बाद शुभंकर पूरी तरफ स्वस्थ हो गया था। लेकिन उसे घर में पूर्ण विश्राम की सलाह दी गई थी। अब मीता ने घर की पूरी ज़िम्मेदारी ले ली थी। एकदिन शुभंकर के दफ्तर के सारे कर्मचारी उनके घर आये। वे वैसे ही राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता , डॉक्टर मिताली से मिलना चाहते थे , आज उनकी वो मुराद भी पूरी हो गई थी।
उन्होंने मिताली को मालायें पहनाई, पुष्पगुच्छ दिये, तस्वीरें खींची। फिर किसी ने पूछा, ” मैडम , पति के रूप में आप गांगुली सर को कैसे देखती हैं?”
“इनसे अच्छा कोई नहीं। इनसे परे मैं किसी को नहीं देखती। ” शुभंकर की आँखें अनायास भर आई।
“और अगर ये नहीं होती आज, तो मैं नहीं होता। ” शुभंकर ने कहा।
“सर आप हमें छोड़कर क्यों जा रहें हैं?”
“इन सात सालों में मैंने जाना है कि अपने परिवार से दूर रहना कितना मुश्किल है। ज़िन्दगी की कितनी अनमोल चीज़े मैंने खो दी है, जो कभी वापिस नहीं लौटेगी। फिर काम के लिहाज़ से मैंने महसूस किया है कि मेरे लिये शिक्षा, पढ़ाई लिखाई से जुड़े रहना ही ठीक है, वही काम मेरे दिल के करीब है। ” शुभो ने कहा।
सबके जाने के बाद मीता ने पूछा ,” तुमने ये काम छोड़ने का फ़ैसला कब किया शुभो ?”
“उसदिन रात को विनय जाने के बाद ये बात मेरे दिमाग में आई। मैं जानता था , मैंने बहुत बड़ी गलती की है , गलती क्या अपराध किया है, और उसकी समुचित सज़ा मुझे अबतक नहीं मिली है। लेकिन न जाने क्यों एक बार फिर जीने की इच्छा जाग उठी थी। मैं महसूस करने लगा था कि मैं अपना मानसिक संतुलन खोने लगा था। खुद पर गुस्सा, शर्मिंदगी , खुद से घृणा , हताशा इन सबमें डूबने लगा था मैं। दिन तो ऑफिस में बीत जाता था , पर जब देखता लोग कैसे अपने परिवार के लिये , बच्चों के बारे में सोचते हैं , चिंता करते हैं, प्लान करते हैं , तो अपने छोटेपन पर , ओछेपन पर, स्वार्थान्धता पर गुस्सा आने लगता था। शाम को पार्क में जाता , लोगों को अपने बच्चों के साथ खेलते देखता , हँसते-खिलखिलाते देखता , तो परी की वो आँसू भरी आँखें याद आती। नार्मल नींद तो मैं भूल ही गया था। मुझे पता है, विनय ने मेरी नींद की गोलियों का डिब्बा देख कुछ और ही सोच लिया था। वो ख़याल मेरे दिमाग़ में नहीं आया कभी, मैं ये नहीं कहूँगा। लेकिन वो तो मेरे लिये बड़ी आसान सजा होती , और फिर उसमें तुम्हारी भी दिक्कतें बढ़ जाती। मैंने ज़िन्दगी में तो कुछ नहीं दिया तुम्हें , तो जाते हुये क्यों दुबारा आघात पहुँचाऊँ ?”
मीता की आखों से अश्रुधाराएँ बह रही थीं। “विनय भाई साहब का ये अहसान हमेशा रहेगा मुझपर। विश्वास करो शुभो , तुम जब हमें उस तरह अचानक छोड़कर चले गये , तो कुछ समय के लिये मैं दिशाहीन सी हो गई थी। तुम्हारे बिना जीना तो कभी सीखा ही नहीं था मैंने। लेकिन हम माँ-बेटी ने कभी तुम्हें दोष नहीं दिया। हम तुम्हारे लिये तड़पते रहें हैं , हर पल बात-बात पर तुम्हारा ज़िक्र चला आता था हमारी बातों में। मैं कभी बड़ी तीव्रता से तुम्हारी कमी महसूस करती थी। मन करता था , दौड़कर चली आऊँ तुम्हारे पास , लेकिन तुमने जाते वक़्त कहा था, कि तुम मेरा मुँह नहीं देखना चाहते , मैं श्राप हूँ तुम्हारे लिये , तो में खुद को रोक लेती। ”
अब शुभंकर फूट-फूटकर रोने लगा। मीता ने दौड़कर उसे गले लगा लिया। ” मुझे कभी माफ़ मत करना मीता , मैं तुम्हारा अपराधी हूँ। ”
“नहीं शुभो, भूल जाओ वो सब बातें। हम लोग फिर से एक नई ज़िन्दगी शुरू करेंगे। ” मीता ने उसके आँसू पोंछते हुये कहा। परी अब वहाँ आ खड़ी हुई थी। वह आँखें बड़ी-बड़ी किये माँ-बाबा की बातें समझने की कोशिश कर रही थी।
“मैंने कितनी बातें मिस कर दी मीता। मैंने हमारी परी को कभी गोदी में नहीं घुमाया, गोद में बिठाकर कहानियाँ नहीं सुनाई। ” शुभंकर ने परी की ओर देख कहा।
“वो सब अब भी कर सकते हो शुभो। कहीं घूमने निकलो इसके साथ, दो कदम जाते ही हाथ उठा देगी, पैर में दर्द हो रहा है उठाओ। हर दिन रात को माथे पर हाथ फेरते हुये कहानी सुनाओ, तब जाकर सोयेगी तुम्हारी बिटिया। TV देखने बैठो, तो तुम्हारी गोदी में आ बैठेगी और हज़ारों सवाल! दिन भर घर में चहकती फिरती है। इसे शांत करने का एक ही उपाय है , गोदी में लेकर बैठो और कहानी सुनाओ। ” मिताली ने परी को चूमते हुये कहा।
“मैं आपको बिलकुल नहीं सताऊँगी बाबा, प्रॉमिस। गोदी में उठाने के लिये कभी नहीं कहूँगी, कहानी भी सुनाने के लिये नहीं कहूँगी, आप फिर कभी माँ को छोड़कर मत जाना। बचपन में मैंने आपके कंप्यूटर पर पेशाब कर दिया था, इसलिये आप परी को छोड़कर चले गये थे न। ” परी ने बड़ी मासूमियत से कहा।
“नहीं बेटा, बाबा से बहुत बड़ी गलती हो गई थी। ” शुभो फिर रो पड़ा था।
आखिर एकदिन शुभो ने अपना दिल्ली से घर समेटा और मीता और परी के साथ कोलकाता लौट गया। वह मीता के साथ उसके घर जा पहुँचा।
“हम लोग तो अपने फ्लैट में रहेंगे न शुभो?”
“नहीं वो फ्लैट तो मैंने एकसाल बाद ही बेच दिया था और वो पैसे परी के नाम से इन्वेस्ट कर दिये थे। परी जब अठारह साल की हो जायेगी, उसे मिलेंगे। मैं तो यही तुम्हारे साथ तुम्हारे घर में रहूँगा। ” शुभो ने कहा।
“हमारे घर में कहो शुभो। ”
“नहीं, अब मैं सिर्फ तुम दोनों के साथ रहना चाहता हूँ। पुरुष जाती पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिये। न जाने कब उसका अहंकार जाग उठे। ”
“कभी नहीं, मेरा ये आदमी कभी ऐसा नहीं करेगा। अब तो मैं बांध के रखूँगी तुम्हें। ” मीता ने शुभो के गले में बाहें डालते हुए कहा। आज फिर मिताली और शुभंकर ने एक बार अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी शुरू कर दी थी।
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सितम्बर १३, २०२०
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#Interesting Story in Hindi with Moral
मैं पिछले कई सालों से हिंदी साहित्य से जुड़ा हूँ। १९७५ से मैं आकाशवाणी नागपुर से अपनी कवितायें प्रसारित किया करता था। फिर ८० के दशक से कहानियाँ भी लिखनी शुरू की। अभी मैं कनाडा में वैंकोवर में कार्यरत हूँ। हांलाकि देश और साहित्य से संपर्क हमेशा बना रहा।
bahut hi jayda love imosanl aur sad se bhra dil ko chhu dene wali story