विक्रम बेताल की चौदहवीं कहानी: चोर क्यों रोया? बेताल पच्चीसी

चोर क्यों रोया? बेताल पच्चीसी की चौदहवीं कहानी – Pachisi ki 14th Kahaani

Vikram Betal ki Kahaani

बहुत साल पहले अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का एक राजा राज करता था। उसी राज्य में एक साहूकार भी रहता था। धनी साहूकार का नाम था रत्नदत्त। उसकी एक ही सुंदर सी बेटी थी रत्नावती। वह पुरुष के भेस में रहा करती थी और किसी से भी ब्याह नहीं करना चाहती थी। रत्नावती के लिए कई रिश्ते आए, लेकिन उसने किसी से भी शादी करने के लिए हां नहीं की। इस वजह से उसके पिता काफी परेशान थे। रत्नावती को सिर्फ सुंदर और धनवान नहीं बल्कि बुद्धिमान और बलवान वर चाहिए था।

एक और रत्नावती के पिता अपनी बेटी से परेशान थे। दूसरी ओर नगर में चोरी शुरू होने लगी थी, जिस वजह से रत्नदत्त को हर समय यह डर सताता था कि कहीं, उसके घर से चोर सारा धन न लेकर चला जाए। इसी बीच रत्नावती की मुलाकात उस चोर से हो जाती है। रत्नावती को लोगों के घरों से फल तोड़कर खाने में बड़ा आनंद आता था। वह चोर रत्नावती को आम चुराना सिखाता है। वह लड़की उससे बहुत प्रभावित होती है और रोज उससे मिलने लगती है। वक्त के साथ-साथ उसे चोर से प्यार हो जाता है।

इधर, चोर रोज रत्नावती से मिलने के बाद चोरी करने के लिए निकल जाता था। उधर, अयोध्या में बढ़ती चोरी से परेशान राजा ने सारे मंत्रियों और पहरेदारों को डांट लगाते हुए कहा, “नगर में रोज चोरियां हो रही हैं, लेकिन न तो कोई पहरेदार उसे पकड़ पा रहा है और न ही कोई मंत्री उसे पकड़ने की योजना बना पा रहा है।” इसके बाद राजा ने खुद चोर को पकड़ने का फैसला लिया। चोर को पकड़ने के लिए राजा रोज रात को नगर में घूमने लगे।

एक दिन रात को जब राजा भेष बदलकर घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया। राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया। चोर ने कहा, “अरे! मुझे तो लगता था कि यहां मैं ही एक चोर हूं। तब तो तुम मेरे साथी हो। आओ, मेरे घर चलो।” दोनो घर पहुँचे। उसे बिठलाकर चोर किसी काम के लिए चला गया। इसी बीच उसकी दासी आयी और बोली, “तुम यहाँ क्यों आये हो? चोर तुम्हें मार डालेगा। भाग जाओ।”

लेकिन राजा नहीं गए, चोर के आने के बाद राजा ने चोर से पूछा, “तुमने इतना सारा धन इकट्ठा कर रखा है। तुम्हें चोरी करते हुए डर नहीं लगता।” चोर जोर से हंसकर कहता है, “राजा की सेना में कोई भी साहसी नहीं है और न ही वो अपने काम को ईमानदारी कर रहे हैं। अगर एक व्यक्ति भी अपना कार्य ईमानदारी से करता, तो इतना मुश्किल नहीं होता मुझे पकड़ना। एक चोर राजा की पूरी सेना पर भारी पड़ गया है। वहां कोई योद्धा ही नहीं है।” यह सुनते ही राजा ने अपनी तलवार निकाली और चोर से युद्ध करके उसे अपना बंधी बना लिया।

चोर हैरान रह गया। उसे कुछ देर बाद समझ आया कि इतनी देर से राजा भेष बदलकर उसके साथ थे। राजा वीरकेतु उसे अपने साथ राजमहल ले जाते हैं और फांसी पर चढ़ाने की सजा सुना देते हैं। जैसे ही इस बात का एलान होता है कि चोर पकड़ा गया और उसे फांसी होने वाली है, तो रत्नावती परेशान हो जाती है। उसे पता चल गया था कि राज्य में जो चोरी कर रहा था, वही उसे आम चुराना सिखाता था। परेशान होकर रत्नावती अपने पिता रत्नदत्त से कहती है, “पिता जी, जिस व्यक्ति को मैं मन-ही-मन अपना पति मान चुकी हूं, उसे राजा ने पकड़ लिया है और वो उसे फांसी पर लटकाने वाले हैं। आप कुछ कीजिए।” रत्नदत्त को अपनी बेटी की बात समझ ही नहीं आती है। तब वह अपने पिता को चोर और अपनी मुलाकात के बारे में विस्तार से बताती है और कहती है कि वो उसके बिना नहीं रह सकती है।

रत्नदत्त अपनी बेटी को समझाने की कोशिश करता है। जब बेटी नहीं मानती है, तो वह मजबूर होकर राजा के पास चला जाता है। वह राजा को बताता है कि उसकी बेटी रत्नावती चोर से बहुत प्यार करती है। अगर उसे फांसी हो गई, तो वह भी अपने प्राण त्याग देगी। वह व्यापारी अपनी बेटी के खातिर राजा को सोने के सिक्के और चोर द्वारा चुराया गया सारा धन देने का प्रस्ताव रखता है, लेकिन राजा उसकी एक नहीं सुनते। कुछ देर बाद ही राजमहल में रत्नावती पहुंच जाती है। वह भी राजा से आग्रह करती है, लेकिन राजा किसी की नहीं सुनते और जल्लाद से चोर को जल्दी फांसी देने को कह देते हैं।

सूली पर लटकने से पहले चोर पहले तो बहुत रोया, फिर खूब हँसा। रत्नवती वहाँ पहुँच गयी और चोर के सिर को लेकर सती होने को चिता में बैठ गयी। उसी समय देवी ने आकाशवाणी की, “मैं तेरी पतिभक्ति से प्रसन्न हूँ। जो चाहे सो माँग।”

रत्नवती ने कहा, “मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। सो वर दीजिए, कि उनसे सौ पुत्र हों।”

देवी प्रकट होकर बोलीं, “यही होगा। और कुछ माँगो।”

वह बोली, “मेरे पति जीवित हो जायें।”

देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने चोर को अपना सेनापति बना लिया।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने पूछा, ‘हे राजन्, यह बताओ कि सूली पर लटकने से पहले चोर क्यों तो ज़ोर-ज़ोर से रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?”

राजा ने कहा, “रोया तो इसलिए कि वह राजा रत्नदत्त का कुछ भी भला न कर सकेगा। हँसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने को तैयार हो गयी। स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता।”

इतना सुनकर बेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। राजा फिर वहाँ गया और उसे लेकर चला तो रास्ते में उसने यह कथा कही।

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