एक आंदोलन की कहानी Hindi Story About Movement in Hindi

आज काफी लंबे समय के बाद मंदिर की कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी। हर एक शख्स को जो कार्यकारिणी का स्थाई सदस्य था उसे कार्यकारिणी से यही शिकायत थी की मीटिंग काफी लंबे समय बाद की जा रही है जबकि मीटिंग प्रतिमाह या प्रति 3 माह बाद होनी चाहिए। मीटिंग में कार्यकारिणी के अतिरिक्त कुछ व्यापारियों को भी निमंत्रण दिया गया था।

मीटिंग का मुख्य मुद्दा दशहरे मेले को किस प्रकार मनाना है व रामलीला मंचन की पूरी रूपरेखा की तैयारी का था। एजेंडे के मुताबिक कौन मुख्य अतिथि होगा एवं किस का सम्मान होगा आदि मसलों पर चर्चा होनी थी। तभी एक वयोवृद्ध कार्यकारिणी के एक सदस्य ने दशहरे के इस आयोजन में डॉक्टर बी के, विशाल रस्तोगी ,राम प्रकाश शर्मा, आदेश गांधी आदि लोगों को सम्मानित करने का प्रस्ताव रखा तभी कार्यकारिणी के एक युवा सदस्य व कुछ व्यापारी हस्तक्षेप करते हुए इस प्रस्ताव का विरोध करने लगे। इन लोगों ने मंदिर के लिए क्या किया है जो आप इन्हें सम्मानित करने की बात कह रहे हैं। बाकी लोग भी मीटिंग में उनकी हां में हां मिलाने लगे वयोवृद्ध कार्यकारिणी के सदस्य को उन सभी लोगों का व्यवहार बड़ा नागवार गुजरा और उन्होंने सभी सदस्य व व्यापारी गणों से अपना पक्ष रखने का प्रस्ताव रखा सभी लोग शांति से उनकी बात सुनने लगे उन्होंने कहना शुरू किया।

Story of a movement in hindi

Andolan

यह उन दिनों की बात है जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का राज हुआ करता था। श्री नारायण दत्त तिवारी यहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे एवं श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी कांग्रेस की तो मानो तूती बोल रही थी जो चाहा वही हो रहा था किसी आम व्यक्ति के कांग्रेसी से उलझने का मतलब व्यक्ति की खैर नहीं था ।कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था वही अपना नगर शांति से गंगा जमुनी तहजीब का निर्वाह करते हुए सुचारू रूप से चल रहा था।

एक दिन अचानक कुछ सरकारी गाड़ी से दो तीन अधिकारियों के साथ मंदिर की दीर्घा में प्रवेश करते हैं और मंदिर के निकट मैदान की नपत करने लगते हैं। आसपास के लोग अचंभित होकर उन अधिकारियों के पास आए वह उनसे नपत करने का कारण पूछा तभी एक पुलिस वाला उस उस व्यक्ति को हडकाते हुए कहता है की क्योंकि यह जगह काफी लंबे समय से खाली पड़ी है अतः सरकार इसे अपने कब्जे में लेना चाहती हैं। इसलिए हम इस जगह को नाप रहे हैं इतनी बात सुन व्यक्ति अचंभित हो जाते हैं और यह बात पूरे नगर में फैल जाती है धीरे धीरे नगर के सैकड़ों लोग मंदिर में एकत्र हो जाते हैं।

इसी बीच डॉक्टर बी के, विशाल रस्तोगी,रामप्रकाश शर्मा,आदेश गांधी आदि लोगों को भी यह बात पता लगती है वह भी मंदिर परिसर में पहुंच जाते हैं काफी लंबी बहस व जद्दोजहद के बाद नपत करने आए अधिकारी को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ता है। उनके जाने के बाद लोग वहीं पर डटे रहते हैं और आगे इस तरह की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए रणनीति बनाई जाती है व तय किया जाता है की डॉक्टर बी के सहित 27 लोग इस आंदोलन की कमान संभालेंगे। शाम होते-होते पूरा नगर मंदिर परिसर में इकट्ठा हो जाता है व हाईवे को जाम कर देते हैं देर रात तक जाम को देखते हुए प्रशासन के हाथ पांव फूलने लगते हैं और वह विशाल रस्तोगी आदेश गांधी सहित 27 लोगों को जो आंदोलन को लीड कर रहे थे कई प्रकार से डराने का प्रयास करते हैं।

जैसे जेल में डाल देंगे सरकार के खिलाफ जाओगे तो बहुत बुरा होगा। परंतु वह लोग टस से मस नहीं होते और अंततः पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। गिरफ्तारी के बाद जिला कारागार ले जाते हुए पुलिस उन्हें लालच देती है कि यदि आप आंदोलन वापस ले लेते हो तो हम आपको अभी छोड़ देंगे। लेकिन कोई भी व्यक्ति पीछे हटने को तैयार नहीं होता मजबूरन पुलिस को सभी 27 आंदोलनकारियों को जिला कारागार जेल में भेजना पड़ता है। तथा मुकदमा डॉक्टर बी के बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के नाम से दर्ज होता है।

जिला कारागार में जब लोगों को पता चलता है कि मंदिर में अवैध कब्जे के विरोध में यह आंदोलन हुआ है तो आ परोक्ष रूप से सभी कर्मचारी बंदी आदि लोग आंदोलनकारियों को पूर्ण समर्थन देते हैं तथा सैकड़ों की तादाद में विधायक सांसद आदि लोग उनसे रोज मिलने जिला कारागार में आते हैं। इस प्रकार सभी 27 व्यक्तियों को प्रतिदिन लोभ लालच देकर तोड़ने की कोशिश चलती रही सरकार उन्हें डालती रही की वह आंदोलन वापस ले ले या अपनी जमानत करवा ले। पर कोई भी आंदोलनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं होता और अंत में 14 दिन के बाद जेल प्रशासन को निजी मुचलका पर सभी आंदोलनकारियों को छोड़ना पड़ा।

जेल से बाहर आने पर नगर का जीवन सामान्य सा रहा परंतु सरकार ने उन 27 आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया जो करीब 7 वर्षों तक चला कोई गवाह ना होने के कारण अंत में मुकदमा छूट गया इस प्रकार मंदिर की जमीन पर इसके बाद सरकार की तरफ से इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया।

वयोवृद्ध कार्यकारिणी के सदस्य ने अपनी बात को यहां पर विराम दे दिया। पूरे कक्ष में सन्नाटा था सभी लोग मन ही मन अपने अपने द्वारा कहे गए वक्तव्य से शर्मिंदा थे पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। वयोवृद्ध कार्यकारिणी सदस्य में चुप्पी को तोड़ते हुए कहा कि मैं उन 27 लोगों में से एक हूं और यह कहते हुए उनका गला रूंध गया सभी लोगों ने उन्हें संभाला वा सर्वसम्मति से सभी 27 लोगो को जिन लोगों ने मंदिर के आंदोलन को चलाया था को सम्मानित करने का फैसला लिया इस प्रस्ताव के साथ मीटिंग का समापन हो गया व सभी सदस्य यह कहते हुए चले गए देखो कार्यकारिणी की अगली मीटिंग कब बुलाई जाती है।

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1 Response

  1. Vivek says:

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