“मेरा सपना” My Dream – Motivational Struggle Story in Hindi

मेरा सपना – My Dream 

एक सफल शादी कई बातों का समागम है, दोस्ती, प्यार, विश्वास, सम्मान, और एक दूसरे का ख्याल रखना। मेरी और हर्ष की शादी में यह सभी कुछ था, किसी की भी कमी न थी। उन्होंने हमेशा मुझे बहुत प्यार व सम्मान दिया। उनके साथ मेरा यह सफर बहुत आनंदमय था। हर तरह से हम एक आदर्श जोड़ी थे। 

हर्ष एक सफल बिजनेस मैन थे। अपने काम में अत्यधिक व्यस्त रहने के बावजूद उन्होनें हमेशा मेरे लिए समय निकाला। रविवार का पूरा दिन हम साथ में व्यतीत करते। घर का काम खत्म कर के हम कभी किसी मित्र के घर, कभी शाँपिंग और कभी फिल्म चले जाते। यदि कहीं नहीं जाना होता तो हम घर पर ही ताश खेलते, टी.वी. पर ही कोई फिल्म या अन्य कार्यक्रम देखते। पाँपकाँर्न, चिप्स, मूँगफली और गर्मा-गर्म चाय के साथ कार्यक्रम के दृश्यों पर टीका-टिप्पणी करते, खिलखिला कर हँसते और भावुक दृश्यों में मेरी आँखों में आँसू देख हर्ष मुझे अपने सीने से लगा लेते, कार्यक्रम समाप्ति के बाद उस पर चर्चा करते। सारा दिन मौज-मस्ती करते गुजर जाता। मुझे पूरे हफ्ते रविवार का इंतजार रहता। वह दिन मेरे पूरे हफ्ते की थकान और अकेलेपन को दूर कर देता। वैसे तो हम दिल्ली में रहते थे, पर हमने वृंदावन में भी एक छोटा सा फ्लैट ले रखा था। दो-तीन महीने में एक बार हम शनिवार-इतवार को वहाँ जा कर अपने रोज-रोज के कार्यक्रम में कुछ बदलाव महसूस करते थे। मुझे वहाँ जाना बहुत अच्छा लगता था। इस सब के अलावा, हम साल में एक बार दशहरे से दिवाली के बीच हफ्ते-दस दिन के लिए कहीं घूमने जाते थे। इसी बीच हमारी शादी की सालगिरह भी पड़ती थी और घूमने के लिए मौसम भी अनुकूल होता था। घूमने जाने के लिए जगह मैं पसंद करती और टिकट-होटल की बुकिंग से ले कर सारी व्यवस्था हर्ष की जिम्मेदारी होती।  

My Dream

Struggle Story in Hindi

पिछले साल छुट्टियों से लौटते ही मैंने एलान कर दिया, “अगली बार हम छुट्टियों के लिए लक्षद्वीप जायेगें। मैं एक अच्छी तैराक हूँ और बचपन से यह मेरा सपना है कि वहाँ के तटों की खूबसूरती देखने के साथ-साथ वाटर-स्पोर्टस का भी आनंद लूँ। किसी न किसी कारण वश मैं ऐसा करने में असमर्थ रही, पर अब मैं अपना सपना पूरा करूँगी।” हर्ष ने मेरी हाँ में हाँ मिला दी। 

धीरे-धीरे साल पूरा होने को था। बीच-बीच में मैं अपनी इच्छा हर्ष को याद दिलाती रहती, “आप को याद है न, इस बार हम छुट्टियों में लक्षद्वीप जा रहे है? आप समय से सब बुकिंग करा लेना।” मेरा उत्साह देख हर्ष हर बार मुसकुरा कर अपनी स्वीकृति दे देते। 

हमारी शादी की सालगिरह को दो महीने ही रह गये थे। हर्ष अपने दफ्तर के काम में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे। जल्द ही उनका नया प्रोडेक्ट बाजार में आने वाला था। उनकी व्यस्तता देखते हुए मुझे शक था कि उन्होंने अभी तक कोई बुकिंग नहीं कराई होगी। मैं रोज सोचती कि आज रात तो जरूर उन से बात करूँगी, पर वह देर रात घर आते, खाना खाते और बिस्तर पर लेटते ही सो जाते। उनकी थकान देख कर कहने की हिम्मत ही नहीं कर पाती। समय निकलता जा रहा था और उनकी हालत देख कर मुझे अपना यह सपना टूटता नजर आ रहा था। मैंने तय किया कि आज रात मैं हर हाल में उनसे बात करूँगी। रात को खाने के बाद मैंने उनसे पूछा, “हर्ष, आप ने लक्षद्वीप की सारी बुकिंग करा ली होगीं?” यह सुन कर वह थोड़ा झुंझुला कर बोले, “कराई नहीं है, पर समय से करा लूँगा। तुम्हें बार-बार याद दिलाने की जरूरत नहीं है। अभी तक कभी ऐसा हुआ है कि समय से बुकिंग न हुई हो। मुझ पर भरोसा रखो। जब करा लूँगा तब तुम्हें बता दूँगा।”   

शादी की सालगिरह को चार दिन रह गये थे। अभी तक हर्ष ने बुकिंग के बारे में कुछ नहीं बताया था। रात जब हर्ष घर लौटे तो खाना परोसते हुए मैने कहा “आप शायद कुछ भूल रहे हैं। मैं……….” हर्ष बीच में ही बोल पड़े,  “आज-कल तो मुझे बस एक ही बात याद रहती हैं कि दस दिन बाद मेरा नया प्रोडेक्ट बाजार में आने वाला हैं। रात दिन, यहाँ तक की इतवार को भी, मैं उसी की तैयारी में लगा हूँ।” यह सुन कर मैं उदास हो गयी और चुपचाप खाना खाने लगी। तभी हर्ष बोले, “मैं तुम को बताना भूल गया। परसों मुझे एक काँनफ्रेंस के सिलसिले में तीन-चार दिन के लिए मुम्बई जाना हैं।” यह सुन कर मेरी आँखो के आँसू, जिन्हें मैंने काफी देर से रोक ऱखा था, बह निकले। मुझे रोता देख हर्ष घबरा कर बोले, “अरे! तुम रो क्यों रही हो? तीन-चार दिन की ही तो बात है। मैं कोई पहली बार थोड़ी न जा रहा हूँ।” फिर बड़े प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए बोले, “क्या बात है? परेशान क्यों हो?” मैने आँसू पोछते हुए कहा, “चार दिन बाद हमारी शादी की सालगिरह है  और हमने तय किया था कि हम लक्षद्वीप जायेंगे।” अफसोस जताते हुए वह बोले, “अरे! मैं तो बिल्कुल ही भूल गया, पर मेरा जाना तो बहुत जरूरी है। वहाँ मुझे अपने प्रोडेक्ट का प्रजेनटेशन भी देना है।” मैं उठी और मेज पर रखा सामान समेटने लगी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बैठा लिया और बड़े प्यार से बोले, “ऐसा करो तुम भी मेरे साथ चलो। वैसे तो मेरा वहॉ पर बहुत व्यस्त कार्यक्रम है, पर हम कुछ वक्त तो साथ में गुजार ही सकते है।” मैंने गुस्से में कहा, “मुझे नहीं जाना।” यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी। हर्ष थके हुए थे, लेटते ही सो गये। मुझे देर रात तक नींद नहीं आयी। पहले तो बहुत गुस्सा आ रहा था, पर धीरे-धीरे मैं शांत हो गयी। सोचा कि यहॉ अकेले रहने से तो अच्छा है कि इन के साथ चली जाऊँ। कम से कम कुछ वक्त तो साथ में मिल जायेगा। 

सुबह दफ्तर के लिए निकलते हुए हर्ष बोले, “मैं तुम्हारी टिकट करा लूँगा। तुम अपना सामान भी रख लेना।” मैंने जाने का मन बना लिया था, पर कुछ बोली नहीं, बस खामोश खड़ी रही। 

अगले दिन हम सुबह-सुबह एयरपोर्ट पहुँच गये। मन बहुत उदास था। वर्षो का सपना टूट कर बिखर गया था। सुबह जल्दी उठने के कारण हवाई जहाज में बैठते ही हम दोनो सो गये। थोड़ी देर बाद हर्ष ने मुझे जगाते हुए कहा,  “उठो, हम मुम्बई पहुँच गये।” बोझिल कदमो से मैं हवाई जहाज से नीचे उतरी। हवाई अड्डे से हमने टैक्सी ली और होटल पहुँच गये। रात सोने से पहले हर्ष ने बताया, “कल बारह बजे हम होटल से काँनफ्रेंस वाले स्थान के लिए निकलेगें। तुम भी साथ चलना। उन लोगों ने महिलाओ के लिए मुम्बई भम्रण के साथ लंच की व्यवस्था की है। शाम तक वह तुम लोगों को वापस लायेंगे फिर सभी लोग रात का भोजन एक साथ करेंगे।” मन दुख और गुस्से से भरा था। मैं बिना कोई जवाब दिए चुपचाप लेट गई। 

ठीक बारह बजे हम होटल की टैक्सी में बैठ निर्धारित स्थान के लिए निकल गए। वहाँ पहुँच कर मैंने देखा कि हम किसी होटल या आँफिस में नहीं बल्कि समुद्री बन्दरगाह के डिपारचर टर्मिनल पर थे। यह देख दिल और जल-भुन गया। आज कल की कंपनियों के चोचले तो देखो, अभी तक तो रिसोर्ट पर सुना था अब जहाज पर काँनफ्रेंस रखी है। तभी हर्ष ने एक कागज मेरे हाथ पर रखते हुए कहा, “सपना साकार होने की बधाई।” मैंने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा और दूसरे ही पल मैंने कागज पर नजर डाली। मेरे हाथ में लक्षद्वीप की टिकिट थी। मैने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, “पर आप की काँनफ्रेंस और प्रोडेक्ट का प्रजेनटेशन?” उन्होंने मुझे बॉहो में भरते हुए कहा, “तुम्हारी खुशी से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं। तुमने हमेशा अपनी खुशियो, इच्छओं व शौक का त्याग किया ताकि मैं आगे बढ़ पाऊँ। बदले में कभी कुछ भी नही मांगा। मैं जानता हूँ कि लक्षद्वीप जाना तुम्हारा सपना है फिर मैं इसे कैसे भूल सकता था। मैंने पहले ही पूरा प्रोग्राम बना कर टिकट व होटल की बुकिंग करा ली थी। बस तुम्हारे साथ थोड़ी शरारत कर रहा था। कोई काँनफ्रेंस थी ही नहीं और प्रोडेक्ट की चिन्ता तुम बिल्कुल मत करो उसका काम मैं पहले ही पूरा कर चुका हूँ, इसी लिए तो रोज रात देर से आ रहा था। अब कुछ दिन सिर्फ मैं, तुम और यह खुबसूरत समुद्र, न कोई फोन, न कंप्यूटर , न मीटिंग और न ही कोई और अशांति।” मैने हर्ष को कस कर पकड़ लिया। मेरा मन खुशी से झूम उठा। हर्ष ने हंसते हुए कहा, “पहले चल कर बोर्डिंग करते हैं, नहीं तो जहाज हमें यहीं छोड़ कर निकल जायेगा।” मेरा मन चाह रहा था कि वक्त थोड़ी देर के लिए यहीं थम जाये और मैं ऐसे ही हर्ष की बाँहो में सिमटी खड़ी रहूँ।   

ठीक साढे चार बजे हमारा जहाज मुम्बई समुद्र तट से एक खुबसूरत यात्रा के लिए रवाना हो गया। हम अपना सामान केबिन में व्यवस्थित कर जहाज के डेक पर आ गये। थोडी देर में ही सूर्यास्त होने वाला था। हवा के हल्के-हल्के झोंके चल रहे थे और हम गर्मा-गर्म चाय के साथ सूर्यास्त का आनंद ले रहे थे। 

कुछ समय डेक पर व्यतीत करने के बाद हम जहाज पर हो रहे एक शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में गये। कार्यक्रम मंत्रमुग्ध करने वाला था। हम बहुत ही प्रसन्नचित हो कर वहाँ से निकले और रात्री भोज के लिए चले गये। वहाँ विभन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों की भरमार थी। भोजन के बाद, देर रात तक हम डेक पर टहलते रहे। ऊपर खुले आसमान में चमकते लाखों तारे और उनके बीच चाँदी सा चमकता चाँद, नीचे शोर मचाता विशाल समंदर। वहाँ टहले का अनुभव ही अलग था।

सुबह जब मेरी आँख खुली तब हर्ष गहरी नींद में थे। उन्हें उठाने की इच्छा तो नहीं हो रही थी, पर मुझे सूर्योदय देखना था। मैं कोई भी पल छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए सोचा कि अकेले ही चली जाऊँ पर मन नहीं माना। मैंने हर्ष को जगाते हुए कहा, “सूर्योदय देखने चलें?”  उन्होंने अलसाई आवाज में कहा, “नहीं यार, रात भी बहुत देर हो गई थी।” और उन्होंने मुझे अपने पास खींच लिया। मैंने मायूस होते हुए कहा, “चलते हैं न, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता। आपका मन नहीं तो मैं जाऊँ?” उन्होंने अपनी बाहों की पकड़ ढ़ीली करते हुए कहा, “ठीक है, तुम जाओ, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ।” मैं बिस्तर से उठी, अपनी जैकट पहनी, बाल सँवारे और केबिन के बाहर आ गई। 

 मैं डेक पर खडी उगते हुए सूरज और उसके चारों ओर फैली लालिमा का सौन्दर्य निहार रही थी। तभी मेरी नजर थोड़ी दूर पर खड़े एक शक्स पर गई। मेरी तरफ उसकी पीठ थी और वह करीब 10-11 साल की लड़की से कुछ बहस कर रहा था। अचानक वह व्यक्ति पलटा तो मैं दंग रह गई। वह तो विधु था, मेरे स्कूल का सहपाठी। कई सालों बाद उसे देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। मैं तेज कदमों से चल कर उसके पास गई। अब तक उसकी निगाह भी मुझ पर पड़ चुकी थी। मुझे देख कर उसका चेहरा लटक गया। मैंने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, “अरे विधु, तुम! कितने सालों बाद?” उसने अपना हाथ जेब से बाहर नहीं निकाला और चेहरे पर कुछ अटपटे से भाव देने लगा। मैंने मुसकुरा कर कहा, “पहचाना नहीं? मैं दीपिका, हम एक ही स्कूल में……” उसने कटाक्ष करते हुए कहा ,“अच्छे  से पहचाना, मैं तुम और तुम्हारे पति जैसे लोगों को कभी नहीं भूलता।” मैंने हँस कर कहा, “क्या मतलब? तुम इतने साल बाद भी वहीं अटके हो? अब तो बड़े हो जाओ, यार!” मैंने उसकी बेटी की ओर रुख करते हुए पूछा, “यह तुम्हारी बेटी है? बहुत ही प्यारी है।” मैंने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा “हेलो बेटा!” उसकी बेटी हाथ आगे कर रही थी कि बीच में ही विधु ने उसका हाथ पकड़ा और लगभग घसीटते हुए वहाँ से चला गया। मैं उसका व्यवहार देख कर दंग थी। आज इतने साल बाद भी वह बिल्कुल नहीं बदला था। 

मैं वहीं डेक पर रैलिंग के सहारे खड़ी दूर दूर तक फैले विशाल समुद्र को देखती रही। समंदर की महानता, उसकी गहराई और उसकी गम्भीरता निहारते-निहारते न जाने कब मैं अपने बचपन में लौट गई।

मेरी स्कूली शिक्षा पुणे में हुई थी। वहाँ के एक नामी स्कूल में मैं हैड-गर्ल और विधु हैड-बाँय था। वह हमेशा से ही बहुत अक्खड़ और अभिमानी था। देखने में वह लम्बा, गोरा, खूबसूरत था। साथ ही पढ़ाई, खेल-कूद व अन्य गतिविधियों में भी अव्वल था। स्कूल की ज्यातादर लड़कियाँ उसे पसंद करती थीं। सच तो यह था कि शुरू-शरू में मैं भी उसकी ओर आकर्षित थी पर उसका रूखा और कठोर व्यवहार मेरी पसंद पर हावी हो गया। उसे जीतना पसंद था और हार उसे बर्दाश्त नहीं थी। मैं पूरे प्रयास के बाद भी हमेशा उससे पीछे रह जाती थी। उस हार के बाद वह मुझे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। उसके इस व्यवहार से मेरा उसके प्रति आकर्षण नफरत में बदलने लगा था। 

एक बार स्कूल में मिक्सड जैन्डर स्विमिंग प्रतियोगिता में बटरफलाई स्ट्रोक के लिए मैं और विधु आमने-सामने थे। वह मुझसे हार गया और गुस्से में आग-बबुला हो उठा। वह पैर पटकता, सर झटकता और कुछ बड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। मैं रोज स्कूल समाप्त होने के बाद आधा घंटा रुक कर तैराकी का अभ्यास करती थी। यह बात विधु जानता था और अक्सर तानाकशी भी करता था, “कुछ भी कर लो जीतना तुम्हारे बस की बात नहीं।” प्रतियोगिता में हारने के बाद, अगले दिन, वह पूल पर आया और मुझे तैराकी करते देख स्वंय भी पानी के अंदर आ गया। जब मैं उसके पास से गुजरी तब उसने कुछ गंदे शब्दों का इस्तमाल करते हुए मेरा सर पानी के अंदर घुसा दिया। मैं झटपटाने लगी। बाहर खड़ा उसका दोस्त उसे मना कर रहा था पर वह पूरी ताकत से मुझे भीतर की ओर धकेल रहा था। तभी वहाँ टीचर आ गयीं और उसने घबरा कर मुझे छोड़ दिया। उन्होंने विधु से पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुमने इस समय अभ्यास करने की इजाजत नहीं ली है इसलिए तुरंत पूल के बाहर आओ।” वह पूल से बाहर निकला और चला गया । मैं भी पानी से बाहर आ गई। घबराहट के कारण में काँप रही थी। टीचर ने पास आ कर पूछा, “तुम ठीक हो? यदि कोई बात है तो बताओ, मैं इसके खिलाफ सख्त कारवाही करूँगी।” मैंने काँपती आवाज में कहा, “नहीं मैम, मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए मैं घर जाना चाहती हूँ।” 

मेरे नेशनल स्विमिंग प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने पर सभी ने मुझे बधाई दी। विधु ने न तो बधाई दी और न ही कोई कटाक्ष किया। उस हादसे के बाद हमारे बीच कभी कोई बात नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि वह उस समय या आज भी उस घटना को किस तरह से देखता है।

बाहरवीं के बाद हम सब अलग-अलग राहों पर चल दिए। जो खास थे वह किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े रहे। विधु के लिए मेरे मन में कोई भी भावनाए नहीं थी, न अच्छी और न बुरी, इसलिए न तो मैं कभी उसके संपर्क में आई और न कभी किसी से उसके बारे में जानने की उत्सुकता रही।

  पुणे से बी.बी.ए करने के बाद मैंने उसी काँलेज में एम.बी.ए में दाखिला ले लिया। हर्ष दिल्ली से इंजिनियरिंग करके मेरे काँलेज से एम.बी.ए करने आया था। हमारा सात-आठ दोस्तों का समुह था, हर्ष भी उन्हीं में से एक था। मेरे मन में उसके लिए कोई अलग भावनाए नहीं थी। उसके मन में ऐसा कुछ है इसका भी मुझे कोई आभास नहीं था। पढ़ाई पूरी होने पर उसने शादी का प्रस्ताव मेरे सामने न रख कर सीधे माँ-पापा के आगे रखा। वह लोग हर्ष की इस बात से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हाँ कर दी। शादी के बाद हर्ष ने मुझे सब तरह के सुख व खुशियाँ दी पर हम संतान के सुख से वंचित रहे। शादी के कुछ समय बाद ही हर्ष ने अपनी कंपनी खोली और मैं भी उस कंपनी के साथ जुड़ गई। 

मैं अपनी पुरानी यादों में डूबी थी कि पीछे से आ कर हर्ष ने मेरी कमर में अपनी बाहें डाल दी। मैं चौक कर पलटी और उसके गले लग गई। वह समझ गया कि मैं कुछ विचलित हूँ। उसने बड़े प्यार से पूछा, “क्या हुआ?” मैंने कुछ रुआँसे स्वर में कहा, “जहाज पर विधु भी है। आज भी वह पुरानी बातें भूला नहीं है। हमारे लिए उसकी नफरत आज भी वैसी ही है जैसी सालों पहले थी।” हर्ष ने मुझे प्यार से सहलाते हुए कहा, “भूल जाओ उसे, वह नहीं बदलेगा। हम गलत नहीं थे। हमारे लिए बस इतना काफी है। उसके बारे में मत सोचो बस अपनी यात्रा का मजा लो।” हर्ष कितनी आसानी से सब कुछ भूल जाते है। मैं नहीं भूल पाती। यादें मुझे उस दौर में ले गयीं जब हमने अपनी कंपनी नई-नई खोली थी। 

हर्ष मुझे अपने साथ हर मीटिंग व बिजनेस डील में ले जाते थे। एक जगह पर हमारी व विधु की कंपनी आमने-सामने थी। पहले मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह वही विधु है, पर तकनीकी चर्चा के दौरान जब वह मेरे सामने आया तब मैंने उसे पहचान लिया। उस समय भी वह अपनी अकड़ में ही था। सालों बाद स्कूल के सहपाठी जिस तरह से मिलते हैं, वैसा कोई भाव उसके चेहरे पर नहीं था। वह आर्डर हमारी कंपनी के पक्ष में तय हुआ। हमेशा की तरह विधु ने अपना आपा खो दिया। वह गुस्से में चीखता हुआ बोला, “जैसी तुम हो, वैसा ही तुम्हारा पति भी है। दोनों के दोनों एक नम्बर के धोखेबाज। तुम लोगों ने चालाकी से यहाँ के लोगों को प्रभावित कर के आर्डर अपने नाम कर लिया। अगर ईमानदारी से सब कुछ होता तो मैं ही इसे जीतता।” उसके इस व्यवहार को देख वहाँ लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। यह सब देख कर घबराहट के कारण मेरी तबियत खराब हो गई।  इस घटना के बाद मैंने कंपनी में अपनी भूमिका काफी कम कर ली। मैं दो-चार घंटे के लिए ही जाती और मन ठीक न होता तो नहीं भी जाती। हर्ष ने शुरू में मुझे काफी समझाया पर मुझे इस हादसे से उभरने में बहुत अधिक समय लग गया। आज जब मैं पूर्ण रूप से इस घटना को भूल चुकी थी तब एक बार फिर वह मेरे सामने उसी रूप में आ खड़ा हुआ। उस घटना को लगभग दस साल हो गये थे। हम सभी उम्र व जिन्दगी के अनुभवों में अब तक परिपक्व हो गये थे। विधु तो लगभग दस साल की एक लड़की का बाप था, पर वह तो उस मासूम बच्ची के सामने ही इतना अजीब बर्ताव कर रहा था। हर्ष ने मुझे अपने पास खीचते हुए कहा, “और, मेरा नाटक कैसा लगा?”  मैंने मुसकुरा कर कहा, “बहुत अच्छा, मुझे तो विश्वास हो गया था कि मेरा सपना टूट जायेगा।”

सारा दिन हमने जहाज पर बहुत मजा किया। विधु हमे दुबारा कहीं नजर नहीं आया। उसकी बेटी शाम को बाँलीबुड डाँस शो में दिखाई दी। उसने मुझे देख कर हाथ हिलाया। मैंने भी मुसकुरा कर, हाथ उठा कर उसे अपना आर्शिवाद दिया। उसकी बेटी को देख कर मुझे समझ आया कि जरूर विधु की पत्नी एक समझदार व सुलझी महिला होगी। उसने ही अपनी बेटी को इतने अच्छे संस्कार दिए होगें। विधु से तो कोई उम्मीद भी नहीं कर सकते। 

कार्यक्रम के बाद हम खाना खाने के लिए हाँल में गये। थोड़ी देर बाद विधु की बेटी हमारे पास आ कर बोली, “आंटी, सभी मेज़ें भरी है। क्या मैं आप के साथ बैठ सकती हूँ।” मैंने मुसकुरा कर स्वीकृति दे दी। उसने बैठते ही कहा, “मैं कृति हूँ। मैं कक्षा पाँच में पढ़ती हूँ।” मैंने पूछा, “पापा-मम्मी तुम्हारे साथ नहीं आये?” उसने हँस कर कहा, “आप के बच्चे भी तो आप के साथ नहीं आये।” फिर कुछ उदास होते हुए बोली, “पापा यहाँ अपने आँफ्सि के काम से आये हैं। उनका और मम्मी का खाना वहीं है पर बच्चों का नहीं। मुझे उन्होंने जबरदस्ती शो देखने भेज दिया पर मुझे मजा आया।“ कह कर वह खिलखिला कर हँस पड़ी पर उसकी आँखें उदास थीं। मैंने पूछा “तुम को क्या पसंद है?“ उसने चहकते हुए कहा, “मुझे तैरना और पानी में किये जाने वाले खेल बहुत पसंद है पर पापा को यह सब बिलकुल पसंद नहीं। सुबह भी हम यही बात कर रहे थे।” हम खाना खा कर हाँल के बाहर आ ही रहे थे कि विधु वहाँ आ गया। उसने कृति का हाथ पकड़ा और गुस्से से मुझे घूरते हुए बोला, “मेरी बेटी से दूर रहो।” इससे पहले कि हम अपनी कोई प्रतिक्रिया देते वह कृति को खींचता हुआ वहाँ से चला गया। हम दोनों डेक पर आ गये। मन में बार-बार विधु और कृति के ख्याल आ रहा था पर इस समय मैं अपना पूरा ध्यान हर्ष पर केन्द्रित करना चाहती थी।

सुबह हर्ष ने लाल गुलाबों का गुलदस्ता देते हुए शादी की वर्षगाँठ पर बधाई दी। नाश्ता करके हम लक्षद्वीप पहुँचने का इंतजार करने लगे। मैं काफी उत्साहित थी। ठीक साढ़े नौ बजे हमारा जहाज लक्षद्वीप पहुँच गया। वापस लौटने के लिए हमें चार बजे टर्मिनल पर आना था। थोड़ा समय रिसोर्ट में बिताने के बाद हम समुद्र-तट पर आ गये। समुद्र की खुबसूरती देखने लायक थी, पारदर्शी नीला पानी, चाँदी सा चमकता सुन्दर रेतीला तट, उस पर पाइन के पेड़ और छोटी-छोटी काँटेज। सबसे पहले हम कायाकिंग के लिए गये। यह बहुत ही सुकून देने वाली अनुभूति थी। उसके बाद हम नौका द्वारा डाँल्फ़िन देखने गये। डाँल्फ़िन को तेज गति से तैरते, पानी से बाहर निकलते और फिर वापस अंदर जाते देखना एक अभूतपूर्व अनुभव था। उनकी हर क्रिया में एक लय थी। तट पर वापस आ कर हमने कुछ फोटो खींचे और फिर हम स्नाँर्कलिंग के लिए जाने लगे। तभी कुछ दूरी पर हमें कृति अपनी माँ के साथ नजर आयी। हम उसे अनदेखा कर समंदर की ओर बढ़ गये। स्नाँर्कलिंग में रंग-बिरंगी खूबसूरत मछलियाँ, कोरल रीफ व समुद्री पौधे देखने का अनुभव बहुत ही अलग, सुखद व ताजगी से पूर्ण था। 

पानी से बाहर आ कर मैंने देखा कि कृति वहां नहीं थी और उसकी माँ कुछ परेशान सी इधर-उधर टहल रहीं थीं। वह कभी अपने मोबाइल की ओर देखतीं और कभी समुद्र की ओर। उनका व्यवहार कुछ अटपटा था। मैंने हर्ष से कहा, “मैं जरा कृति की माँ को हेलो बोल कर आती हूँ।” बिना हर्ष का जवाब सुने मैं तेजी से उनकी ओर चल दी। मुझे अपनी ओर आता देख वह घबरा कर बोलीं, “आप कृति को जानती हैं न। वह स्नाँर्कलिंग के लिए गयी थी। पहले तो वह मुझे नजर आ रही थी फिर मैं फोन पर बात करने लगी। अब वह नजर नहीं आ रही। मुझे तैरना नहीं आता। मैंने उसके पापा को फोन मिलाया पर फोन मिला नहीँ। मैंने फोन पर संदेश छोड़ा है। मुझे बहुत डर लग…. ” उसकी बात पूरी होने का इंतजार किये बिना ही मैंने पानी में छलांग लगा दी। थोड़ी देर कृति को तलाशने के बाद मैंने देखा कि वह कुछ बेहोशी की हालत में पड़ी थी। मैं समझ गई कि उसे हाइपोकैपनिया की वजह से बेहोशी आ गई है। यह रक्त में कार्बन डाई आक्साईड का कंसंट्रेशन कम होने से होता है। मैंने उसे तुरंत सहारा दिया और अपने साथ समुद्र तट पर ले आयी। प्राथमिक उपचार के बाद वह बेहतर महसूस करने लगी। उसकी माँ ने हाथ जोड़ कर भावुक स्वर में कहा, “आपका यह अहसान मैं कभी नहीं उतार सकती। कृति ने मुझे बताया था कि विधु ने आप के साथ बार-बार खराब व्यवहार किया, फिर भी आपने हमारी बेटी को बचाया। विधु ने हमें यहाँ आने से मना किया था पर आप समझ सकती हैं कि कई बार बच्चों का मन रखने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। वैसे वह एक अच्छी तैराक है। यहाँ आने से पहले उसने स्नाँर्कलिंग का प्रशिक्षण भी लिया था। मुझे इसकी काबिलियत पर पूरा भरोसा था। फिर भी पता नहीं कहाँ-क्या गलत हो गया।” मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,  “आप परेशान न हों। एक से एक काबिल लोगों के साथ हादसा हो जाता है। इसमें बच्चे की कोई कमी या गलती नहीँ है। शुक्र है कुछ बड़ा नहीं हुआ और कृति अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है।” कृति की माँ ने मुझे गले लगाते हुए कहा, “आप बहुत क्षमाशील हैं। विधु द्वारा बार-बार अपमानित होने के बाद भी आपने उसकी बेटी को जीवनदान दिया है। मैं विधु की तरफ से आप से माँफी माँगती हूँ।” मैं उसकी बातों से भावुक हो उठी। उसे अपने से दूर करते हुए मैंने हर्ष का हाथ पकड़ा और रिसोर्ट की ओर चल दी। कुछ दूरी पर विधु खड़ा था। वह समझ गया था कि अभी थोड़ी देर पहले यहाँ क्या हुआ। उसके चेहरे पर पछतावा था पर उसका अहंम उसे हमसे बात करने या शुक्रिया कहने से रोक रहा था। 

वैसे तो सारी गतिविधियाँ करने के लिए हमारे पास पर्याप्त समय था पर इस हादसे के कारण हम मानसिक व शारिरिक रूप से थक गये थे। हम केवल रेत पर लेट कर तट के चारों ओर के दृश्य व धूप का आंनद लेते रहे। कहीं एक खुशी थी कि ईश्वर ने मुझे एक नेक काम के लिए चुना और मैं एक बच्ची की जान बचा पायी। चार बजे तक हम टर्मिनल पर पहुँच गये। थोड़ी देर में कृति भी अपने माँ-पापा के साथ वहाँ आ गई। मुझे देखते ही वह भाग कर मेरे पास आयी और मुझ से लिपट कर बोली, “थैन्क यू आंटी, मेरी जान बचाने के लिए।” उसकी इस अभिव्यक्ति से मैं भावुक हो उठी। बर्षो से दबी मेरे अंदर की ममता जाग गई। मैंने उसे बाहों में भर कर कहा, “थैन्क यू बेटा। मुझे इतना प्यार देने के लिए। ईश्वर तुम्हें सदैव खुश और सुखी रखे।” हर्ष मुझे देख कर समझ गये थे कि मेरे अंदर क्या चल रहा है। मुझे और तकलीफ से बचाने के लिए उन्होंने मेरा हाथ पकडा और डेक की ओर चल दिए। मैं आँखों में आँसू भरे हर्ष की ओर देख रही थी। हर्ष न होते तो मैं कब की टूट कर बिखर गई होती।

ठीक सात बजे जहाज मुम्बई के लिए रवाना हो गया। मैं डेक पर हर्ष की बाहों में सिमटी बैठी थी। हर्ष के प्रोडेक्ट के कारण हमारे पास समय कम था पर मैं खुश थी कि मेरा सपना पूरा हुआ और यह सब हर्ष की वजह से संभव हो सका।

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3 Responses

  1. Atul says:

    भावुकता और रिश्तों की पवित्रता की झलक है। समुद्र की गहराई मुख्य पात्रों के चरित्र में।

  2. Anju says:

    Very interesting and emotional story

  3. Anjali Mehrotra says:

    Sunder ke khana👌

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