“अगला दरवाज़ा” एक लघुकथा

Best short stories in hindi with moral

अगला दरवाज़ा

के बात सै भाई? पिछला दरवज्जा ना दिखै?”
ड्राईवर से डांट खाकर हरीश चुपचाप नीचे उतर कर पिछले दरवाज़े की तरफ़ लपका, लेकिन उसके चढ़ पाने से पहले ही बस गति पकड़ चुकी थी I

 

डीo टीo सीo की बसों में सफ़र करना भी कोई मामूली बात नहींI अब उसी भीड़ भरे स्टैंड पर खड़ा वह किसी दूसरी बस का इंतज़ार कर रहा था I अपनी उम्र का लगभग एक तिहाई हिस्सा उसने बसों की इंतज़ार में, या उनके अन्दर, गुज़ार दिया था I अगली किसी ख़ाली बस की उम्मीद में वह अक्सर बसों को छोड़ता रहता… मगर दिल्ली में ख़ाली बस, मुंबई में ख़ाली मकान की तरह, नसीब से ही मिलती है! हाँ, अगले दरवाज़े से अगर चढ़ पाएं तो बात कुछ और है…

 

.               आख़िर घड़ी पर एक नज़र डाल, अपने बॉस की डांट-डपट याद आते ही बेचारा हरीश किसी भीड़-भाड़ वाली बस के पीछे ही भागने लगता… इसी तरह एक सुबह अगले दरवाज़े से उतार दिए जाने पर बस के पीछे भागते-भागते वह संतुलन खोकर गिर पड़ा I

 

पीछे से तेज़ी से आकर रूकती एक दूसरी बस ने ब्रेक लगने से पहले ही अपना ‘काम’ कर डाला…

 

भाग्यवश, हरीश की जान बच गई…

 

.             और अब वह बसों के अगले दरवाज़े से भी बिना रोक-टोक चढ़ सकता है – अपनी बैसाखियाँ टेकता हुआ!

 

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Regards,
eMKay
(Mohanjeet Kukreja)

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