लस्सी किंग – समर्थ (बच्चों की कहानी) Kids Story in Hindi
लस्सी किंग – Kids Story in Hindi
रतनपुर गांव में समर्थ नाम का एक बच्चा रहता था। उसकी उम्र महज १३ साल की थी। समर्थ इतना छोटा था, लेकिन कई डाकुओं से लड़ने की हिम्मत रखता था। गांव में जब भी डाकू या चोर आता, लोग समर्थ को आगे कर देते। समर्थ की एक ही ताकत थी, लस्सी। गांव में सब उसको लस्सी किंग के नाम से जानते थे। जब लस्सी पीने को नहीं मिलती, तो समर्थ दुःखी हो जाता था। समर्थ का दिमाग काम करना बंद हो जाता था और उसका शरीर भी कमजोर पड़ने लगता था; लेकिन जब उसको लस्सी मिल जाती, वह उत्साहित हो जाता और अपने आप में एक स्फूर्ति महसूस करता।
एक बार समर्थ ने घर की सारी बनाई हुई लस्सी पी ली। मां ने उसको बहुत सुनाया और कहा की अब तूझे लस्सी नहीं मिलेगी। जा चला जा यहां से तू। उस गांव में चंपा रानी की लस्सी बहुत प्रचलित थी। उसको सब रानी की लस्सी के नाम से जानते थे। गांव के बीच एक पीपल का पेड़ था, इसके नीचे बैठकर चंपा रानी लस्सी बेचती थी। उनका घर भी पीपल के पेड़ के पास में ही था। समर्थ चुपके से उनके पास चला गया और जब उसने देखा की चंपा रानी कुछ लेने के लिए घर पे गई है, तब चुपके से आके समर्थ ने सारी लस्सी पी ली और वापस घर चला गया। उसके घर जाने के बाद, चंपा रानी को पता चलते ही, वो तुरंत समर्थ के घर आई और कहा,“ प्रेमवती जी, बाहर निकालिए, अपने लाडले को जरा! देखो, देखो जरा! मेरी सारी लस्सी वो पी गया। अब घर में दही भी नहीं बचा है, मैं कैसे लस्सी बनाऊं अब? बताओ जरा मुझे। अपने लाडले को जरा समझाए और इसको घर पे रस्सी से बांधकर रखो, कुछ दिन। लस्सी के बिना रखो कुछ दिन उसको। ”
प्रेमवती ने एक मजबूत रस्सी से उसको बांध दिया और अपना काम करने लगी। रात को प्रेमवती ने रस्सी खोल दी, लेकिन दो – तीन दिनों तक लस्सी भी उसको नहीं दी। एक कमरे में उसको बंद कर दिया। तीन दिनों के बाद उसको बंद कमरे से बाहर निकाला, लेकिन गांव में किसी को भी लस्सी देने से मना किया। दो – तीन दिन तक लस्सी न पीने से उसका शरीर सुखा पड़ गया और शरीर में पूरी तरह से कमजोरी आ गई। वह बीमार हो गया और तीन दिन के बाद वो घर से बाहर निकल गया। जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठकर लस्सी – लस्सी कहकर रोने लगा। शाम हो गई, लेकिन समर्थ घर नही आया, तो उसकी मां को चिंता हुई और उसने लस्सी बनाकर एक बोतल में भर दी। फिर गांव में हर जगह पूछती – पूछती जाती, मेरे समर्थ को आपने देखा है? कई जगहों पे पूछने के बाद एक व्यक्ति ने कहा की उसने समर्थ को जंगल की तरफ जाते हुए देखा था। फिर समर्थ की मां तेज़ी से जंगल की तरफ गई और उसने एक पेड़ के नीचे समर्थ को रोते हुए पाया। मां को देखते ही समर्थ ने कहा, “मां, लस्सी चाहिए मुझे।” मां ने लस्सी की बोतल समर्थ को दे दी और समर्थ ने पूरी लस्सी पी ली। फिर मां ने समर्थ को गले से लगा लिया और बहुत रोने लगी और समर्थ को कहा,“ समर्थ, बेटा अब तुझे में कभी नहीं बोलूंगी, जितनी लस्सी पीनी है, तू पीना, लेकिन घर से ऐसे बिना बताए मत भाग जाना। बहुत फिक्र हो रही थी तुम्हारी। तुम्हे देखने के बाद मेरी जान में जान आई।” “और मैंने लस्सी को देखा, तो मेरी जान में जान आई।” समर्थ ने हंसते हुए कहा और मां के आंसू अपने हाथों से पोंछ लिए। लस्सी पीकर समर्थ फिर से ठीक हो गया और उसका शरीर फिर से स्वस्थ हो गया। वो अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगा। फिर प्रेमवती ने लस्सी देने में कोई कमी नहीं रखी।
स्कूल जाते वक्त प्रेमवती रोज उसको दोपहर के खाने के साथ बोतल में लस्सी भरकर देती। एक दिन की बात है। समर्थ, अपने दोस्तों के साथ स्कूल जा रहा था। उसके दोस्तों के नाम थे, राजू, मोहन और पिंकी। रास्ते में अचानक पिंकी जोर से चिल्लाई, “ अरे बापरे शेर! ये अब कहा से आ गया? समर्थ, मुझे बहुत डर लग रहा है। आज पक्का ये हमें कच्चा ही चबा जायेगा।” बोलकर उसके पसीने छूट गए और उसके हाथ पैर कांपने लगे। “ तुम घबराओ मत पिंकी, मैं हूं ना। जरा मेरे बैग से लस्सी निकालो तो।” समर्थ ने उत्तर दिया। पिंकी ने लस्सी की बोतल समर्थ को दी और समर्थ ने लस्सी की बोतल पी ली। फिर वह शेर के साथ कुछ मिनटों तक लड़ा और अंत में शेर हार मानकर वापस जंगल में चला गया। समर्थ और उसके दोस्त चलते-चलते स्कूल पहुंच गए।
शिक्षक ने समर्थ और उसके दोस्तों से, देर से आने का कारण पूछा। समर्थ ने सारी बातें विस्तार से बताई। फिर शिक्षक ने पढ़ाना जारी रखा। शिक्षक नाइट्रोजन वायु के बारे में पढ़ा रहे थे। शिक्षक ने देखा की समर्थ गहरी सोच में डूबा हुआ है। उन्होंने अचानक समर्थ से पूछा, “ समर्थ, मुझे एक सवाल का जवाब दो। नाइट्रोजन के क्या – क्या फायदे होते हैं?” “ नाइट्रोजन का तो पता नहीं सर, लेकिन लस्सी के फायदे जानने है तो बताओ, अभी बता देता हूं।” समर्थ ने उत्तर दिया। उसका उत्तर सुनकर क्लास के सारे बच्चे जोर – जोर से हंसने लगे। शिक्षक ने समर्थ से कहा, “ समर्थ, क्या फालतू बकवास कर रहे हो? पढ़ाई – लिखाई तो तुमसे होती नही है। बस पूरा दिन लस्सी के गुणगान गाते रहते हो। जाओ क्लास के बाहर जाके खड़े हो जाओ। लगता है, तुम्हारे मम्मी – पापा से ही तुम्हारी बात करनी पड़ेगी। शिक्षक को पता था की समर्थ बहुत बहादुर बच्चा था, लेकिन बहादुरी के साथ ज्ञान भी होना चाहिए; इसलिए वो उसे हर बार डांट देते थे। ऐसा हर रोज चलता रहता। समर्थ कुछ न कुछ शरारत करता रहता, लेकिन फिर भी अपनी वीरता से उसने सबका मन जीत लिया था।
समर्थ की बहादुरी से पूरा गांव सुरक्षित रहता था, लेकिन लस्सी किंग से इतना पीटने के बाद भी डाकू अक्सर गांव में आकर लोगों को हैरान करते। एक बार की बात है, समर्थ स्कूल से वापस लौट रहा था। तभी उसने देखा की डाकू भैरव का एक सिपाही किसी लड़की का कीमती हार छीनकर भाग रहा था। उस लड़की ने लस्सी किंग से मदद मांगी, “समर्थ, उस लुंटेरे को पकड़ो। वो हार बहुत कीमती है, अगर मां को पता चल गया, तो वो मुझे मार डालेगी।” कहकर बहुत रोने लगी।
पास में एक साइकल खड़ी थी। लस्सी किंग साइकल पे सवार होकर उस सिपाही के घोड़े का पीछा करने लगा। समर्थ बहुत तेज़ी से साइकल चला रहा था। रास्ते में उसने बड़ा लकड़ी का डंडा ले लिया। कुछ पलों में ही उसकी साइकल, सिपाही के घोड़े के नजदीक आ गई। फिर समर्थ ने एक जबरदस्त डाइव लगाकर, लकड़ी के प्रहार से सिपाही को घोड़े से नीचे फेंक दिया। फिर उस सिपाही को बहुत पीटा और कहा, “ आइंदा रतनपुर की ओर आंख उठाकर भी मत देखना, वरना इससे भी बुरा हाल करूंगा तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का।”यह कहकर समर्थ ने वो हार उससे छीन लिया और उस लड़की को दे दिया।फिर वो सिपाही दुम दबाकर भाग गया। हार मिलते ही, लड़की ने समर्थ का शुक्रिया अदा किया।
सिपाही को पीटकर आते देख, डाकू भैरव ने कहा, “ फिर पीट दिया ना उस बच्चे ने तुम्हे, हां! कुछ करना पड़ेगा उस बच्चे का।” एक सिपाही ने कहा, “ मालिक, अगर आपकी अनुमति हो तो एक बात कहूं?” “ हां, बोलो। क्या कहना चाहते हो?” भैरव ने कहा। “ मालिक जितना मुझे पता है, उस बच्चे की कमजोरी लस्सी है। अगर उसको १-२ दिन तक लगातार लस्सी नहीं मिलेगी, तो वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। मैंने रतनपुर के कुछ लोगों से सुना है की अगर समर्थ को लस्सी नहीं मिलती है, तो उसका शरीर कमजोर पड़ने लगता है, उसका दिमाग काम करना बंद हो जाता है, उसके पास बिलकुल शक्ति नहीं रहती। उसकी शक्ति का रहस्य लस्सी है। लस्सी के बिना वो कुछ नहीं है।” उस सिपाही ने जवाब दिया।
“ अच्छा! लस्सी! लस्सी!” कहकर भैरव बहुत हंसने लगा। फिर उसने कहा,“ लेकिन उसको हम लस्सी से दूर कैसे रखे? गांव में तो इतनी सारी भैंसे, गाय हैं। दूध से दही बनता है और दही से लस्सी। अगर हम एक दो गाय और भैंस चुरा भी ले,तो भी वह कही न कही से तो लस्सी पी ही लेगा।” “मालिक मेरे पास एक मस्त प्लान है, सब अपने कान इधर लाओ।” एक सिपाही ने कहा।।
फिर उस सिपाही ने वह प्लान सबको बताया और उस प्लान को सुनकर सारे सिपाही और डाकू खुश हो गए। डाकू ने कहा, “ लस्सी किंग! अब देखता हूं मैं, कैसे बचाता है तू अपने रतनपुर को? न रहेगी लस्सी और न बजेगी लस्सी किंग की बांसुरी! समर्थ, अब तेरा खेल खत्म। बहुत तड़पेगा तू लस्सी के बिना, लेकिन लस्सी की एक बूंद नहीं मिलेगी, हां हां हां!” कहकर जोर-जोर से डाकू हंसने लगा।
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दोस्तो, मेरा नाम आशीष पटेल है। प्यार से मुझे लोग ‘आशु’ कहकर बुलाते है। मैं गुजरात राज्य के वडोदरा शहर में से, एक छोटे से गांव ‘विश्रामपुरा’ से हूं। मुझे कहानी लिखना सबसे प्रिय लगता है एवं में इसी लक्ष्य की तरफ अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूं। उम्मीद है, की यह कहानी आपको पसंद आयेगी। अगर आपको यह कहानी पसंद आए, तो अपने दोस्तो के साथ जरूर साझा कीजिएगा। Contact
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Nice story