“परिंदों की आवभगत” Short Story on Birds with Moral in Hindi
पशु पक्षियों की रक्षा करना चाहिए यह बात हमे बचपन से ही सिखाई जाती थी। इस कथन का अनुसरण करने के लिए हम बचपन से ही सावधान रहते थे। वो चिडियों की चहचहाहट के साथ उठना कितना हदय को आनन्दित करता था। मुर्गा की बान के पश्चात उठना, किसी अलार्म घड़ी या मोबाईल की अनुपस्थिति का ज्ञात कराती। अब तो यह सब अघुनिक युग मे मोबाइल का रिन्गटोन बन कर रह गये।
Birds with Moral in Hindi
भारत वर्ष मे कवियों ने पक्षियों पर अनेक कवितायें लिखी है। हमारे देश को सोने की चिड़िया की अपाघि भी दी गई है। हर प्रदेश का एक पक्षि प्रदेश चिन्ह माना जाता है। राष्ट्रीय पक्षि का सम्मान मयुर को प्राप्त है। किंतु कुछ वर्षों से वनों की कटाई अथवा लुप्त होने के कारण इन पक्षियों का घर उजड़ गया है। यहां-वहां घुमना तो ठीक है किन्तु अत्यंत ग्रीष्म ऋतु एवं शित त्रतु में इनकी कठिनाई बढ जाती है।
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ग्रीष्म ऋतू के आगमन पर मैने इस बार प्रयन्त करना चाहा की किसी प्रकार से इनके भोजन का उपाय करूँ। मेरे गृह के रसोई में एक खिड़की थी। मैंने उसे खोला और देखा की थोड़ी सी जगह है जहाँ दाना डाल सकते हैं। बच्चे भी अति उत्साही थे। हम लोगों ने एक कटोरी में चावल के दाने और दूसरी कटोरी में पानी रखा। खिड़की पर ग्रिल था एवं कांच का शटर इसलिए चिड़ियों की प्राइवेसी बरक़रार थी। इस इंतज़ाम से हम संतुष्ट थे।
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सुबह शाम बचे इन्वेस्टीगेशन में लगे रहते की अब चिड़िये ने खाना खाया या तब खाया। मैंने कहा ” उन्हें एकांत की आवश्यकता है “। किन्तु बच्चे हमारी कहाँ सुनते? एक सप्ताह व्यतीत हो गया, चिड़ियों ने दाना नहीं खाया, हमारी समस्या थी की वे किस कारण ऐसा कर रहे हैं? मेरे मन में कुछ विचार आया, मैंने प्याली अथवा कटोरी हटाइ और खिड़की दासा पर दाना छिट दिया। इतना करना ही था की चिड़ियों का झुण्ड आ कर बैठा। देखते ही देखते, दाना चुगने लगा एंड कुछ ही क्षणों में संपूर्ण दाना समाप्त हुआ। हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
इस दृश्य को देख कर मेरे अति उत्साही बच्चे ताली बजाने लगे। तत्पश्चात, हमें समझ में आ गया की हम उन्हें किस प्रकार खाना परोसें। अब तो यह नित्य कर्म था, प्रातः काल बच्चो को स्कूल के लिए तैयार करने उठती तो उन्हें भी दाना देती। दिन बीतते गए, पक्षियों की संख्या एवं जातियां बढ़ती गयी। उषा की किरणों के साथ उनका आगमन होता, दाना पाने की इच्छा में। हमारा खिड़की दासा मानो उनके लिए स्वर्ग के सामान था।
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खिड़की के शीशे से हम पूरा दृश्य देखते, उनके सारी क्रियाकल्प से हम परिचित थे। कभी कभी तो दस-बारह पक्षियां एक साथ बैठ कर चुगते बड़ा मनोरम दृश्य लगता है। छोटी बड़ी, कबूतर एवं गौरैया हर प्रजाति की चिड़िया हमने देखी। कभी कभी कक भी दर्शन देते थे, शायद पितृ पक्ष में। धीरे धीरे हमने चिड़ियों को पहचानना शुरू किया , उनके हाव भाव एवं रूप रंग से।
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किस प्रकार माता चिड़िया अपने बच्चों को खिलाती, यह सब देखने की लिए मेरे बच्चे, रसोईघर में कुर्सी लगाकर देखते। कुछ का रंग कला, कुछ सिलेटी, भूरा इत्यादि था, एक का गर्दन नीला रंग का था, यह सब हम गौर करते थे। एक कबूतर की सर पर ऊचा उठा हुआ सा था, मेरी बेटी ने उसे हूडी वाली चिड़िया का नाम दिया। अब इन सबके नित्य गणना होती जैसे की कक्षा में अटेंडेंस का। अब तो यह ब्रेकफास्ट लंच एवं डिनर हमारे खिड़की दासा पर करतीं। सूर्यास्त से पहले यह अपने-अपने नीड़ को चले जाते, इसलिए इनका डिनर जल्दी हो जाता था।
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अवकाश वाले दिन मैं प्रथा विलम्ब से उठती, इसलिए रात में ही दाना डाल देती थी, कहीं उनको सुबह परेशानी न हो। फिर भी कभी भूल जाने पर, चिड़िया खिड़की की शीशे पर चोंच मार-मार कर याद दिलाती की दाना दे दो। शीघ्र ही अपनी मित्र मंडली के साथ फिर पहुँच जाते। इनका हमारे साथ रिश्ता जुड़ गया। कभी कभी लगता है जैसे पूरी बारात आयी है। इन पक्षियों की साथ हमारा रिश्ता जुड़ता गया। इन पक्षियों ने हमीं बहुत कुछ सिखाया, हर दिन की क़द्र करना। खाने वाली जगह को बिलकुल साफ़ रखना, समय पर खाना एवं जल्दी सो जाना।
आधुनिक युग में, समय की रफ़्तार में हम शायद यह सब भूल गए हैं। अब तोह हमारे खाने की साथ इनका भी पकता था। हमने बहुत तरह की चावल इन्हें खिलाया, जैसे टोमेटो राइस, लेमन राइस, पुलाओ, इत्यादि। भूखी चिड़िया खाली दाना जानती थी, न की स्वाद। नखरे तोह हम इंसानों की हैं, यह चाहिए तोह वह चाहिए।
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Note – दोस्तों पक्षियों का अभिवादन (Greetings of birds) के बारे में दी गयी स्टोरी (Birds Story Hindi)आपको कैसी लगी, हमें बताये और आपके पास भी कोई Kahaaniहो तो हमें Mailकरे जल्दी पब्लिश किया जायेगा। Email – [email protected]
मैं एक वैज्ञानिक हूँ। सुदूर संवेदन संबादित शोध करती हूँ। खाली समय में हिंदी एवं अंग्रेजी में शार्ट स्टोरी लिखना पसंद करती हूँ।