‘एक अनोखा ख्वाब और उसकी अधूरी दास्तां’ – Hindi Story

‘कुछेक ख्वाब’

एक समय एक अकेला व्यक्ति अपने छोटे से घर में रहता था। वह अपने जीवन को उसकी सामान्य और रोचक गति से जी रहा था। अपनी सीमित इच्छाओं के साथ उसके पास शांति का वह वातावरण था जो किसी भी उस इंसान के लिए पर्याप्त था जिसको अपनी अभिलाषाओं पर दबिश बनाकर रखना आता हो।

बचपन के दिनों में जब वह अपने पिता के साथ अपने घर से कुछ दूर खेतों की ओर जाया करता था, तब रास्ते में आने वाला एक महल उसे दिखता। वह उसे सदैव से ही प्रिय था। बचपन और युवावस्था की इच्छाओं में कोई विराट बदलाव नहीं होता, बस बचपन की प्रेमपूर्ण इच्छाओं में युवावस्था में कदम रखते ही स्वार्थ भावना निहित हो जाती है।

अकेलेपन के कारण उसे जीने की एक खूबसूरत वजह चाहिए थी और वह उसे उस महल के रूप में दिखाई दी। उस व्यक्ति को उस महल से प्रेम हो गया था। बेशक वो व्यक्ति सिद्धांतवादी था, पर उसकी इच्छा थी की काश उसे एक बार उस महल में रहने को मिले।

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ईश्वर अनावश्यक कभी आपकी परीक्षा नहीं लेता, उसमें सदैव व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक दृढ़ता को प्रबल बनाए रखने का एकमात्र प्रयोजन होता है। एक बार किन्ही परिस्थितियों से महल की मालकिन को उस व्यक्ति के बारे में पता चल गया, उन्होनें उस व्यक्ति को बुलवाया और उसकी इच्छा को उसे पुरस्कृत करते हुए महल में रहने को कह दिया तथा उसके लिए कुछ कार्य भी निर्धारित कर दिए गए जिससे उसका रहना सिर्फ उसके सपने को पूर्ण करना ही ना लगे अपितु नैतिकता का परिचायक भी हो। दयालुता समाज में तब उपहास का विषय बन जाती है जब उसमे नैतिक और मौलिक विचारों का समन्वय ना हो।

समयानुसार, उस व्यक्ति का महल के प्रति भावनात्मक जुड़ाव और उसकी कार्यकुशलता देखकर मालकिन ने उसकी तरक्की निर्धारित करते हुए उसे महल के हर निर्णय लेने का अधिकार दे दिया गया। उसने महल की कुछ-एक रही-सही बदहाली को खूबसूरती में बदल दिया और अपने विवेक द्वारा लिए हुए बहुत से निर्णयों से महल की अलग ही गरिमा बना दी।

उसे अपने सपने के इस तरह से सच होने की खुशी हुई परंतु अपनी किस्मत पर बहुत आश्चर्य भी। परिस्थितियाँ बदलाव का परिचायक हैं। परिस्थितियों में निरंतरता बनी रहने से मनुष्य का जीवन नीरस हो जाता है। उस व्यक्ति के जीवन की नीरसता तब समाप्त हुई जब उसे जरूरत थी।

लेकिन उसे एक डर सदैव सताता रहा कि एक दिन अगर ये सब उससे छीन लिया गया तो। वो व्यक्ति उस महल से बहुत प्रेम करता था पर उसे ये भी ज्ञात था कि वो उसका नहीं है। मनुष्य को अपने अंदर के हर एक डर को घर के कचरे की तरह समय-समय पर निकाल देना चाहिए, नहीं वह अपनी जगह पर कुछ नया लाना दूभर कर देता है।

ईर्ष्या किसी चीज को पाने की सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा है, इसमें इंसान हर हद नाप सकता है। महल के कुछ लोग एक अजनबी के आने और इस तरह की कामयाबी पर पहुँचने से खुश नहीं थे। साम-दाम-दंड-भेद हर विकल्प चुनकर उन्होनें उसे नीचा दिखाना चाहा और उसे महल से निकालना चाहा।

हुआ वही जिस बात से वो व्यक्ति हमेशा डरता था। एक दिन उसके सिद्दत से बुरे की कामना करने वालों की उपजायी कुछ गलतफहमियों के कारण उससे महल के कुछ अधिकार छीन लिए गए। और इन गलतफहमियों से महल की मालकिन के मन में उत्पन्न आशंका के बीज को समाप्त ना कर पाना उसके लिए अच्छा अनुभव नहीं रहा। कुछ समय बीतते ही महल की मालकिन ने उससे सब कुछ छीन लिया गया, सिर्फ उसे महल में कुछ दिन और रहने को कह दिया गया इस बात का हवाला देते हुए कि वह अपनी पुरानी जिन्दगी को फिर से पहले जैसा बना ले और रहने की उचित व्यवस्था होते ही महल छोड़ दे।

इस घटना के घटित होते ही महल में उसकी खैर की बुरी कामना करने वालों की खुशी का ठिकाना ना रहा और उससे नौकरों की तरह बर्ताव होने लगा और अंततः उसे धिक्कार कर ऐसे निकाला गया जैसे वो अपनी मर्जी से आया था।

अगर उसे निकालना ही था तो उसके किए गए कार्यों और उपलब्धियों के लिए कुछ सम्मान दिया जाना चाहिए था, हालाँकि वो इंसान इस बात से आज भी खुश है कि उसका वो सपना पूरा हुआ जिसके बारे में लोग सिर्फ ख्वाब देखते हैं पर उसे इस बात से दुख है कि उसे इस तरह निकाल दिया गया।

         वो आज भी लौटना चाहता है, पर वहाँ के लोगों को नहीं लगता अब वो उस काबिल है क्यूँकी उसकी काबिलियत अब ऐसे शक़ के घेरे में आ चुकी है जिसकी परिधि के बाहर जा पाना उसके आत्मबल की बात नहीं है। 🙂
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