“पर्दा” मजेदार रेल यात्रा की कहानी – New Entertainment Story in Hindi
करीब आधे घंटे देरी से चली रेल, कुछ कोहरे की वजह से और कुछ आदतन। राहत की सांस ली जब देखा किसी को अपनी सीट से उठने के लिए बोलना नही पड़ेगा…बैग उठा के रखा सीट के नीचे और कानों में हेडफोन ठूस के पसर गया, बाहरी दुनिया में न कोई दिलचस्पी बची थी मेरी और न ही कोई उम्मीद…बस कुछ था, तो इंतेज़ार मेरे स्टेशन के आने का और एक छोटी सी आस की तब तक कोई आकर “थोड़ा सा” सरकने को न बोले।
तभी कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ, फिर एक हल्का सा झटका और फिर आयी थपकी। एक बार तो जी में आया कि चुप चाप गाने सुनता रहूँ पर यकीन मानिए, दिन के सफर में अगर आप समझते है कि अपनी आरक्षित सीट पर अकेला बैठ कर आप गाने सुनते हुए घर तक जाएंगे तो शास्त्रो में कड़े शब्दों में आपके लिए “मूर्ख, अज्ञानी, दुःसाहसी और निर्लज्ज” जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।
मैंने सर उठा के पीछे देखे तो करीब मेरी उम्र का लड़का खड़ा था, हाथ में सूटकेस लिए…अपना सामान सीट के नीचे रखने का इशारा करते हुए। मैंने अपना बैग आगे सरकाया और उसने अपना..यदि श्री कृष्ण ने अपने मुख में यशोदा माँ को समस्त ब्रम्हाण्ड समाया दिखाया हो तो हमारी रेल सीट के नीचे भी एक छोटी -मोटी आकाश गंगा तो शर्तिया समा जाती होगी।
New good story in hindi
“भाई ज़रा आप थोड़ा सा…” उसके पूरा बोलने से पहले ही में खिड़की से चिपक कर बैठ गया। जितना अफसोस मुझे अपने पैर फैला कर सफर ना करने का था उससे कई ज़्यादा दुख इस बात का था कि बैग सरकाने के चक्कर मे मेरे हैडफ़ोन कानों से निकल गए और बाहरी दुनिया का शोरगुल फिर से कानों में रौद्र तांडव करने लगा।
“भाईजान, दिल्ली जाओगे?” याद नही इतनी विनम्रता से आखरी बार किसने पूछा था कुछ, शायद लोन चिपकाने वाली लड़की ने।
“ह्म्म्म”, मैंने भी सर हिलाते हुए जवाब दे दिया, और हाथों को हैडफ़ोन की तारे सुलझाने में लगा दिए।
“बढ़िया है , में भी वही जाऊंगा…क्या करते है आप?”
अब यहां पर मेरे हाथ और दिमाग तेज़ी से चलने लगे गए…ये मेरी सीट हड़पने वाला आदमी कोई मामूली आदमी नही था, ये उन लोगो में से एक था जो आपसे घंटो बिना रुके बात करने की क्षमता रखते है..ये आपको बताएंगे कि आपके अपने शहर में फलां चीज़ मशहूर है, और कैसे मोदी की लहर के सामने सब धराशाई हो गया, कैसे नोटेबन्दी ने सारे कालेधन वालो को नाको चने चबवा दिए…सफर कुछ लंबा हो तो ये मेहंदीपूर बालाजी की महिमा का भी वर्णन ज़रूर करेंगे।
तो कुल मिला के सार ये है कि मुझे तीन चीज़े आज तक समझ नही आई: GST, सब्ज़ी वाले से ये पूछने का फायदा की “भैया ये ताज़ी है ना”, और तीसरा इन महाशय से वार्तालाप कैसे और क्यों जारी रखे।
“चाय चाय, गरमा गरम चाय” अभी मुँह खोलने ही वाला था कि एक दम स्टीक समय पर वो चाय बेचने वाला आ गया। उसका ध्यान चाय पे जो भटका मैंने शुक्र मनाया और फटाक से कान सील कर दिए अपने। दिल्ली अभी तीन घंटे दूर थी और मेरी बैटरी बस आधे घंटे की मेहमान मालूम पड़ रही थी। चार्ज पे लगा लेता पर ये कम्बखत व्हाट्सएप्प वाले ग्रुप ने दिलो-दिमाग पर बैटरी फटने का खौफ बिठा दिया है।
अब मैं मानता तो नही इस चीज़ को लेकिन फिर मानता तो मैं भूतो को भी नही हूँ, पर अंधेर सुनसान गली में गुज़रते हुए हनुमान चालीसा अपने आप प्रवाहित होने लगता है…ऊपर बैठे हनुमान जी ने भी शायद तभी सिंगल रहने का श्राप दिया हुआ है। मानो या न मानो, लेकिन ये “अगर हुआ तो?” वाला वाक्य ही है जिसकी वजह से बड़े बड़े नास्तिको को रिज़ल्ट के समय हाथ जोड़े खड़ा देखा है।
खैर, आधा घंटा कब हुआ पता नही चला और बैटरी ने भी जवाब दे दिया, अब जवाब मुझे अच्छा लगा या नही ये सुनने की ज़हमत नही उठाई उसने..बस आंखें मूंद गयी अपनी।
कायदे से देखा जाए तो अब तारे लपेट कर जेबों में भरने का वक़्त आ चुका था, पर राजनीति में मेरा नाम अज्ञानियों के वर्गो में शुमार होता है और क्रिकेट की बात छेड़ने के लिए बचे हुए ढाई घंटे कम थे। तो मैंने ये अनुमान लगा लिया कि बचा हुआ वक़्त में अपनी गयी गुज़री ज़िन्दगी पर विलाप करने और आगे के जीवन पर चिंतन करने में लगा सकता हूँ, सो जैसा था वैसे ही चलने दिया।
“अम्मी! मज़ाक चल रहा है इधर क्या? में दिल्ली पहुंचने वाला हूँ…अब कहाँ से वापस जाऊँ?”
अब बात में भले ही ना करूँ पर इतना ज़रूर समझ गया था कि सफर काटने लायक सामग्री का प्रबंध हो गया था, बस ज़रूरत थी कान लगाके उसका चिल्लाना सुनने की।
“अब अब्बा को नही पसंद तो मैं क्या करूँ? अब जो है वो है…हाँ-हाँ मालूम है खाला भी आएंगी तो क्या? कम से कम आप तो साथ हो न मेरे?”
उस तरफ की आवाज़ बोल क्या रही है समझ तो नहीं आ रहा था पर सवाल के बाद की चुप्पी खूब पता लग रही थी।
“अम्मी।हो ना साथ आप, मेरे?”
उस तरफ से कोई आवाज़ नही आई, पतानी वो जवाब का इंतज़ार कर रहा था या जवाब अपनाने में दिक्कत हो रही थी उसे, पर लगभग दो मिनट तक कोई कुछ नही बोला, सिवाए स्टेशन के लाउडस्पीकर के।
“अम्मी, गे होना जुर्म तो नहीं ना..अब अल्लाह ने ही ऐसे भेजा है तो कुछ सोच के ही भेजा होगा ना?”
उसका गला एकदम भर आया, कहना बहुत कुछ था उससे पर उससे कहीं ज़्यादा रोक भी रहा था, शायद सब एक साथ कह देना चाहता था। बात वो शायद अपने आप से ही कर रहा होगा क्योंकि दूसरी तरफ की खामोशी के बदले अब काल काटने की बीप बज रही थी।
अपनी सीट से उठा और बाहर चला गया एकदम से, एक बार सोचा बात कर लूँ पर देर हो चुकी थी।
तभी नज़र सामने बैठे एक बुजुर्ग से चच्चा पर पड़ी जो उंगलियो को खास कोण में मोड़कर इशारा कर रहे थे, शायद पूछ रहे थे कि क्या हुआ इसको…मैंने भी कंधो को झटकते हुए दिखाया दिया कि मालूम नहीं, एक इशारा आपके दस मिनट बचा सकता है जानकर अच्छा लगा.. पर याद नही आ रहा था कि चचा अभी प्रकट हुए या पहले के बैठे हुए थे।
“ये गे क्या होता है बेटा?”
असमंजस में फसा दिया था, करने को तो मैं कंधे भी झटका सकता था पर अब जो ‘बेटा’ बोल दिया था , भारतीय सभ्यता और संस्कृति खतरे में भी आ सकती थी।
“समलैंगिक…आ गया समझ?”
समझ तो अभी भी नही आया पर ताऊ ये दिखाना नही चाहते थे, सर हिला के वापस धर लिया पीछे।
“भाईजान बैग रह गया था, पकड़एंगे ज़रा?”
मैंने नीचे उस अनंत गुफा से सामान निकाल कर पकड़ाया और पहली बार उसकी आंखों पे नज़र पड़ी, मुँह धोकर छुपाने की कोशिश तो खूब की थी पर लाल रंग ही ऐसा है, छुपाये नहीं छुपता।
“ठीक हो आप?” अब पूछने का फायदा तो नही था कुछ पर शायद बाद मैं मलाल रह जाता।
बदले में वो हल्का सा मुस्कुराया, या यूं कहें कि सांस ज़रा ज़ोर से बाहर निकाली।
“निज़ामुद्दीन जा रहे थे भाईजान, पर क्या है ना घरवालो को हम कुछ ज़्यादा ही भाते है…तो अब्बा ने कह दिया कि बरकत मांगने जा रहे है, मेरे जैसा आदमी जाएगा तो हुज़ूर-ऐ-पाक खफा हो जाएंगे”
“मेरे जैसा मतलब?” मैं ये दिखाना नही चाहता था कि उसकी सारी बातें सुनी थी मैंने, पर शायद उसे सब पता था पहले ही।
“क्या है ना, की जो था सब सच बोल दिया एक दिन , दुसरो से झूठ बोल भी लूँ, पर खुद को धोखे में रखना यानी खुदा को धोखे में रखना। और वैसे भी, जब अल्लाह को फर्क नही पड़ता तो इन लोगो के लिए क्यों बंद रखूं अपने आप को?”
मैं हर वक़्त सोचता हूँ कि काश मुझे बचपन से इंटीग्रेशन और ट्रिग्नोमेट्री के बदले इन परिस्तिथियों को संभालना सिखाया होता , पर शायद ना उस वक़्त इतनी समझ थी और ना आज भी इतनी अकल है। वो कुछ सुनने की आस लगाए बैठे था मुझसे, शायद ये की उसकी कोई गलती नही थी…पर शायद गलत आदमी से उम्मीद लगा के बैठ गया वो। उस आदमी से जिसे उसके दुख से ज़्यादा इस बात की खुशी थी कि पूरी सीट अब उसकी है।
गाड़ी धीरे धीरे चलने लगी, और उससे प्लेटफार्म पे तब तक देखता रहा जब तक भीड़ में खो नही गया वो।
“एक्सक्यूज़ मी?”
पीछे मुड़ा तो एक घुंगराले बालो वाली लड़की स्लिंग बैग लेके खड़ी थी।
“कैन यु प्लीज़…” उसके पूरा बोलने से पहले ही में खिड़की से चिपक कर बैठ गया।
उसने बैग सीट पे रखा और अपनी बिसलेरी की बोतल का ढक्कन घुमाने लगी।
“डेल्ही?” मैं दिल्ली बोलता पर कही गवार न समझ बैठे इसलिए पता नही क्यों , खैर… वो हाँ बोल के मुस्कुराई और कानों में हैडफ़ोन लगा के आंखे मूंद ली, मेरी बैटरी की तरह। पता नहीं उसने सुना या नहीं पर मैंने उससे पूछा था कि वो क्या करती है।
अब कुछ करने को था नही तो सामने बैठे ताऊ के रेडियो पर ही ध्यानमग्न होने का सोच लिया। उस आदमी का चेहरा रह रह कर आंखों के सामने आ रहा था और कानो में गूंज रहा था मध्धम आवाज़ में रेडियो पर ये गाना
“पर्दा नहीं जब कोई खुदा से,बंदों से पर्दा करना क्या”
Written By:-
Rasish koul
Also, Read More :
- “मै मर्द हूँ” Emergency Ki inside story Hindi
- “आखिर अमीर कौन?” Very Heart Touching Story in Hindi
- बच्चो में साहस भरने के लिए एक कहानी – Bravery Story in Hindi
- “ओपरा विनफ्रे” नारी सशक्तिकरण का प्रतीक – Oprah Winfrey Story in Hindi
Short Stories in Hindi Editorial Team. If you want to publish your story then please contact – [email protected]. Like us on Facebook.