पंचमढी की यात्रा – Travel Story in Hindi
Travel Story in Hindi
हरियाली और वन्य जीवों से परिपूर्ण सतपुडा के घने जंगलों से घिरा पंचमढी अत्यंत सुंदर और मोहक स्थान है. मै और मेरे मित्र ने पंचमढी जाने की योजना बनाई, सबकुछ तय समय से हो गया, हमारी रात नौ बजे की ट्रेन थी, हम उस समय वाराणसी आए थे, तो हमने वाराणसी से पिपरिया की ट्रेन बुक कराई थी, क्योकि पिपरिया से पंचमढी बहुत निकट है. खैर शाम को वाराणसी की गंगा आरती देख हमने अपना सामान लिया और स्टेशन के लिए रवाना हो गए, तंग गलियों से होते हुए हम जैसे तैसे स्टेशन पहुंच ही गए, और प्लेटफार्म पहूँच कर हमने पहले से ही खडी ट्रेन मे अपना सामान अपनी निर्धारित सीट पर रख कर चैन की साँस ली.
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ट्रेन वाराणसी मे बिल्कुल खाली ही थी, मात्र चंद लोग ही थे उसमे, तभी हमारे साथ वाले एक यात्री से हमारी बाते शुरू हुई, उसने हमको ट्रेन मे होशियार होने को कहा और लूट पाट,चोरी की कहानी बताने लगा. उसने बताया कि ट्रेन जब मध्य प्रदेश की सीमा मे प्रवेश करेगी, तो सतना जंक्शन मे अक्सर लूट की वारदात होती है, यह सुनकर मै और मेरे मित्र के होश ही उड गए और सहम कर हमने एक दूसरे की ओर देखा.
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हमने एक दूसरे को समझाया और सतर्क होकर बैठे रहे,जिस यात्रा को हम रोचक समझकर आए थे, अब हर एक मिनट ये सफर हमें डराने लगा था. कुछ ही देर मे ट्रेन का टी टी भी आया और उसने भी इस बात की पुष्टि कर दी, देर रात को ट्रेन मे लोगो का आना जाना लगा रहा, पर हम दोनो को कहा नींद आने वाली थी, जैसे तैसे ट्रेन सतना जंक्शन पहुंची और हमारी सांसे तेज हो गई थी. हमने एक दूसरे को सतर्क किया, देर रात का समय था करीब रात के तीन बज रहे थे, नींद से आखे भारी हो रही थी, सबने अपने कोच के दरवाजे बंद कर दिए थे, मानो सभी यात्रियों के मन मे एक सा भय था.
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ट्रैन सतना स्टेशन रूकी और निर्धारित समय से चल पडी, जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ रही थी हमारी चिंता भी बढने लगी थी, उस समय का वरनन करना शब्दों में आसान नही है, सुबह होने को आए थी, सुबह के चार बजने वाले थे, ट्रेन मे सब अब जैसे भय मुक्त से हो गए थे, जैसे ईश्वर ने उस रात हमको बचा लिया हो, सबने राहत की सांस ली और तभी मैने ट्रेन की खिडकियों से उगता हुआ सूरज देखा, जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक था, ट्रेन समय से चल रही थी, हमारा स्टेशन आने वाला था, सुबह के अब आठ बज रहे थे.
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अब मन मे पंचमढी जाने की उत्सुकता बढने लगी थी, तभी हमारा स्टेशन पिपरिया आगया और हम भय मुक्त होकर ईश्वर का नाम लेकर उतर गए.
बाहर आकर हमने लोगो से पंचमढी जाने का रास्ता पूछा, मानो प्रकृति हमको खुद अपने पास बुलाना चाहती थी. उसी समय एक जीप हमको मिली और उस मे बैठकर हम लोग पंचमढी के लिए निकल गए. जैसे जैसे हम पंचमढी के नजदीक जा रहे थे, सतपुडा के पर्वत सघन जंगल मानो अपना अनुपम सौंदर्य दिखाने लगे थे. वो यात्रा अपने मे ही एक अलग अनुभव था, जिसको देखकर हमारी सारी थकान मिटने लगी थी.
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पिछली रात की वो भयावह बाते सब धूमिल होने लगी थी, और मन मे उत्साह उमड़ने लगा था. हम पंचमढी पहुंचे और शीघ्र ही होटल बुक कर हमने सामान रखा और कुछ देर आराम किया, कि तभी होटल के मालिक ने हमारा रूम खटखटाया और खाने के बारे में पूछा। हमने उनसे पूछ लिया कि क्या हम आज पंचमढी घूमने जा सकते है, हमने उनसे सारी जानकारी ली, तभी उसने बोला की आप लोगों की तरह, दो और मित्र है जो विलासपुर से आए है, अगर आपको ठीक लगे तो आप सब साथ मे ही पंचमढी घूम सकते है.
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हमने भी हाँ कह दिया, वो उसी होटल मे हमारे रूम के निकट ही रूके थे, खैर एक से भले दो, और दो से भले चार, हम तैयार हुए और चारो निकल पडे. पंचमढी के सुंदर रूप को देखने, हमने दो दिन पंचमढी मे गुजारे कब वो दिन गुजर गए, कुछ पता ही नही चला, जाते समय मन बहुत भारी हो रहा था, मानो प्रकृति के गोद से हमको कोई उतार रहा हो.
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शब्दो मे वहां का वरनन करना सरल नही, हर एक दृश्य ही अपने मे एक अदभुत कहानी है। इस यात्रा से मैंने यह अनुभव किया कि आज के आधुनिक युग और आविष्कार सुविधाए कितना भी हम को आराम दे, परंतु प्रकृति की तुलना नही कर सकता, उसका अनुभव और स्थान ही अलग है, इसलिए हम सबको प्रकृति की रक्षा करने का प्रण करना चाहिए, जिसे की इस सुन्दर स्थान की यात्रा हमारी आने वाली पीढी भी कर पाए।
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भूतपूर्व शोधर्थी, इस समय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में विद्यार्थी. मुझे साहित्य से प्रेम है, कविताएँ लिखने पढ़ने में रुचि है.
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