विक्रम बेताल की बारहवीं कहानी: दीवान मरा क्यों? बेताल पच्चीसी
दीवान मरा क्यों? बेताल पच्चीसी की बारहवीं कहानी – Pachisi ki 12th Kahaani
एक समय अंगदेश मे यशकेतु नाम का राजा था। उसके दीर्घदर्शी नाम का बड़ा ही चतुर दीवान था। राजा बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ दीवान पर डालकर वह भोग में पड़ गया। दीवान को बहुत दु:ख हुआ। उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी निन्दा होती है। इसलिए वह तीरथ का बहाना करके चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में उसे एक शिव-मन्दिर मिला। उसी समय निछिदत्त नाम का एक सौदागर वहाँ आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है। दीवान भी उसके साथ हो लिया।
दोनों जहाज़ पर चढ़कर सुवर्णद्वीप पहुँचे और वहाँ व्यापार करके खूब धन कमाकर लौटे। रास्ते में समुद्र में दीवान को एक कृल्पवृक्ष दिखाई दिया। उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था। उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी। इस नजारे को देख सत्यमणि को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। थोड़ी देर बाद वह ग़ायब हो गयी। पेड़ भी नहीं रहा। दीवान बड़ा चकित हुआ।
दीवान ने अपने नगर में लौटकर सारा हाल कह सुनाया। इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी। दीवान की कहानी सुनकर राजा उस सुन्दरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम दीवान पर सौंपकर तपस्वी का भेष बनाकर वहीं पहुँचा। पहुँचने पर उसे वही कल्पवृक्ष और वीणा बजाती कन्या दिखाई दी। उसने राजा से पूछा, “तुम कौन हो?” राजा ने अपना परिचय दे दिया। कन्या बोली, “मैं राजा मृगांकसेन की कन्या हूँ। मृगांकवती मेरा नाम है। मेरे पिता मुझे छोड़कर न जाने कहाँ चले गये।”
राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया। कन्या ने यह शर्त रखी कि वह हर महीने के शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी को कहीं जाया करेगी और राजा उसे रोकेगा नहीं। राजा ने यह शर्त मान ली।
इसके बाद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी आयी तो राजा से पूछकर मृगांकवती वहाँ से चली। राजा भी चुपचाप पीछे-पीछे चल दिया। अचानक राजा ने देखा कि एक राक्षस निकला और उसने मृगांकवती को निगल लिया। राजा को बड़ा गुस्सा आया और उसने राक्षस का सिर काट डाला। मृगांकवती उसके पेट से जीवित निकल आयी।
राजा ने उससे पूछा कि यह क्या माजरा है तो उसने कहा, “महाराज, मेरे पिता मेरे बिना भोजन नहीं करते थे। मैं अष्टमी और चतुदर्शी के दिन शिव पूजा यहाँ करने आती थी। एक दिन पूजा में मुझे बहुत देर हो गयी। पिता को भूखा रहना पड़ा। देर से जब मैं घर लौटी तो उन्होंने गुस्से में मुझे शाप दे दिया कि अष्टमी और चतुर्दशी के दिन जब मैं पूजन के लिए आया करूँगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाया करेगा और मैं उसका पेट चीरकर निकला करूँगी। जब मैंने उनसे शाप छुड़ाने के लिए बहुत अनुनय की तो वह बोले, “जब अंगदेश का राजा तेरा पति बनेगा और तुझे राक्षस से निगली जाते देखेगा तो वह राक्षस को मार देगा। तब तेरे शाप का अन्त होगा।”
इसके बाद राजा उसे लेकर नगर में आया। दीवान ने यह देखा तो उसका हृदय फट गया। और वह मर गया।
इतना कहकर बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, “हे राजन! अब तुम यह बताओ कि यह सब सुनकर दीवान की मृत्यु क्यों हुई थी?”
विक्रम ने कहा, “दीवान की मृत्यु इसलिए हुई, क्योंकि उसने सोचा कि राजा फिर स्त्री के लोभ में पड़ गया और उसके भोग-विलास के कारण राज्य की दशा फिर से खराब हो जाएगी। उस कन्या के बारे में राजा को न बताना ही बेहतर था।”
राजा विक्रम ने जैसे ही उत्तर दिया, बेताल फिर से पेड़ की ओर उड़ चला और जाकर उस पर उल्टा लटक गया। वहीं, राजा विक्रमादित्य एक बार फिर बेताल को पकड़ने उसके पीछे दौड़ पड़े।
Also, Read More:-
- विक्रम और बेताल की प्रारंभिक कहानी – Vikram Betal ki Kahaani
- विक्रम बेताल की पहली कहानी: पाप किसको लगा? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की दूसरी कहानी: किसकी स्त्री?
- विक्रम बेताल की तीसरी कहानी: बड़ा बलिदान किसका? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की चौथी कहानी: ज्यादा पापी कौन? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की पांचवी कहानी: असली वर कौन? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की छठी कहानी: पत्नी किसकी? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की सातवीं कहानी: राजा या सेवक- किसका काम बड़ा?
- विक्रम बेताल की आठवीं कहानी: सबसे बढ़कर कौन? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की नवी कहानी: राजकुमारी किसको मिलनी चाहिए? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की दसवीं कहानी: सबसे बड़ा त्याग किसका? बेताल पच्चीसी
- विक्रम बेताल की ग्यारहवीं कहानी: सबसे अधिक कोमल कौन? बेताल पच्चीसी
Short Stories in Hindi Editorial Team. If you want to publish your story then please contact – helpagc0909@gmail.com. Like us on Facebook.