लॉक-डाउन में हमने क्या-क्या सीखा? Lockdown Effect in Hindi

.          किसी ने भी कभी भी अपने सपनों मेंभी यह न सोचा था की संन  २०२० में हमें क्या क्या देखने को मिलेग।  शुरुवात के दो महीनें अच्छे गुजरे, फिर मार्च आया और हमारी दुनिया बदल गयी।  अचानक सब देशों ने लोखड़ौन घोषित कर दिया उनमें से हमारा भी देश सम्मिलित था।  कुछ लोगों को यह बात हज़म नहीं हुई , कई सारी बातें उनके मन में  उछल रही थीं ।  सब से पहले तो यह कि  हम घर पर रह कर क्या करेंगे?

.          जिन लोगों को खूब घूमने की आदत थी उन्हें तो बहुत परेशानी हुई। हम भी न जाने दुनिया के किन गलियों में खो गए थे  कि घर वापस आना इतना मुश्किल लग रहा था।  प्रातः काल से स्कूल एवं दफ्तर की भाग दौड़ और शाम को फिर वापस थक कर सो जाना, कोई भी रूचि के लिए समय नहीं बचता था।  ज़िन्दगी की रफ़्तार में हम भी भाग रहे थे ।  प्रकृति को भी हमने अपने भाग दौड़ में शामिल कर लिया अथवा   उसे भी नष्ट कर दिया।  प्रगति के नाम पर हमनें क्या क्या नहीं निर्माण कराये , फ्लाईओवर, मेट्रो, मॉल इत्यादि।  क्या आज वह हमारे काम आ रहे हैं।  आज इन्ही सब जगहों पर मानव जाने से सबसे ज्यादा डर रहा है।

Lockdown Effect

.          कॅरोना के कहर ने मानों हम सब की नींद उड़ा दी, हमारा दिन चर्या भी बदल गया कुछ अच्छे  और कुछ बुरे के लिए। अच्छे कामों में अगर गिनती करवऊं तो यह बोल  सकतें हैं की हमें हमारे रुचिओं के लिए भरपूर समय प्राप्त हुआ।  मेरे जैसे और लोगों ने भी बागवानी, चित्र कला , एवं गायन के अभ्यास प्रांरभ कर दिय।  शायद यह सारी चीजों को हमने समय की तीव्र गति में खोया था।   हमारे परिवार वाले भी साथ  रह कर एक दूसरे की कला को प्रोत्साहन देते थी। घर पर लोगों ने फिर से पुराने खेल खेलने शुरू किये जैसे कर्रम, लूडो, अंताक्षरी इत्यादि।  घर में सुख शांति के साथ रहना तो मानों मनुष्य भूल ही गया था।  घर  में छोटे छोटे कार्यों को सम्पन करने की ख़ुशी, एक दूसरे की टांग खींचना का आनंद परम सुख है।  आज की पीढ़ी ने यह सब कभी देखा न था , क्यूंकि पैदा होते ही हाथ में मोबाइल थमा दिया जाता है, तत्पश्चात, इंटेरेंट से अवगत कराया जाता है, अब इसके बाद दुनिया के सरे ऍप का ज्ञान दिया जाता है, इन सब से फुरसत मिले तब न माता, पिता भाई एवं बहन का स्नेह जानेंगे, घर का खुशहाल जीवन जानेगे।

.          किन्तु कुछ लोगों को घर बैठना बहुत कठिन कार्य था, जिनमें बच्चे एवं युवा वर्ग शामिल है।  बच्चों को तो टीवी मोबाइल अथवा गेम्स में उलझा कर माँ बाप फुसला लेते, पर उनका क्या जोह जिद्दी थे ।  हम घर पर रह कर समाज के प्रति कर्त्तव्य भी निभा रहे थे  सुरक्षित रह कर।  खुद को सुरक्षित रख कर हम समाज को भी सुरक्षित रखते है । यह बात सबके समझ में जल्दी नहीं आयी।  उनकी इस अज्ञानता को दूर करना अत्यंत ही आवश्यक था , समय लगा पर वह सही रह पर आये।  ऐसे तोह इंटरनेट की महिमा में खोये रहते थे, पर लोखड़ौन में बहार जाने की तीव्र इच्छा को संतुलन में रखना सहज न था, अत्यंत दृढ मनोबल की आवश्यकता थी।

.          यह बात सबके समझ में जल्दी नहीं आयी।  उनकी इस अज्ञानता को दूर करना अत्यंत ही आवश्यक था , समय लगा पर वह सही रह पर आये।  ऐसे तोह इंटरनेट की महिमा में खोये रहते थे, पर लोखड़ौन में बहार जाने की तीव्र इच्छा को संतुलन में रखना सहज न था, अत्यंत दृढ मनोबल की आवश्यकता थी।  धीरे धीरे कुछ पुरुषों को घर की आदत डालनी पड़ी, कभी आटा गूंध कर, कभी बर्तन धो कर, कभी झाड़ू, तो कभी पोछा कर के।  यह सारे  काम में वे अपना मन लगा कर, हँसते हँसते लॉक डाउन के दिन व्यतीत किये।  इस समय ने हमें यह सिखाया की कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता, गृहणियों के काम में ही घर की बुनियाद हैं।  कुछ महिलावों को अत्यंत कठिन परिस्तितियों का सामना करने पड़ा जो घर की अतिरिक्त, बाहर   भी  कार्य करती है।  जिनके छोटे बच्चे हैं, उन्हें संभालना, फिर गृह कार्य क़े साथ  ऑफिस का काम भी देखना बड़ी परिश्रम का काम है।  इन सब बातो में किसी ने हार नहीं मानी ।  महिला टीचरों ने ऑनलाइन कक्षा ले कर दिखाया की वह किसी से काम नहीं है।

.          जीवन का  आनंद तो इन छोटी छोटी बातों में छिपा है।  लोग खुशियां खोजने न जाने कहाँ कहाँ निकल पड़ते हैं, अक्सर यह भूल जाते है की वह हमारे आस पास है।  आज की पीढ़ी अगर यह बात समझ जाये तो मानसिक बीमारियां कम हो। शायद यही ज्ञात कराने प्रकृति ने कोरोना का रूप धारण किया।

(lockdown essay in hindi)

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