नंदलाल और भालू की कहानी Nandlaal and Bear Story in Hindi

Bear Story in Hindi

उत्तराखंड के पहाड़ों में पौड़ी गढ़वाल के पास एक छोटा सा गांव था उसमें एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम नंदलाल था। नंदलाल एक सीधा साधा गांव का आदमी था उसके परिवार में 2 बेटियां थी वह अपनी दोनों बेटियों और पत्नी को बहुत प्यार करता था। वह मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था। नंदलाल की पत्नी और दोनों बेटियां भी नंदलाल से उतना ही प्यार करती थी जितना नंदलाल उनसे करता था।

यह सब अपने जीवन से बहुत खुश थे नंदलाल का एक नियम था सुबह काम पर जाने से पहले वहां पहाड़ी के ऊपर एक मंदिर था मंदिर बहुत ही प्राचीन था। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता टूटा फूटा और कठिन था। यह मंदिर भोलेनाथ जी का था इस मंदिर पर गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं जाता था क्योंकि मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही कठिन था पर नंदलाल सुबह काम पर जाने से पहले इस मंदिर में पूजा जरूर करता था नंदलाल अपनी साइकिल पर घर से निकलता था साइकिल पहाड़ के नीचे खड़ी करता था फिर मंदिर में पहुंचकर।

Bear Story in Hindi

A Man and Bear Story in Hindi

झरने से स्नान करके झरने के पानी से लोटा भरता था। उस मंदिर पर कुछ जंगली बकरियां भी थी और कुछ पक्षी जानवर भी थे। वह सब नंदलाल को पहचानते थे नंदलाल को देख कर उसके पास आ जाते थे। नंदलाल जंगली बकरी का दूध लोटे में डालकर और पहाड़ से रंग बिरंगे फूल तोड़ कर लोटे में डालता था। पहाड़ के ऊपर कुछ फल के पेड़ थे वहां से फल तोड़कर उनको काटकर थाली में रखता था।

झरने से पानी लेकर भोलेनाथ जी पर जल अर्पण करता था और वहां के पक्षियों और जानवरों को अपनी क्षमता के अनुसार दाना या कुछ और खाने की चीजें डालता था। नंदलाल का यह रोज का दिनचर्या थानंदलाल जब पहाड़पुर पूजा करने जाता था तो अपनी साइकिल पहाड़ के नीचे खड़ी करता था और खाने के थैले को ऊपर मंदिर में ले जाता था पर उस दिन नंदलाल साइकिल खड़ी करने के बाद अपने खाने के थैले को उतारना भूल जाता है इसी थैले में नंदलाल शाम को छुट्टी होने के बाद घर का सामान लाता था। जैसे साग सब्जी तेल चावलआदि नंदलाल पहाड़ के मंदिर से पूजा कर के नीचे उतरता है।

और जैसे ही अपनी साइकिल उठाता है। उसकी नजर थैले पर पड़ती है उसका थैला पहले से ज्यादा भारी और मोटा लग रहा था। नंदलाल थैली का मुंह खोल कर देखता है तो चौक जाता है। थैले के अंदर से एक मासूम सा भालू का बच्चा नंदलाल की तरफ देख रहा था। प्यार की निगाहों से नंदलाल उस भालू के बच्चे को थैले में से निकाल कर अपनी गोदी में ले लेता है। भालू का बच्चा भी नंदलाल की छाती से चिपक जाता है।

नंदलाल उस भालू के बच्चे को जंगल में नहीं छोड़ता वह उसे अपने साथ काम पर ले जाता है और जब छुट्टी होने पर घर पहुंचता है तो अपनी दोनों बेटियों और पत्नी को बुलाकर उस भालू के बच्चे को थैले में से निकालकर उनके सामने बिठा देता है। नंद लाल की पत्नी और बेटियां भालू के बच्चे को देखकर बहुत खुश हो जाती हैं उनको भी पहली ही नजर में भालू का बच्चा बहुत प्यारा और मासूम लगता है। भालू का बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है वह अपनी शरारतो से सभी का दिल जीत लेता है भालू का बच्चा मनुष्य की तरह समझदार था।

वह घर के कामों में नंदलाल की पत्नी की सहायताकरता था। जैसे खाना बनाना कपड़े धोने झाड़ू लगा नानंद लाल की पत्नी भालू के बच्चे को अपने बेटे जैसे प्यार करती थी। भालू का बच्चा नंदलाल की बेटियों के साथ खूब खेलता था।

नंदलाल जब काम पर से आता था तो नंद लाल की साइकिल से चिपक जाता था। 1 दिन नंदलाल की साइकिल उसके ऊपर गिर जाती है। वह डरकर चिल्लाता हुआ नंद लाल की पत्नी की गोदी में छिप जाता है। भालू के बच्चे को नंदलाल की साइकिल से इतना लगाव हो गया था जब नंदलाल काम पर से आकर साइकिल की घंटी बजाता था तो भालू का बच्चा घर में से दौड़ कर आता था साइकिल पर चढ़ जाता था धीरे-धीरे भालू का बच्चा बड़ा हो रहा था।

और उसने एक दिन पूरी तरह साइकिल चलाना सीख लिया। भालू का बच्चा साइकिल लेकर गांव में घूमता था गांव के बच्चे औरतें बूढ़े उसके इस कारनामे को देखकर बहुत खुश होते थे उनके हंस-हंसकर पेट में दर्द हो जाता था। नंद लाल की पत्नी भालू के बच्चे को घर का सामान लेने के लिए बाजार भेजती थी। थैले में समान की पर्ची लिखकरऔर पैसे डाल देती थी। भालू का बच्चा साइकिल पर घर का सामान लाता था 1 दिन भालू का बच्चा साइकिल पर घर का सामान ला रहा था तो गांव के प्रधान की नजर उस पर पड़ जाती है। गांव का प्रधान ज्यादातर गांव से बाहर ही रहता था उसका काम था मेले बाजारों में सर्कस लगाना और सर्कस में मौत के कुए से पैसे कमाना। भालू को देखकर प्रधान के मन में विचार आता है अगर यह भालू मेरे मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चलाएं तो मैं बहुत पैसा कमा लूंगा क्योंकि इंसान से ज्यादा जनता भालू को मोटरसाइकिल चलाते हुए देखना पसंद करेगी। यह भालू मुझे समझदार और चालाक लग रहा है फिर गांव का प्रधान पता करता है यह भालू है किसका उसे पता चलता है यह भालू नंदलाल का है। नंदलाल पहले ही गांव के प्रधान से बहुत कर्जा ले चुका था उसका मकान प्रधान के पास गिरवी था प्रधान को पता था नंदलाल अगर मना करेगा तो मैं उसे बर्बाद कर दूंगा।

उसी रात प्रधान नंदलाल के घर पहुंचता है और अपने मन की सारी बात बताता है। नंद लाल की पत्नी और बेटियां नंदलाल अपने भालू को देने से इंकार कर देते हैं। गांव का प्रधान बहुत ही चालाक था वह अपनी चालाकी से नंदलाल को बोलता है मुझे सिर्फ 2 बरस के लिए तेरा भालू चाहिए और मैं तेरा सारा कर्जा माफ कर दूंगा। तेरे मकान के कागज भी वापस कर दूंगा फिर भी नंदलाल और उसकी पत्नी बेटियां भालू को देने से इंकार कर देते हैं।
दूसरे दिन गांव का प्रधान पंचायत बुलाकर नंदलाल को फसा लेता है। पंचायत के सामने अपना कर्जा वापस मांगता है और मकान बेचने की धमकी देता है। गांव की पंचायत फैसला लेती है क्योंकि नंदलाल के पास कर्जा वापस देने के लिए पैसे नहीं थे मकान भी उसका छिन जाता।

गांव की पंचायत को पता था नंदलाल एक सीधा-साधा अच्छा इंसान है। गांव की पंचायत यह फैसला करती है कि नंदलाल का सारा कर्जा माफ होगा मकान के कागज वापस करने होंगे और सिर्फ 2 बरस के लिए ही भालू को गांव का प्रधान अपने साथ रख सकता है। 2 वर्ष पूरे होने के बाद भालू को नंदलाल को वापस देना होगा। 2 बरस के बाद नंदलाल गांव के प्रधान के पास पहुंचता है गांव का प्रधान भालू की वजह से पहले से ज्यादा अमीर हो चुका था क्योंकि भालू जब मौत के कुएं में मोटरसाइकिल चलाता था। तो उसे देखने के लिए दूर-दूर गांव शहर के लोग आते थे इस वजह से गांव के प्रधान की बहुत मोटी कमाई हो जाती थी। इस वजह से गांव का प्रधान भालू देने से इंकार कर देता है नंदलाल को।

नंदलाल दोबारा पंचायत के पास जाता है। पंचायत के सामने गांव के प्रधान को मजबूर होकर नंदलाल को भालू वापस लोटा आना पड़ता है। गांव का प्रधान क्रोध में आकर पंचायत बीच में छोड़कर चला जाता है। और रात को अपने आदमियोंके साथ नंदलाल के घर पर हमला कर देता लाठी-डंडों से भालू पर उसके आदमी इतने वार करते है कि भालू बेचारा अपना दम तोड़ देता है।

भालू के मरने के बाद गांव का प्रधान अपने आदमियों के साथ वहां से भाग जाता है। भालूकी मौत से नंदलाल के घर में मातम छा जाता है उसकी पत्नी और दोनों बेटियां रो-रोकर पागल हो जाती हैं। नंदलाल पड़ोसियों के साथ मिलकर भालू को गड्ढा खोदकर दबा देता है और भालू की समाधि के पास एक पेड़ लगा देता है। और भालू की आत्मा की शांति के लिए उसी पहाड़ के प्राचीन शिव मंदिर पर जाता हैअपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ अपने भालू की आत्मा की शांति के लिए नंदलाल और उसका परिवार ऊपर मंदिर में पूजा करते हैं शिव शंकर से प्रार्थना करते हैं कि हमारे भालू की आत्मा को शांति मिले।

पूजा करने के बाद जैसे ही वह पहाड़ से नीचे उतरते हैं। नंदलाल के पैरों के पास एक छोटा सा गोल मटोल प्यारा सा भालू का बच्चा आकर लिपट जाता है नंदलाल खुश होकर उसे गोदी में उठा लेता है। नंद लाल की पत्नी दोनों बेटियों के चेहरे पर भी रौनक आ जाती है। नंदलाल और उसका परिवार उस भालू के बच्चे को घर ले आते हैं और पहले वाले भालू के बच्चे जैसा ही प्यार करते हैं। कुछ दिनों बाद गांव में खबर फैलती है की गांव के प्रधान को लकवा लग गया वह पूरी तरह अपाहिज हो गया है।

कहानी की शिक्षा – कमजोर मजबूर और बेजुबान का शोषण नहीं करना चाहिए और और किसी में अच्छे गुण हो तो उसके गुणों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे समाज और दुनिया का भला हो सके नहीं तो ऐसे कार्य का बहुत बुरा परिणाम होता है जैसे गांव के प्रधान के साथ हुआ।

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