“ख़ामोश प्यार…” A love story with a difference!
उस दिन अचानक ही युनिवर्सिटी कैंपस में हिन्दू कॉलेज के सामने से निकलते हुए वो दिख गई, हमेशा की तरह हमारी नज़रें मिलीं, कुछ देर के लिए, और फिर मैं आगे बढ़ गया… अपने पीछे एक ख़ामोशी छोड़ कर.
silent love story in hindi
हमारी पहचान कोई बहुत पुरानी नहीं है – सिर्फ़ दो साल पहले उसने हमारे स्कूल में एडमिशन लिया था, साइंस के दूसरे सेक्शन में. बहुत प्यारा सा नाम है उसका… शालू (शालिनी मेहता), और शायद नाम के कारण ही मैं शुरू से उसकी तरफ़ खिंचता चला गया था. मुस्कुराता हुआ मासूम सा चेहरा, और आँखों पर चढ़ा एक चश्मा… कुछ भी तो नहीं था उस साधारण से व्यक्तित्व में मर मिटने लायक! इसके अलावा, बाक़ी लड़कों के विपरीत, मैंने इससे पहले कभी किसी लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. अपने स्कूल का एक जाना-पहचान छात्र और अपनी कक्षा का मॉनिटर होने की वजह से मैं अपने उत्तरदायित्व के प्रति पूरी तरह से सजग रहता था. मगर इस नयी लड़की में कुछ तो ख़ास बात थी जिसने मुझे प्रभावित किया था…
लेखन में शुरू से ही मेरी रूचि रही है… स्कूल बुलेटिन और अन्य कई स्तम्भों में मेरी रचनाएँ नियमित छपा करती थीं. अंग्रेज़ी विषय में हर साल सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के लिए मेरा नाम ‘बोर्ड ऑफ़ ऑनर’ पर लिखा हुआ था. इस सबके अलावा, स्कूल का एक होनहार, अनुशासनप्रिय, ‘बेस्ट स्टूडेंट’ और एक ‘स्ट्रिक्ट मॉनिटर’ (अन्य सभी छात्र मेरे बारे में ऐसा ही कहते थे – और मुझे यह अच्छा भी लगता था!) जो ठहरा!
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एक दिन प्रधानाचार्य के दफ़्तर के बाहर अपने अंग्रेज़ी के अध्यापक से हाल ही में छपे अपने एक लेख, ‘ट्रू फ़्रेंडशिप’ पर कुछ विचार-विमर्श करते हुए मैंने पाया कि शालू भी मेरी रचनाओं में रूचि रखती है. वह वहाँ किसी काम से खड़ी थी, और बड़ी दिलचस्पी से हमारी बातें सुन रही थी. बारहवीं कक्षा के छात्र, और वो भी विज्ञान के छात्र, बहुत समझदार न सही, इतने बच्चे भी नहीं होते कि इस तरह के आपसी आकर्षण को समझ ना सकें… शायद इसी को लोग प्यार की संज्ञा देते हैं!
फिर पूरा स्कूल जैसे पढ़ाई के माहौल में डूब गया… बोर्ड की परीक्षाएं भी आ गयीं… अपने हर पर्चे से पहले हम अपने सेंटर पर मिलते और एक दूसरे को शुभ कामनाएं देते थे – आँखों ही आँखों में! एक निश्चित अवधि के बाद परिणाम भी घोषित हो गया… एक बात की मुझे बहुत ख़ुशी हुई – अंग्रेज़ी में इस बार दो डिस्टींक्शन्स थीं, एक मेरी और एक शालू की. यह और बात है कि सर्वाधिक अंक एक बार फिर से मेरे ही थे!
विश्वविद्यालय (युनिवर्सिटी) में प्रवेश के दौरान मैं सिर्फ़ एक बार मिल पाया था उससे… हिन्दू कॉलेज में. और तब मैं यह नहीं जान सका कि उसे वहाँ दाख़िला मिला भी था या नहीं. और मैंने बाद में कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में प्रवेश ले लिया था…
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हमारे पूरे मेल-जोल में एक अविश्वसनीय बात यह रही कि हमने कभी भी एक-दूसरे से कोई बात नहीं की, किसी भी तरह की! और यह परंपरा उस दिन भी क़ायम रही…
अब शायद उससे मेरी मुलाक़ात कभी हो भी न पाए, या हम जीवन के किसी ऐसे मोड़ पर मिलें जहाँ एक-दूसरे से अनजान बने, अपना दामन बचा कर निकल जाना ज़्यादा पसंद करें… अपनी उस ‘पाक-मौहब्बत’ को एक मूढ़ता… एक इनफ़ैचुएशन या टीन-ऐज लव क़रार देते हुए……!
वैसे अगर मैं चाहता तो अपने इस पहले प्यार की ख़ामोशी को तोड़ सकता था… शुरुआत मैं कर सकता था. मगर वह भी तो कर सकती थी! खैर… ऐसा कुछ न हुआ…!
और हक़ीक़त यह है कि मुझे इसका कोई ख़ास अफ़्सोस भी नहीं… क्योंकि मैं प्यार का पुजारी ज़रूर हूँ, भिखारी नहीं जो कटोरा हाथ में लिए प्यार की भीख मांगता फिरूँ!!
Written By :
मोहनजीत कुकरेजा (eMKay)
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Very interesting… In fact, I started thinking what was wrong in approaching first…. Some one has to take the lead / initiative… But, opinions differ…
Thanks a lot for your interest and comments.
A good and cute story!
Thanks a lot!
Bahut badhiya story. same mera bhi kahaani hain.
Thank you.
real fact sir
Thanks for your interest!
faltu ghatia..story..
simple sa….
koi intrstng nehi.,
THANKS