धर्म की जीत – Moral Based Story in Hindi
Moral Based Story in Hindi
यह एक पौराणिक कथा है, दो मित्र थे, एक मित्र ब्राहमण था और दूसरा मित्र वैश्य था। दोनो बचपन के घनिष्ठ मित्र थे, परंतु दोनो का स्वभाव एक दूसरे से भिन्न ही था। ब्राहमण को हमेशा अपने वैश्य मित्र का धन वैभव वेष भूषा ही भाते थे और वैश्य को अपने ब्राहमण सखा का सादा सरल ज्ञान पूर्वक जीवन ही लुभाता था, एक दिन ब्राह्मण लोभ वश अपने मित्र से बोला:-
ब्राह्मण: सखा… क्यू ना हम देश भ्रमण करने चले,
Moral Based Story in Hindi
यह सुन वैश्य ने भी सखा का समर्थन किया और धन धान्य लेकर दोनो अपने परिवार से आज्ञा लेकर चल पडे, पर ब्राह्मण तो लोभ वश कुछ और ही सोच मे था,कि वैश्य का धन लूटकर उन पैसो को लेकर कही दूर चला जाऊँगा, तभी रास्ते मे ब्राह्मण बोला:-
ब्राह्मण : मित्र, इस युग मे जो पापी अधर्मी है उसका ही सम्मान है, बाकी धर्म से तो कष्ट ही मिलता है,
वैश्य: नही सखा, धर्म ही सबसे सर्वोपरि है,
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ब्राहमण:क्रोधित होकर बोला, ऐसा है तो चल हम शर्त लगाते है, और किसी तीसरे व्यक्ति से पूछते है की धर्म अच्छा या अधर्म?
तीसरा व्यक्ति: आजकल तो विधाता भी नही सुनता, तो अधर्म ही अच्छा है।
ब्राह्मण: है सखा देखा कहा था ना अब इस ऐवज मे मुझे अपना सारा धन दे दो।
वैशय:- नही सखा, धर्म किसी भी रूप मे हो, सदा विजय होती ही है,
ब्राहमण: फिर बोला अगर तुझे अभी भी शक है तो पुनः बाजी लगा, इस बार मै तेरे हाथ काट दूंगा अगर असत्य हुआ तो,
वैश्य: ठीक है, फिर तीसरे व्यक्ति से पूछा उसने फिर वही बोला की अधर्म ही जीतता है।
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ब्राहमण ने फिर क्रोध वश उस वैश्य के हाथ काट दिए, फिर भी वैश्य धर्म का ही गुनगान करने लगा,
वैश्य: वैशय बोला है सखा यह हाथ ही हमे पाप करवाते है, अच्छा हुआ काट दिया और धर्म की जय करने लगा,
ब्राहमण ने फिर शरत लगाई, इस बार आखे निकाल ली और मरणासन्न समझ कर सागर मे फेक दिया,और धन लेकर ब्राह्मण वहां से चल दिया।
किसी तरह वो वैश्य सौभाग्य से बहते हुए राजा विभिषण के पास पहुंच गया, राजा ने उसे जीवित जान उसका उपचार किया और संजीवनी देकर पुनः जीवित कर दिया और राजा विभिषण को सब कथा सुना दी।
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यह कहकर वैशय वो संजीवनी लेकर मार्ग मे चलने लगा और दूसरे राज्य पहुचा और देखा की उस राजा की एक ही पुत्री है और वो नेत्रहीन है, वैश्य ने संजीवनी देकर उस राजकुमारी की आखे ठीक कर दी, यह देखकर राजा ने वैश्य के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर, उसको राजा बना दिया, यहां दूसरी ओर उस लोभी ब्राह्मण को लूटेरो ने लूट लिया और वैशय की हत्या का दोष लेकर वो यहाँ वहां भटकने लगा। वैश्य जो अब राजा था उसको अपने मित्र की याद आने लगी और उसको खोजने निकल पडा और उसको खोज कर गले लगा लिया।
वैशय: वैशय बोला सखा आज तुम मुझ से शर्त ना लगाते और मै धर्म पर विश्वास नही करता तो आज वैश्य से राजा नही बनता, अतः धर्म की हमेशा जीत ही होती है,
ब्राहमण: ब्राहमण बोला सही कहा सखा और माफी मांगने लगा,
दोनो ने एक दूसरे को गले लगाया और अपने परिजनों के साथ महल मे रहने लगे, वैश्य राजा बना और ब्राह्मण ने राज्य के कुल पुरोहित की पदवी संभाली।
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यह कथा पौराणिक ग्रंथों से प्रेरित है जिसका सार है की सत्य और धर्म का मार्ग कठिन जरूर होता है, परंतु उसका फल सदा मीठा ही होता है।
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भूतपूर्व शोधर्थी, इस समय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में विद्यार्थी. मुझे साहित्य से प्रेम है, कविताएँ लिखने पढ़ने में रुचि है.
Awesome story…keep it up..
Aapka story mai padhta Hu..they are awesome with great thought
धन्यवाद