लस्सी किंग – समर्थ (भाग २) Story for Kids Hindi
बच्चों की कहानी – Story for Kids Hindi
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लस्सी किंग – समर्थ (बच्चों की कहानी) Kids Story in Hindi
योजना के मुताबिक़ डाकू भैरव, अपने साथियों के साथ रात को २ बजे, गांव के पास वाले तालाब के पास जाते हैं। तालाब के पास जाके उसमें ५ से १० जितनी जहरीली पदार्थ की बोरी, तालाब में डाल देते है। फिर वे सारे जंगल वापस चले जाते हैं।
अगले दिन सुबह समर्थ, अपने मित्र पिंकी और मोहन के साथ स्कूल जाता है। गांव के सारे लोग, रोज २ वक्त भैंस और गाय को पानी पिलाने के लिए तालाब के किनारे ले जाया करते थे। सुबह रोज के समय पर गांव वाले भैंसे, गाय लेकर तालाब किनारे पहुंच जाते है। प्यासी भैंसे और गाय, पानी देखते ही पानी पीने के लिए टूट पड़ती है। कुछ देर के बाद कुछ भैंसे और गाय जमीन पर गिर पड़ी। जो थोड़ी भैंसे और गाय बची थी, वे भी कुछ देर में जमीन पर धराशायी हो गई। गांव के सारे लोग बचाओ – बचाओ कहकर इधर – उधर भागने लगे। कुछ लोगों ने गाय और भैसो को जगाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं उठी।इसके बाद डाकू तुरंत आते हैं और गांव वालो के घर में घुसकर सारा सामान, पैसे, कीमती गहने सब चोरी करके जंगल में ले जाते हैं।
कुछ देर के बाद, यह बात स्कूल तक पहुंच गई और समर्थ को पता चलते ही समर्थ तुरंत स्कूल से सीधा जंगल में पहुंचता है। वह दौड़ता हुआ जंगल की ओर आगे बढ़ता है और बीच में ही उसका पैर, डाकू ने फैलाई हुई जाल में फंस जाता है। समर्थ के पैर जाल में फंसते ही, डाकू और उनके सिपाही आते है और एक मजबूत सलिए वाले बड़े से पिंजरे में कैद कर लिया। फिर समर्थ को अपने ठिकाने ले गए। समर्थ ने देखा की वहां पे डाकू ने चुराए हुए पैसे, गहने सब थे। साथ में डाकू और उनके साथी वहां पर मस्ती से जुमते हुए नजर आए।
समर्थ ने बहुत कोशिश की, लेकिन पिंजरे के सलिये इतने मजबूत थे की वह तोड़ नहीं पाया। देखते ही देखते १ दिन बीत गया। समर्थ लस्सी के बिना बहुत तरस गया था। उसको लस्सी पीना था, लेकिन वह पिंजरे से बाहर कैसे निकले? वह सोच रहा था। धीरे – धीरे दूसरा दिन भी बीतता चला गया और दूसरे दिन भी समर्थ को लस्सी के बिना रहना पड़ा। लस्सी के बिना उसका शरीर सुखा पड़ गया। समर्थ लस्सी के बिना इस तरह तड़प रहा था, जैसे की मानो कोई मछली पानी के बिना तरस रही हो!
गांव के सारे लोगों ने समर्थ के प्रति चिंता जताई। कुछ लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते की, समर्थ को सही सलामत रखना। उसकी दोस्त पिंकी,मोहन और राजू भी उदास हो गए। राजू की उम्र महज ६ साल की थी और यह बात सुनकर वह पूरी तरह टूट चुका था, बहुत रो रहा था, इसलिए उसको, पिंकी ने घर पे रहने के लिए आग्रह किया और विश्वास दिलाया की वो दोनो समर्थ को वापस लेकर आएंगे। काफी समझाने के बाद वह घर गया। उसके घर जाने के बाद,पिंकी ने मोहन से कहा, “ मोहन, समर्थ लस्सी के बिना पता नहीं कैसे रह पाया होगा? मुझे उसकी बहुत फिक्र हो रही है।” “ हां, मुझे भी। चलो कुछ सोचते है।” मोहन ने चिंता जताते हुए जवाब दिया।पिंकी और मोहन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की अब क्या करे? मोहन और पिंकी ने पूरे गांव की तलाश की,लेकिन पूरे गांव में किसी के भी पास दूध या दहीं नहीं बचा था। बहुत कोशिश के बाद एक व्यक्ति के घर से दहीं मिला। पिंकी ने तुरंत ही दहीं की मदद से लस्सी बनाई। अब समस्या यह थी कि इस लस्सी को लेकर जंगल कैसे जाए? और कैसे समर्थ को लस्सी पिलाए?
पिंकी के दिमाग में एक विचार आया । उसने मोहन को अपना सारा प्लान बताया। उस रात को मोहन और पिंकी, मम्मी – पापा के सोने के बाद,चुपके से लस्सी की बोतल लेकर जंगल की ओर जाने लगे। मोहन ने अपने अलमारी से टॉर्च लिया हुआ था,उसकी मदद से दोनों दोस्त आगे बढ़ रहे थे। रास्ता बहुत ही सुनसान था। पिंकी को बहुत डर लग रहा था; लेकिन अपने दोस्त के लिए, दोनों कुछ भी करने के लिए तैयार थे। यही बात उनको हिम्मत और होंसला दे रही थी। काफी चलने के बाद, वो दोनों डाकू के स्थान पर पहुंचे। रात के २ बजे थे। सारे सिपाही सो रहे थे। समर्थ एक पेड़ के नीचे मजबूत पिंजरे में कैद था। वह पिंजरा जेल के कमरे के समान था। उस पिंजरे के सारे सलिए भी जेल की तरह ही मजबूत थे।
पिंकी और मोहन दबे पांव उस पिंजरे तक पहुंचे। समर्थ ने पिंकी और मोहन के हाथो में लस्सी को देखा, तो उसकी जान में जान आई। उसने मन ही मन, दोनों को शुक्रिया अदा किया। इतने में एक सिपाही की आंख खुली और उसने दोनों को देख लिया। फिर उसने अपनी बंदूक से आसमान की ओर एक गोली चलाई। फिर दूसरे सिपाही और डाकू भैरव जाग गए। इतनी देर में पिंकी ने लस्सी की बोतल समर्थ को दे दी। लस्सी की बोतल लेते ही तुरंत समर्थ उसको पी गया और अपने आपको शक्तिशाली महसूस करने लगा। डाकू भैरव ने अपने साथियों से कहा, “ ये बच्चे यहां तक कैसे पहुंचे? तुम सब क्या कर रहे थे?” कहकर दो – तीन सिपाही को थप्पड़ मार दिया। पिंकी और मोहन बहुत डरे हुए थे। एक सिपाही ने दोनों को पकड़ा और डाकू भैरव के पास ले गया। “ बहुत खूब बच्चों! दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी दोस्ती की। क्या खूब निभाई है, दोनों ने दोस्ती! लेकिन कब तक?” भैरव ने कहा। “ दोस्ती तो हम मरते दम तक निभायेंगे भैरव, एक बार हमारे समर्थ को बाहर आने दे, तू फिर देख, वो तुम्हारा क्या हाल करता है।” मोहन ने गुस्से में कहा। डाकू ने मोहन को एक थप्पड़ मार दिया और अपने एक सिपाही से कहा, “ रस्सी से बांध दो, इन दोनों को। लगता हैं आज तीनों दोस्तों की एक साथ बलि चढ़ानी पड़ेगी।” बेरहम डाकू ने अपने एक आदमी से चाबुक मंगवाया और फिर दोनों बच्चों को चाबुक से पीटने लगा।
समर्थ ने बहुत कोशिश की, लेकिन मजबूत पिंजरे के सलिये टूट ही नहीं रहे थे। अंत में उसने सलियो को तोड़ने में,अपनी सारी शक्ति लगा दी और आखिरकार सलिए टूट गए। समर्थ पिंजरे से बाहर आ गया। “ साथियों देख क्या रहे हो, मार दो साले को। आज ये हाथ से बचकर नहीं निकलना चाहीए।” भैरव ने आक्रोश के साथ अपने साथियों को आदेश दिया। फिर अगली कुछ मिनटों तक समर्थ और डाकू के साथियों की लड़ाई हुई। समर्थ ने अपने हाथ – पैरो की मदद से एक – एक सिपाही को धूल चटा दी। किसीको हाथों से, तो किसीको अपनी लात से प्रहार किए और भैरव के सारे साथियों को हरा दिया।
फिर पिंकी और मोहन की बंधी हुई रस्सी खोल दी और उनको आजाद कर दिया। उसके बाद भैरव को भी बहुत पिटा और सबको रस्सी से बांधकर राजा धर्म के पास ले गए। राजा धर्म ने अपने सिपाही से कहा, “ इन राक्षशो को कारावास में डाल दो।” फिर समर्थ ने डकैती का सारा पैसा, हीरे, गहने आदि सब राजा को दे दिया। कहा कि, “ राजा जी ये सब आप गांव की प्रजा में बांट देना।” “ जरूर समर्थ। मुझे तुम पर गर्व है, की तुम जैसे वीर पुत्र हमारे गांव में है। मैं सदैव तुम्हारा आभारी रहूंगा। में तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा। तुम्हारे होते हुए हमारे रतनपुर को कभी कोई खतरा नहीं पहुंचा सकता। तुम्हारे साथ – साथ में मोहन और पिंकी का भी शुक्रिया अदा करता हूं। उन्होंने भी इस लड़ाई में तुम्हारी बहुत मदद की।” राजा धर्म ने गर्व से कहा। “ यह तो मेरा फर्ज है, राजा जी। गांव की रक्षा करना, गांव के लोगों का हित चाहना, यह मेरा प्रथम धर्म है। लेकिन मैं आज अपना यह फर्ज, मेरे दोस्तों की वजह से निभा पाया हूं। अगर पिंकी और मोहन समय पर लस्सी देने नहीं आते, तो पता नहीं मेरा क्या होता!” समर्थ ने कहा। “ हमें तुम पर और तुम्हारे दोस्तों पर नाज है, समर्थ। सदा खुश रहो। ईश्वर तुम सबको हर मुसीबत से लड़ने की शक्ति दे।” कहते हुए तीनों को कुछ कीमती हीरे भेट में स्वीकार करने को कहा। समर्थ ने हंसते हुए राजा को कहा, “ राजा जी, अगर आपको देना ही है, तो मुझे और मेरे दोस्तों को लस्सी पीला दीजिए। डाकू और उनके साथियों से लड़ते – लड़ते मुझे बहुत भूख लग गई।” “ हां, क्यों नहीं! हम भी तुम्हारे साथ लस्सी पिएंगे, लेकिन एक शर्त पर, हां! तुम तीनों को ये हीरे स्वीकार करने पड़ेंगे।” राजा ने उत्तर देते हुए कहां।
भाग – ३ बहुत जल्द…
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दोस्तो, मेरा नाम आशीष पटेल है। प्यार से मुझे लोग ‘आशु’ कहकर बुलाते है। मैं गुजरात राज्य के वडोदरा शहर में से, एक छोटे से गांव ‘विश्रामपुरा’ से हूं। मुझे कहानी लिखना सबसे प्रिय लगता है एवं में इसी लक्ष्य की तरफ अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूं। उम्मीद है, की यह कहानी आपको पसंद आयेगी। अगर आपको यह कहानी पसंद आए, तो अपने दोस्तो के साथ जरूर साझा कीजिएगा। Contact